Sunday, September 13, 2015

मनुः के पुत्र हो... अजेय हो

मनु पुत्र हो तुम.......

सर्वश्रेष्ठता की हद से आगे तक सर्वश्रेष्ठ हो फिर क्यों दर-दर भटक रहे हो । संसाधन के रूप में उसने तुम्हे वो मस्तिष्क दे दिया जो कुछ भी उपजा सकता है.... अरे तुम्हारे पास उत्थान और पतन वाली वो सोच है जो तुम्हे किसी भी हद तक जुनूनी बना देती है फिर यह आस क्यों कि कुछ बेहतर "मिल" जाए...

कुछ भी तो "अप्राप्य" नहीं है "तुम्हारे" लिए... फिर क्यों शुरू करने से डरते हो वो "संघर्ष" जो तुम्हे ले जाएगा "सफलता" की चौखट पर ।

कर्म को अन्तःप्रेरणा से करने वाले हम इंसान अच्छे और बुरे का फर्क जानकर श्रेष्ठतम को ग्रहण करते है । समययोक्त निर्णय लेकर हम उसे पूर्णरूप से लागू करते है और वह हमारा जीवन विधान बन जाता है । दूसरों के लिए हितकारी या समाजकंटक ये सोच ही तो है जो बनाती है ।

अच्छे रहो.... बनो...ताकि और अच्छे उपजा पाओ विचार और मनुःपुत्र ।

Satyen Sonu©

contact me at +91 9309001689
email me s.j.dadhich@gmail.com

to read my thoughts visit my blog

http://satyensonu.blogspot.in