Wednesday, July 6, 2016

कैद ए इश्क

फिर ये मुमकिन कहाँ हो इश्क के बाद,
एक रोज जो हाजिर ना हुए उनके पास ।
करते देखा है मैंने तसल्ली उनको हर बार,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

मैंने डूबते देखा है खुद को दरिया ए इश्क में,
और महसूस करते है तेरा चुपके से चले जाना ।
नाउम्मीदी का आलम अभी कायम हर बार,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

मैं तन्हाई को अपना मुकद्दर समझ बैठा,
अब भी तेरे आने का इंतजार एक अरसे से है ।
मैं सोचता हूँ खुद को अब तेरे अक्स से परे,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

है तेरा इंतजार कि तेरे इकरार के बाद,
है रूठने का क्या मतलब इसरार के बाद ।
मोह्हबत है तुमसे हर पल मेरी जान मुझे,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

सत्येन दाधीच
7425003500