Monday, August 24, 2015

।। शिव तांडव स्तोत्र ।।

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः। भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके। धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌। स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌। स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्। धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः। तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना । विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे। तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

Saturday, August 22, 2015

रोज़ की डायरी... पन्ना 22 अगस्त 2015 का

एक बार फिर रात हुई है.... चाँद आधा अधूरा सा कुछेक सितारे और बहती ठंडी हवा । शहर की भागमभाग से दूर । अंधेरो से बात करती सड़क..... उसके किनारे पेड़.... पहाड़ों के नीचे बने एक दुकानों के झुण्ड से दूर एक टपरी जिसके नीचे सुकून है पर डीजे की आवाज़ यदा कदा तोडती उस शांति को... जिसके लिए यह सफ़र शुरू हुआ है ।

#शुभरात्रि

#सफ़रएजिंदगी

#सफरनामा

Satyendra Dadhich

Monday, August 3, 2015

शिव के मंदिर तक....

शिव के मंदिर तक . ..

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी भी रही तो नौजवानी फिर कहाँ ।।

कुछ ऐसा ही सोच कर भाई विनय पोद्दार, भाई राजेश अग्रवाल, भाई हेमंत रूंथला, विकास मिश्रा और मैं सत्येन दाधीच "सोनू" नवलगढ़ से निकले पर ना मंजिल का पता ना राह के लम्बेपन का एहसास । बस चलते जाना है । चलो सफ़र शुरू करने की एक दिलचस्प दास्ताँ को शब्द देने की कोशिश करें ।

शिव मंदिर से शुरू यह सफ़र जो सिफर हो गया । दिलचस्प बातों के सिलसिले, आराम से चलने का माहौल और रात का मस्त मौसम । लंबा हाइवे जो बस साथ देगा उन बड़ी लाइटों के चमचमाते ट्रको को जो अपने ट्रक को सजाकर रखते है दुल्हन से भी बढ़कर ।

खैर हम लोगों बे परवाह बस निकल पड़े नमन करके उस दैवी शक्ति जो बुला रही है हमें श्रावण के इस मस्त मौसम में ।

चलते चलते पहला सूरज हमारा स्वागत कर रहा था निम्बाहेड़ा में । हल्का फुल्का देसी नाश्ता सुबह को कब दोपहर के 12 बजा गया पता नहीं चलेगा बस शर्त है की साथ में दोस्त हो । मित्रता दिवस की एक अद्भुत शुरुआत क्या बात है । चलो और आगे चला जाये । सफ़र लंबा है पर दुरूह नहीं क्योंकि "मस्ती" है । मौसम भी साथ दे रहा है तो चलो चलते चलो ।

अजमेर से चलकर निम्बाहेड़ा के रास्ते पूरे दिन दूर तक लम्बी सड़क पर नीमच से चलते चलते हम आ पहुचे भगवान् महाकाल की नगरी उज्जैन में । शांति और कुम्भ की हलचल को एक साथ महसूस किया जा सकता है यहाँ की शांति से पसरी शाम में । कल सुबह साक्षात् करना है भोलेनाथ से और क्षिप्रा नदी के तट पर बसी इस नगरी का एक भ्रमण । सफ़र लंबा है और आगे तक चलेगा यह अवन्तिका होटल तो केवल मात्र पहला पड़ाव है ।

शिव की इस नगरी का नाम सप्त दिव्य पुरियों में गिना जाता है । वास्तव में सच भी है आप भूल जाते है उस सब को जो पीछे छोड़ आये है या जो आगे घटित होने को है । ना भूतो ना भविष्यति ।। मैं 6 साल बाद फिर एक बार यहाँ हूँ और सब कुछ वही है । पूर्ववत यथावत । जय भोले नाथ सब की मुराद पूरी करो । शिवोहं ।।

हर हर महादेव के उद्दघोष के साथ आज के दिन का शुभारम्भ हुआ । भस्म आरती में ना जाकर बाद के दर्शन हेतु 12:15 पर लाइन में जो लगे तो 3 बजे जाकर महाकाल ने अपने दर्शनों हेतु निज मंडप में प्रवेश दिया । दिव्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते ही संपूर्ण थकान गायब होकर एक गज़ब की प्रसन्नता का अनुभव हुआ । मंदिर प्रांगण में और भी ढेरों मंदिर बने है । कुलमिलाकर श्रावण के प्रथम सोमवार के दिन उज्जयनी नगरी के महाराज महाकाल के दर्शन कर आगे की यात्रा का आगाज़ किया ।

