Sunday, September 15, 2019

कविता : अधूरा डर

यूँ ये सफर सिफर हो जाता है,
अकेले कोई कहाँ चल पाता है ।
जिंदगी तो काट लेता है तन्हा भी,
कोई क्या जी हर पल पाता है ।

अधूरी रह जाती है कुछ कहानियां अक्सर,
यूँ पूरी भी कहाँ हर कोई लिख पाता है ।
परियाँ आती है रोज ख्वाबों में मेरे अब भी,
वो बचपन मेरा कहाँ वापस लौट के आता है ।

सोचता हूँ की खेल खेलूँ वो पुराने वाले,
वो हारने का डर अब भी सताता है ।
तब तो तुम साथ हर पल थे मेरे साये से,
जमाने की चाल से अब दिल डर जाता है ।

सत्येन