मन मगन आपके चरणों में,
गुरुदेव कृपा है क्या कहना ।
हूँ मस्त नाम श्रीराम में अब,
भवसागर पार हो क्या कहना ।।
यह सुंदर सौम्य जो सूरत है,
परम दिव्य सी मूरत है ।
मुस्कान है रहती होंठों पर,
महिमा का उनका क्या कहना ।।
जब मैं विचलित हो जाता हूँ,
घनघोर अन्धेरा पाता हूँ ।
तब दिव्य पुंज यूं दिखता है,
फिर रस्ते कट जाते क्या कहना ।।
जब वाणी उनकी सुनता हूँ,
बतलाए पथ पर चलता हूँ ।
काँटों का जंगल जो दुनिया,
फूलों से महके क्या कहना ।।
तकदीर से पाया है जिनको,
श्री गुरुवर वो पारसमणि है ।
"सोनू" सोना हो जाएगा
अनुपम है कृपा वाह क्या कहना ।।
सत्येन दाधीच सोनू
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