Monday, July 17, 2017

बहती नदी सी...

बस चुपचाप बहे जाती है,
कल कल छल छल करते ।
मैंने पिघलते पत्थर देखे,
हम बैठ किनारे बातें करते ।।

अब तक थी खामोश ओ गुमसुम,
कभी ना देखा बाते करते ।
ना विश्राम किया जाता था,
रात ओ दिन बस बहते बहते ।।

फिर आया बारिश का पानी,
सब को मैंने देखा भरते ।
मिट्टी की खुशबू पहचानी,
दूर किनारे फिर भी रहते ।।

शांत और निर्मल वो बहना,
भूले खूब उमड़ती जाती ।
नदिया जीवन सर सरिता सी,
खाली होते फिर है भरते ।।

Satyen Dadhich©®