Friday, July 31, 2015

ख्वाहिश एक काफी....

वाकिफ हूँ मुद्दत से बेइन्तहा दर्द से मैं,
अब दर्द से बेदर्द होने को दिल करता है ।
बेदर्द होकर गम दूर करने को चाहा है,
बाद मुद्दत के खुश होने को दिल करता है ।

ख्व्हाहिशैं बे पनाह मांगती है अब पनाह,
तेरे साथ सच करने को होने को दिल करता है ।
आज खुशियों की चाह क्यों है इस कदर,
बस थोड़ा मुझे अब खुश होने को दिल करता है ।

लिखते है मिट जाती है यादें उनकी उन यादों से,
तेरे वादों को याद करने का दिल करता है ।
कुछ निशाँ है इस कदर मेरे जेहन में उसके,
ना मिट तू अ मेरी जिन्दगी से अब तुझे जीने को दिल करता है ।

#LifeLine
#कलाम-ए-कलम
#Satyen

Satyen Dadhich