आज की रात का रतजगा बड़ा अद्भुत होने वाला था यही सोचकर हम निकल पड़े थे ।
रात के धुंधलके में अब हल्की हल्की ठण्ड दस्तक देने लगी है । रात 11:15 पर निकले तो रुख सीधा किया पहाड़ों की वादियों की और ।
लोहार्गल ।। पहाड़ों के बीच फैला एक तीर्थ जिसको विश्व मानचित्र पर बहुत अच्छी पहचान मिली है उस आदियुग से जब महाभारत का महायुद्ध हुआ था ।
पहाड़ों की गोद में बसा यह तीर्थ हम नवलगढ़ वासियों के लिए आस्था का स्थल, पिकनिक करने की जगह और अपने पूर्वजो की अस्थियां तक विसर्जित करने का स्थान है । सोमवती अमावस्या हो या मालकेतु की 24 कोसीय परिक्रमा श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ पर लगी ही रहती है । वर्तमान में परिक्रमा की वजह से काफी भीड़ भाड़ थी तो हम चल पड़े आगे कर्कोटक तीर्थ ( स्थानीय बोलचाल में कहते है "किरोड़ी" ) की और ।
किरोड़ी .... मशहूर है अपने गर्म और ठन्डे पानी के प्राकृतिक कुण्डों की वजह से । चारो और फैले ताड़ और खजूर के पेड़ों की सघन छाया रात के माहौल को रूककर महसूस करने को मजबूर करती है पर चारों और फैला श्रद्धालुओं का जमावाडे से सरोबार और दुकानों से फैली वह रौनक जो पता नहीं कहाँ से आ गई है गोगानवमी से शुरू होने वाली इस 24कोसीय परिक्रमा के दौरान ।
रात है पर अधनींदे लोगों के इस हुजूम में कुछ लोग शायद जग से रहे है और सोच रहे होंगे इस दृश्य, इस माहौल, इस वातावरण के बारे में जिसे मेला कहते है.... मिलने का नाम मेला है और यहाँ हर कोई मिलता है... विविध भाषाई संस्कृति, राजस्थान से लेकर हरियाणा और सुदूर मुम्बई से आये ये आराध्य को अपनी श्रद्धा समर्पित करने आते है ।
कुछ मूलभूत सुविधाओं का अभाव है जिसे उपलब्ध अगर करवा दिया जाए तो यह तीर्थ सालभर महका रहने वाला पर्यटन स्थल बन जाए ।
खैर हम तो फिर चल पड़े आगे पर पता नही क्या मन किया की घुम्मकड़ी को विराम दिया ।
काले डामर की बनी यह सड़क और काले स्याह अंधे से अँधेरे से ढलती यह रात.... सर्द होने वाली आगे आती रातों का यह सफ़र जारी रहेग अनवरत
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