और फिर एक दिन अचानक आग लग गई कि अब बस चमचों के दिन खत्म होने वाले हैं तो खलबली मची पूरी उस देगची में जिसके चलते अस्तित्व जमाये बैठे थे नेता और उनके चमचों की भारी भरकम ऑनलाइन फौज ।
नेता जी ने कहा कि जनता के दुख से दुखी है वो लेकिन पता नही क्यों जनता के साथ कि बेटा करने वाले नेता जी ने यह बात ऑनलाइन कहीं ।
अपनी आंखों में दर्द के आँसूँ लेकर उन्होंने नेतागिरी के कपङे उतारने तक कि बात कह डाली लेकिन यह तो भला हो उन सलाहकारों का जिन्हें यह डर था कि अगर अन्नदाता ने सच में यह बात अमल करने की सोच ली है तो भविष्य बर्बाद होने से कोई नही रोक पायेगा ।
नेता जी ने चमचों और सब अपने लोगों को ध्यान रक्खते हुए पदत्याग को भी एक बेहतरीन प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि नेता जी का लक्ष्य बड़ा पद बड़ी सोच थी लेकिन यह बात तो आम जनता को समझ आयी कि यह भोंडा नाटक स्क्रिप्टेड या सुनियोजित था ।
चाहे जो भी हो चमचम और चमचों का जमाना बदल चुका है और अगर इस युग में कोई वोटरों को बेवकूफ या भेद बकरी समझे तो आप समझ लीजिए कि यह नेता जी की उतरती राजनीति का आखिरी पड़ाव है ।
जो सब कुछ जाने वो जनता, संभालिये खुद को क्योंकि चमचम और चमचे बुरे कर्मों से लेकर सिर्फ स्वार्थ सिद्धि के हेतु है ।