मौसम पिछले 2 दिन से बराबर साथ दे रहा है । सूर्यदेव ने मानो बादलों की चादर ओढ़कर हमारी यात्रा की शीतलता में अपनी स्वीकृति दे दी हो । हमारी इस यायावरी का अगला पड़ाव है इन्दोर । निकल पड़े है चलने के लिए ।

इन्दोर से जो हम निकले तो सीधा घाट के रास्ते चल पड़े आगे और आगे । रास्ते में ओम्कारेश्वर से कुछ थोड़ा सा पहले एक छोटा ढाबानुमा ठेठ हरयाणवी तरीके से बना एक होटल दीख पड़ा । ताज़ा दूध की चाय और स्पेशल हरयाणवी लस्सी के साथ उस प्राक्रतिक शांति से भरी पूरी जगह पर जब रात के आठ बजे तो ना चाहते हुए भी हमें आगे की यात्रा पर निकलना पडा । होटल मालिक भाई मनोज ने जो आत्मीयता दिखाई उससे यह मान गये की "मीठे बोल बडे अनमोल" ।

ओम्कारेश्वर अद्भुत है । या यूं कहू की मंदिर में प्रवेश करते ही एक दिव्य अनभूति को महसूस करने की चाह । शांत बहती नदी और उसके तट पर कुछ सौ मीटर की उचाई पर बना मंदिर और भगवान् ओम्कारेश्वर का नगर भ्रमण का दिव्य एवम दुर्लभ दृश्य । पूज्य बाबा जी के सानिध्य और 21 पंडितों द्वारा किये जाने वाले समवेत सस्वर में रुद्राभिषेक और भगवान् शिव की आरती का आनंद उठाया । दाल, बाटी और भी कई प्रकार का सुस्वादु भोजन जो प्रसाद रूप में अर्पित किया गया था हम सब ने ग्रहण किया । चारों और पहाड़ों पर बने मंदिर, उनकी साज सज्जा, नदी का वो शांत बहता पानी अपने से दूर ना जाने के लिए मानो रोक सा रहा था पर चूँकि जीवन चलने का नाम तो हम रात 10:30 पर अपने सफ़र के अगले पड़ाव की और चल पड़े ।

सुबह के 7 बजे है और हम सेंधवा के रास्ते महाराष्ट्र में प्रवेश कर तीर्थनगरी नासिक में पहुच चुके है । यह ओद्योगिक शहर काफी बड़ा है और व्यवस्थित है । अंगूर की खेती के कारण यहाँ की किशमिश का नाम काफी है ।

आज की पूरी दोपहर आराम के नाम रही । थकावट अपने चरम पर थी तो आज शालीमार होटल के इस आराम ने थोड़ा और तरोताजा कर दिया । शाम को जो निकले तो सीधा जा पहुचे गोदावरी के तट पर "रामघाट" । ढलती शाम, मंदिरों में होती आरती, साईनाथ के जयकारों माहौल को सम्पूर्ण भक्तिमय और आध्यात्मिक रूप दे रहे थे । पुरानी शैली के पत्थरो से बने ये मंदिर गोदावरी के तट को हिन्दू आस्था के स्वरुप मैं अवस्थित है । घाट पर साफ़ सफाई और व्यवस्था पुलिस प्रशासन और नगरपालिका का सामंजस्य आने वाले सिंघहस्थ -2015 को स्वच्छ और सुन्दर बनाएगा ।

रात का खाना प्रकाश दा ढाबा में या यूं कहूँ की कंक्रीट के बने इस महानगर में सुकून का एहसास दे गया । सादा और देसी खाना आप अगर खाने के इच्छुक अगर है तो बढ़िया जगह है शांत और शहर के बीचों बीच ।

रात के साढे ग्यारह बज रहे है और सुबह निकल जाना है ।

अलसुबह भोर में निकल कर सीधे जा पहुचे भोलेनाथ को नमन करने त्र्यम्बकेश्वर । बहुत ही दूर दूर तक फैले घास के मैदान और पहाड़ों की चोटियों को छूते बादळ । भोलेनाथ के शीघ्र दर्शन कर निकलना चाहा पर मानो मौसम ने हमें बारिश में भिगोने का पूरा इंतज़ाम कर लिया था पर हम निकल पड़े आगे अपनी यात्रा पर ।

