Friday, July 31, 2015

ख्वाहिश एक काफी....

वाकिफ हूँ मुद्दत से बेइन्तहा दर्द से मैं,
अब दर्द से बेदर्द होने को दिल करता है ।
बेदर्द होकर गम दूर करने को चाहा है,
बाद मुद्दत के खुश होने को दिल करता है ।

ख्व्हाहिशैं बे पनाह मांगती है अब पनाह,
तेरे साथ सच करने को होने को दिल करता है ।
आज खुशियों की चाह क्यों है इस कदर,
बस थोड़ा मुझे अब खुश होने को दिल करता है ।

लिखते है मिट जाती है यादें उनकी उन यादों से,
तेरे वादों को याद करने का दिल करता है ।
कुछ निशाँ है इस कदर मेरे जेहन में उसके,
ना मिट तू अ मेरी जिन्दगी से अब तुझे जीने को दिल करता है ।

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Satyen Dadhich

खुद की पहचान

यह कुछ जाना पहचाना जैसा है । कहीं पर सबसे अलग या अलहदा । क्या कभी विरोधाभासी सा या फिर एकदम समानांतर चलने वाला । कैसे और कब खुद को आप भूल जाते हैं और शुरु हो जाता है स्वयम को हम के रूप में स्थापित करने की जद्दोजहद वाला संघर्ष ।

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Monday, July 27, 2015

पृथ्वीसिंह

कल रात एक ऐसे जिंदादिल शख्स से मुलाक़ात हुई जिसमे समय से लड़कर जीतने का अद्भुत जूनून दिखा ।

जीरो से शुरू कर मानवता को ध्येय रखकर खुद को ना सिर्फ स्थापित किया बल्कि अपने पिता से विरासत में मिले गुण ईमानदारी, अनुशासन और सैदेव दूसरों की सहायता में तत्पर रहना इन्होने अपने आपमें आत्मसात किया है ।

यह कहानी नहीं हकीकत है और एक मिसाल है उन लोगों के लिए जो साधनों और भाग्य के भरोसे बैठकर कामयाबी की मंजिल की राह पर चलने से डरते है ।

पृथ्वीसिंह जी की जिन्दादिली को शब्द देने की कोशिश कर रहा हूँ ।

सलाम है उनके जज्बे को जिससे हर कोई प्रेरणा लेकर अपने भाग्य को बदल सकता है ।

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संस्कृत का एक बड़ा प्रसिद्द श्लोक है की

उद्यमेन ही सिध्यन्ते न च कार्य मनोरथ ।
न सुषुप्त सिंघ्स्य मुखे मृगा पर्विश्यन्ति ।।

अर्थात शेर जंगल का राजा है पर उसे भी अपना शिकार करने के लिए परिश्रम करना पडता है । हिरण स्वयम उसके मुंह तक नहीं आ जाते ।

एक पुलिस अधिकारी पिता की संतान जिसने बचपन से अनुशासन और मेहनत को विरासत में पाया वही जानता है की कार्य कैसे करना है ।

Saturday, July 18, 2015

दोस्ती के लिए....

मिलती अगर दोस्ती दूकान पर उधार में यारों,
बेइन्ताह ले लेता कभी ना चुकाने के लिए ।।

तुम्हे मौक़ा ना देता मैं रूठ जाने का एक पल भी,
गर रूठ जाते फना जिंदगी कर दूं मनाने के लिए ।।

जिस दिन ये आंखें बंद होगी बस इंतज़ार होगा,
कोई दोस्त कह दे हमेशा को सो जाने के लिए ।।

मुक्कदर से मिली है ये दोस्ती अ दोस्त तेरी,
लगती कम क्यों जिन्दगी अब जी जाने के लिए ।

खोल के सोते है दरवाजे घर के बाद-ए-दोस्ती,
आंखें खुली है तेरे दीद हो जाने के लिए ।

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Sunday, July 12, 2015

दिल करता है

कभी कभी देती है शिकश्त ये मेरे यार,
फिर भी अ जिंदगी तुझे जीने को दिल करता है ।
होती है कभी कुछ तीखी सी तकरार,
फिर भी रूठ कर मान जाने को दिल करता है ।।

फिसल जाती ही है हर पल मिट्टी सी मेरे यार,
फिर भी इसको हाथ में रोकने का दिल करता है ।।
थाम लिया ये भ्रम कायम है हर बार,
बहुत बुरा हूँ फिर भी अच्छा होने को दिल करता है ।।

चलता हूँ लम्हा दर लम्हा इसके साथ,
कुछ पल इसको थाम के बैठने को दिल करता है ।।
ये दौडती तेज़ है चलती रहे रूकती नहीं,
कर मुक्त हो गतिमान हो जाऊ दिल करता है ।।

Satyen Dadhich Sonu
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Sunday, July 5, 2015

मस्ती ग्र्पुप

जमा ली हमने इस जमाने में वो हस्ती ।
मस्त लोगों का ग्रुप नाम है इसका मस्ती ।।

वाट्स अप से शुरू हुआ सफ़र ये सुहाना ।
मस्त लगता है आपके सन्देश आना जाना ।।

स्वागत होता है दिल से नए का सबसे जुड़ जाना ।
कभी चुभ जाता है किसी यार का छोड़ कर जाना ।।

नयी अनोखी बातें दुःख सुख साझा होता है ।
मुश्किल एक की नहीं ग्रुप पूरा साथ होता है ।।

सभी समाज सेवा करके कभी पुण्य कमाते है ।
कभी बैठ शीतला माई पर हम खूब धमालें गाते है ।।

खुद हँसते है हँसकर लोगों को और हँसाते है ।
मस्ती में हम मस्त है बन्दे मस्ती वाले कहलाते है ।।

Friday, July 3, 2015

सत्येन और उसकी दुनिया

Thanks a lot to you who always stay tune to me for my more Magical and Meaningful Thoughts, Poems, Gazal, Bhajans, write up and every form of writing.

Satyen Dadhich Sonu
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गम की अकीदत

तड़प है इस कदर यारों, कुछ तन्हाइयों मे कुछ अकेले होने को, साया भी छोड़ जाता है दुहाई दे साथ ना होने को....

आँखों से कभी अश्क चुभ जाते है, दिल भी पत्थर सा क्यों जम गया है, हर लम्हा यूँ थम क्यों गया और परछाई भी साथ कतराती है मेरी होने को, ...

अपने आप को कर दूँ पेश-ए-अकीदत तेरी मोहब्बत मे, खुद से फ़ना होने को, मिल जाए तू तो हूँ मैं तैयार गुम भी होने को...   

Satyen Sonu©

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