माफ कीजियेगा लेकिन मेरा उद्देश्य किसी भी प्रकार से मेरे अपने राष्ट्र हिंदुस्तान या यहाँ के निवासियों की गरिमा के संदर्भ में कोई अनुचित भावना है क्योंकि मैं स्वयं इस महान भारत देश का एक भारतवंशी नागरिक हूँ जिसे अपने राष्ट्र और राष्ट्रीयता पर अभिमान है किन्तु कुछ घटना और बदलते समय के चक्र के कारण कुछ अजीब कहने की इच्छा जाग्रत हुई ।
चलिए हिंदुस्तान की बात करने से पहले जाने की असल हिंदुस्तान क्या है ? चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर "भारत" और आर्य जाति के क्षेत्र के कारण कभी इसे "आर्यावर्त" भी कहा गया था लेकिन यह "हिन्दुस्तान" कहा गया मुगलों द्वारा क्योंकि यहां हिन्दकुश नाम का पर्वत था और उसके आस पास रहने वाले लोग हिंसा से दूर थे इसलिए हिन्दू कहलाये ( हिंसायाम दूयते सः हिन्दू ) इसका अर्थ यह था कि यहां के लोग शांतिपूर्ण तरीके से जीवन यापन करने में विश्वास रखते थे ।
आप ने शायद सुना भी हो कि पुराने जमाने में काफी मंदिर स्वर्ण, बेशकीमती जवाहरात और अन्य कलात्मक समृद्धि से परिपूर्ण थे और यहां पर लोग दूर देशों से पठन-पाठन के लिए भी आते थे क्योंकि तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय इसी हिंदुस्तान में थे ।
आततायी मुगलों ने जमकर लूटा इस देश को लेकिन हिंदुस्तान सोने की चिड़िया थी और एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इस महान राष्ट्र की नस-नस में थी जी आज भी महसूस की जा सकती है । संस्कृत भाषा, व्यापार, वाणिज्य, स्थापत्य, अद्वितिय आदर, आदर्श आचार-विचार इस देश की पहचान है जो उस समय अपने स्वर्णिम काल में थे ।
फिर समय आया अंग्रेजो का जिन्होंने व्यापार के बहाने भारत में अपने पैर जमाये और शुरू करदी हिंदुस्तान को इंडिया बनाने की प्रक्रिया ।
अंग्रेजों को बखूबी पता था कि भारत अपनी संस्कृति और मानवीय मूल्यों के कारण पूरे विश्व का गुरु रह चुका है और इनका बौद्धिक स्तर भी अन्य देशों की तुलना में काफी उन्नत है साथ ही यहाँ की जमीन उपजाऊ होने के साथ प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ सम्पदा से सम्पन्न है ।
फिर उन्होंने दोहन किया ना सिर्फ खनिजों का बल्कि भारतीयों के मस्तिष्क में ब्रितानी सभ्यता का बीजारोपण भी किया । किसानों, मजदूरों को लगान और मजदूरी के जरिये गुलाम बनाने का काम तो राजा महाराजाओं ने काफी पहले कर ही दिया था तो इन्होंने सिर्फ उन्हीं रियासत के राजा महाराजाओं की आपसी फूट का फायदा उठाकर ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापार के बहाने हुकूमत करना शुरू कर दिया ।
अंग्रेज़ पूरे देश से भर भर कर सम्पदा ब्रिटेन भेज रहे थे और उनका विरोध करने वाले लोगों का दमन करने का काम करने लगे ।
फिर हिंदुस्तान के लोगों ने इस कुचक्र को समझकर विद्रोह का बिगुल बजाया तो हमे 200 वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त एक देश मिला जिसे अंग्रेजों ने इंडिया बना दिया था, एक समय विश्व गुरु रहा हिंदुस्तान अपने वजूद को नए सिरे से तलाश शुरू करने के लिए तैयार था लेकिन अब एक नई समस्या थी पाकिस्तान और बांग्लादेश जो उसके खुद के विभाजन से बने थे उसके लिए समस्या खड़ी करने को तैयार थे ।
आज आजादी के वर्षों बाद भी पाकिस्तान की समस्या हिंदुस्तान के लिए जस की तस बनी हुई है जो उसे विभाजन के साथ मिली है और एक ऐसा शासन तंत्र मिला है जो घोटालों के रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड तोड़ने में नेताओं की मदद करता रहा है ।
इन सबको ठीक करने के लिए एक लंबा समय तक इंतजार करना चाहिए लेकिन वर्तमान सरकार ने वाकई बहुत कम समय में अपने प्रयत्न करते हुए ना सिर्फ डिजिटल इंडिया की बात की बल्कि अपने सांस्कृतिक मूल्यों की बात को भी प्रधानता से लेकर चलने की बात की है, जिससे हम लोगों का ना सिर्फ विकास हो बल्कि हम बौद्धिक स्तर पर भी विकसित हो ।
तो यह था एक समय का भारतवर्ष जिसे मुगल हिंदुस्तान कहते थे अंग्रेजों ने इंडिया बना डाला ।
सत्येन दाधीच
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