रिम झिम मौसम के बीच हम जा पहुचे सबका मालिक एक श्रीक्षेत्र शिर्डी । साईनाथ के दर्शनों का उत्साह इतना अधिक था की २ घंटे कब बीत गए । बाबा के दर्शन कर "सबके लिए सब कुछ हो" की दुआ मांगी और निकल पड़े आगे के लिए ।

दोपहर के हल्के फुल्के खाने के लिए हमें नज़र आया कामथ रेस्टोरेंट । शानदार खाना और लाज़वाब खाना की बस आप कायल हो जाते हो । काफी देर तक बारिश होती रही और हम लाज़वाब प्रकृति के नज़ारे करते रहे ।

शनि भगवान् का क्षेत्र श्री शनि शिंगणापुर एक ऐसी जगह है जहाँ किसी मकान, दूकान पर ताले नहीं लगाए जाते । त्वम् नमामि शनैश्चर के साथ नमन कर अब निकल पड़े है आगे क्योंकि....

ये मंजिल मिलने होने को नहीं होती,
चलना मेरी आदत में शुमार हो गया है ।
मौसम का बे नीयत हो जाना यूं खुशनुमा,
रुक जाने की बातें अब एक बार नहीं होती ।।

500 किमी का एक दिन का सफ़र, रास्ते भर होती बारिश, मुम्बई पुणे द्रुतगामी महामार्ग का वो बादलों से भरा समा, अनजान लोगों से आधी रात को सड़क पर मुलाक़ात और बस चलते जाना । भटक कर अजनबी की तरह रास्ता खोजना और फिर मंजिल पर पहुँच कर जश्न मनाना एक अजीब सा सुख देता है ।

3 बजे मध्य रात्रि में हमने प्रवेश किया सपनो की उस मायानगरी में जहां हर कोई एक सपना लेकर आता है । फिल्म स्टार बनने का सपना, घूमते घामते इस शहर का हिस्सा हो जाने का सपना, कहीं पेट पालने का जुगाड़ है यो कहीं दूर तक फैली इतनी भीड़ में भी तन्हाई ।

मुंबई.... सपने दिखाती.... हर पल जगाती... मशीन सी भगाती.... हम पहुँच गए है और तलाश कर रहे है अपने इन पलों को और यादगार बनाने का ।

06/08/15

सफ़र और सफरनामें को इतनी दिलचस्पी से पढ़ने और अपनी प्रतिक्रियायें देने के लिए सादर आभार । मुम्बई पहुचने तक का सफ़र आप अभी तक पढ़ चुके है लीजिये अब बात करते है आगे के सफ़र की...

सुबह का सूरज तो मानो कहीं गायब सा हो गया है । दोपहर तक बारिश अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी थी । शाम सुहानी हो चुकी थी तो हमने भी मुम्बई को नापने का मानो मन में ठानकर घूमने का फैसला कर लिया ।

समंदर के किनारे का अपना अलग मज़ा होता है.... चारों और फैली छोटी छोटी दुकानें जिन पर भेल, पावभाजी, बर्फ गोला, फालूदा और भी ना जाने क्या क्या... चटोरी जीभ को बस क्या चाहिये हर एक चीज़ को जुहू बीच पर चटखारे ले कर टेस्ट किया । २ घंटा तक समुद्र किनारे बैठ कर गाँव, देश और दुनिया की बातें गाँव के उन लोगों के साथ हुई जो यहां रहकर हमारी तरह मिस करते है उस मिट्टी की सौंधी खुशबू को जो इस महानगर की गगनचुम्बी इमारतों में रहने वालों के लिए एक स्वप्नमात्र है ।

अभिषेक भाई ने मानो हमारे मन की बात पढ़ ली और हमें इस शहर की भीड़ भाड़ से दूर कहीं बसे एक उस नखलिस्तान में ले जाने का फैसला किया जिसे यहाँ पर खोज पाना हम लोगों के लिए दुर्लभ था ।

किनारा ढाबा..... शहर की भागती दौड़ती जिंदगी से दूर हाईवे के एक किनारे पर... बाहर से ही मानो आमंत्रण दे रहा था पर ज्यों ही अन्दर घुसे तो मानो एक बाँस से बनी सृष्टि मानो साकार हो गयी । आर्केस्ट्रा की धुन, मचान पर बैठकर खाना खाने का लुत्फ़, शेरो-शायरी की लाइने, देसी गद्दे और मसनद वाला बैठने का तरीका, जंगल सा माहौल मानो भूल गए हम की मुम्बई में है । रात के २ कब बजे पता ही ना चला ।

