कुछ को साथ लेकर ये कारवां शुरू किया था और तब सहज ही सब ये वादा करते थे की चाहे धूप हो या छाँव हम तो यूं ही साथ चलते रहेंगे ।
मतलबी लोगों को दोस्त मान बैठना इंसान के साहस को तोड़ देता है । शुक्र है की धीरे धीरे सब से अलग खुद को कर पाया हूँ । अनवरत चलने वाली इस दुविधा का अंत बड़ी मुश्किल से हुआ है ।
कई वादों को टूटने का दर्द देखा है । मीठी मीठी बात करने वालो की कडवी सच्चाई महसूस की तब जाकर पता चला की "अपना" हर कोई बन सकता है पर बात करना और वादा निभाना दो अलग अलग पहलु है जो कभी एक नहीं हो सकते ।
दो लाइन उनके लिए " हर बात ओ ज़ज्बात को झूठा मान बैठे, बिन मुझे अजमाए वो मुझे जान बैठे"
#सत्येन