Wednesday, January 11, 2017

कविता : चाइनीज़ मांझा

बचपन में सूत डोर पतंग,
को ऊपर उड़ते देखा है ।
आया जब से चाइनीज़,
कइयों को कटते देखा है ।।

दाना पानी पंछी चुगते,
कलरव करते देखा है ।
तेज़ धार इस डोर से,
वो जीवन मिटते देखा है ।।

बच्चे जब करते मस्ती थे,
मस्ताना बचपन देखा है ।
कातिल डोर को छोड़ो यारो,
एक जीवन कटते देखा है ।।

भारतवंशी धर्म है जागो,
बेजुबान से आओ प्यार करो ।
दाना पानी डालो इनको,
चाईनीज़ से बहिष्कार करो ।।

सत्येन दाधीच
7425003500