Saturday, March 24, 2018

प्रभु राम चरित

दुष्ट दलन संहार जो,
भगत हित करते आठो याम ।
सेवक जन के सुखदायक,
ऐसे है प्रभु मेरे राम ।।

नवमी चैत्र मास की आई,
त्रेता युग में आये राम ।
लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न भाई,
दशरथ नंदन मेरे राम ।।

मात कौशल्या स्तुति कीन्ही,
बालरूप में आये राम ।
सुंदर मूरत खूब रीझते,
मनमोहन मेरे प्रभु राम ।।

ताड़का मार मुनि सुख दीन्हा,
यज्ञ पूर्ण करवायो राम ।
चरण धूरि ऋषि पत्नी तारी,
चले जनक पुर आगे राम ।।

तोड़ धनुष सीता को ब्याहे,
हुए प्रभु अब सीताराम ।
राजतिलक की हुई तैयारी,
लेकिन हो गया अद्दभुत काम ।।

वन जाने को कहकर बोली,
कैकेयी सी माता राम ।
चले नमन कर वनवासी हो,
ऐसे आज्ञाकारी राम ।।

केवट की फिर नाव चढ़े,
जो सबको पार लगाते राम ।
लीला अजब दिखाते पल पल,
मर्यादा में रहकर राम ।।

सूर्पनखा के नाक कान,
असुरों के शीश उतारे राम ।
रावण सीता ले गया लंका,
कहे जटायु हे प्रभु राम ।।

प्रेम भाव अनुराग के भूखे,
शबरी बेर खिलाती राम ।
बाली अनुज मिलेगा आगे,
होंगे तब सारे ही काम ।।

हनुमान सुग्रीव से,
हुए मित्रवत लक्ष्मण राम ।
बाली दलन किया प्रभु पल में,
सीता खोजो करदो काम ।।

हनुमत सिंधु तीर से कूदे,
जली जो लंका नगर तमाम ।
आस संदेसा दे माँ सीता को,
लौटे जहाँ बैठे श्रीराम ।।

देरी ना हो जाये तो प्रभुवर,
मन विचलित है उनका प्रभु राम ।
ह्रदय आपके निज चरणों में,
दुष्टों का हो काम तमाम ।।

सिंधु बन्ध रामेश्वर पूजा,
शिव को खूब रिझाते राम ।
महिमा दर्शन की अति भारी,
रटते शिव जय जय श्री राम ।।

रावण अनुज विभीषण आये,
शरणागत शरण लगाते राम ।
लक्ष्मण शक्ति जब लग जाती,
पीड़ अश्रु भर जाते राम ।।

देख हाल आराध्य का,
संजीवन लाते हनुमान ।
सेवक प्रभु की अद्दभुत रीति,
यही साक्ष्य है यही प्रमाण ।।

मेघनाद और कुंभकर्ण को,
पहुचाये अपने श्रीधाम ।
राक्षस कुल रावण सह मारा,
पृथ्वी भार हरे प्रभु राम ।।

चरित अनन्त युगों तक कीर्ति,
श्रुति और शेष भी कहते राम ।
कहकर कैसे उसे बखाने,
नही कह सकते बात तमाम ।।

राम राम जो राम को रट लूँ आठो याम ।
राम राम बस सत्य है बाकी झूठ तमाम ।।

सत्येन दाधीच
7425003500

Thursday, March 22, 2018

जान जाने जानेमन

जान  लिया  तुझे  जाने जाना ,
जान  जाए  तू  ना  जाना,
जा  है अटकी  सिर्फ  तुझमे ,
जा  न  जाए  तो  तू  जान  जाना,
  जान  मेरी  जान  तुझमे ,
तुझे  आज  मैं  मेरी  जान  कह्दूं ,
जान  मांगे  गर  जो  मुझसे ,
जां  के  सामने  जान  रख्दूं,
जो  यकीं  जां  रखे  मुझमे ,
जां  क्या  दिल ओ  जान दे दूं ,
अब  तो  जान  ले  ये  जमाना ,
मेरे  इश्क  को  अपनी  जान  कह्दूं …
लेने  देनो  से  ऊपर  जान  उनकी ,
जान  कहकर  क्या  जान  लेंगे ,
वो  हम  से  दूर बैठे है  इतने ,
मिले  जो  हमसे  तो  क्या मान  लेंगे .....

सत्येन

Saturday, March 3, 2018

विवेचना विचारों की

अभिव्यक्ति की आजादी के सही मायने तभी है जब आप अपने विचारों के प्रवाह को शुद्धतम रखते हुए वास्तविक स्थिति, स्वरूप और समसामयिक बात कह जाए ।

क्रांति असंभव नहीं है लेकिन जब आप किसी भी तरह से क्रांति चाहते है तो आपको अपने विचारों की ऊर्जा को प्रतिपल कायम रखना होगा ।

मेरी बात को अन्यथा न ले क्योंकि मैंने आजतक फेसबूक पर वही लिखा है जो कहीं ना कहीं लागू हो सकता है या यूँ कह दूं कि साध्य है किंतु मैं किसी को अपने विचारों को अनुकरण करने का ना तो अनुरोध करता हूँ और ना ही यह चाहता हूँ कि उसे कोई तर्क की कसौटी पर तौले ।

डिज़िटल उपवास शब्द अच्छा है लेकिन अगर यह नेट बन्द करने को लेकर कहा गया है तो गलत है क्योंकि उपवास स्वैछिक होता है ना कि थोपा हुआ ।

कश्मीर बन जाता है अपना शहर एक दिन के लिए जिसकी शायद मेरे हिसाब से कोई आवश्यकता नही होती है क्योंकि हम वाकई शांतिपसन्द है ।

सत्येन