Saturday, October 17, 2015

स्वयमेव मृगेंदृता.... मानव

सब कुछ प्राप्य है अगर वो सहज प्रयत्न से ही उप्लब्धभो जाए तो क्या बात....  फिर कोई क्यों साध्य करने के यत्न करे पर नहीं इसी संघर्ष में ही तो वो आनंद है जिसे हम अपने जीवन मैं पाकर फिर एक नए लक्ष्य को निर्धारित कर चल पड़े । बस चलना अनवरत है...

चलिए और बस चलते रहिये क्योंकि गतिमान ही स्वीकार्य है इस दुनिया में बाकी निर्जीव को कोई भी एक पल नहीं चाहता की वो इस दुनिया में रहे । हाँ कुछ भावनाओं की बात है तभी तो हर्षोउल्लास या दुखः जैसी परिस्थिति दृश्यमान होकर मानस पाटल पर सदैव के लिए अंकित हो जाया करती है ।

जीवन को उमंग और उत्साह की सरल दिशा दो... निराशा और हताशा तुम्हारे लिये वो राह है जिस पर तुम्हारा लक्ष्य नहीं तो मुङो हिम्मत से और जी जाओ एक ऐसा जीवन जो आपको स्थापित करदे ।

यही तो तुम होना चाहते थे... खुद आदर्श हो जाओ ऐसा बन कर एक मिसाल बनो... तुम अद्भुत हो उस ईश्वर की श्रेष्ठ कृति "मानव"

Satyen Sonu©

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