देखो आब ओ हवा की तरह,
दुनिया हर पल यूं बदल रही है ।
बदलाव की बयार चली यूं कि,
पल पल ये जिंदगी बदल रही है ।
बदलते वक्त का बदलाव मुमकिन है,
किसी के सूरज की शाम ढल रही है ।
मुक्कदर कहते थे जिसे शहर वाले,
कुछ अलग से उसकी चाल बदल रही है ।
साथ चलते थे सबके सब जुदा हुए,
क्यों कुछ हम सफ़र की राह बदल रही है ।
साथ दीखते थे कुछ चेहरे हर पल,
बदली सी चाल ढाल क्यों लग रही है ।।
मौक़ा ना मिले तो हिना हो जाते है,
एक पत्थर पे कायनात बदल रही है ।
बहुत देखे है नकाबों में छुपे चेहरे मैंने,
हवा के साथ उनकी शक्ल बदल रही है ।
सत्येन दाधीच©