वसई में पहाड़ों के बीच स्थित सुरम्य शिव मंदिर तुंगारेश्वर के दर्शन मध्यरात्रि की वेला में किये जब सिवाय भोलेनाथ और हम यात्रीगण के अलावा सिर्फ दूर दूर तक फैली शांति थी । ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव के उद्दघोष के साथ हमने अपने रात्रि के इस सफ़र को विराम दिया ।

07 अगस्त 2015

दिन की शानदार भक्तिमय शुरुआत हुई शीश गंग अर्धांग पार्वति, सदा विराजत कैलाशी की दिव्य आरती से... भाई अभिषेक से भजन सुने और दिन प्रारम्भ हुआ ।

दोपहर को जो निकले तो सीधा जा पहुँचे माँ मुम्बादेवी के दरबार में । जवेरी बाज़ार के बीचों बीच स्थापित यह माता मुम्बादेवी जो की इस मुम्बई महानगर की अधिष्ठात्री देवी भी है की अद्भुत शयन आरती का परम  आनंद मिला ।

भाई सुरेश चंद्र शर्मा बंटी से मुलाक़ात हुयी....  मन प्रफुल्लित और हर्षित हुआ । हम फिर जो चल पड़े आगे तो जाकर सीधा रुके गेटवे ऑफ इंडिया पर जाकर । जगमगाती ताज होटल, शान से खड़ा गेटवे ऑफ इंडिया और पास ही हिलोरे मारता दूर तक फैला अरब सागर का विशाल समुद्र । मरीन ड्राइव की सड़क पर ।

पूरी रात एक से एक बातें और कब ३ बज गए ना पता चला ।

हर शाम-ए-मुम्बई जो याद छोड़ गयी हर यात्री के मन पर आज के हर एक पल में .... मुम्बई की रफ़्तार भरी जिंदगी और अपनेपन के दुर्लभ एहसास के बाद शिव के मंदिर से जुड़ा है ये और जिंदगी का सफ़र एक बार फिर अपनी राह पर है...चल रहे है...शुभ रात्रि आप सब को हमें तो ये सफ़र जारी रखना है बस चलते रहो....

8 अगस्त 2015 का दिन कुछ लेट निकला और हम तैयारी कर चुके थे कि अपने दिन को पुरानी यादों के साथ ताजगी से भर दिया जाए हर शाम-ए-मुम्बई जो याद छोड़ गयी हर यात्री के मन पर आज के हर एक पल में .... मुम्बई की रफ़्तार भरी जिंदगी और अपनेपन के दुर्लभ एहसास के बाद शिव के मंदिर से जुड़ा है ये और जिंदगी का सफ़र एक बार फिर अपनी राह पर है...

पुरानी बातों, यादों का एक अलग आलम है.... खुद अपने वर्तमान से लेकर भविष्य की बात भी यूं ही कर जाना और फिर स्वयम का आकलन कर उन लम्हों को जी जाना जिंदगी का एक अलग पहलु है । मुम्बई से निकले आधी रात को सीधा सीधा रास्ता जो पता नहीं कब किधर किस मोड़ पर मुड़ने को मजबूर करदे या कि इतना बेपरवाह करदे की हम बस जी उठे ।

हम बस अनवरत चल रहे है...सूरत से एक सीधा ड्राइव वे और हम बस बिना रुके  चुपचाप कहीं रात २ मिनट रुकते की मिल जाए एक चाय की प्याली जो आपको कूल और जगाये रखे ।

सुबह हो चुकी है और सब को ये सफ़र जारी रखना है बस चलते रहो....

श्रावण में यायावरी शुरू की जो ज्योतिर्लिंगों से होते हुए महानगरी के शिव मंदिर तक चलती रही यह यात्रा अविस्मरणीय रहेगी ।

आशा है आपको यह यात्रा वृत्तांत का संस्मरण पसंद आया होगा ।

जीवन नाम है गति का और दूर तक फैली इन राहों पर जब एक बार फिर हम सब गतिमान होंगे तो आप से साझा करेंगे अपने अनुभव और किस्से ।

जल्द ही एक बार फिर निकल पड़ेंगे एक नयी राह पर ।

धन्यवाद ।।

written by
Satyendra Dadhich