*गुरुदेव थे नहीं...है...*
कौन कहता है गुरुदेव चले गए
ये तो मधुकर की खुश्बू है
आज यहाँ कल कही और फैलेगी
बस महकाती रहेगी जिन शासन को
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बहोत अंतर में वेदना है
बहोत कुछ लिखने का
मन कर रहा है पर
शून्यमनस्क हो गया हूं
*क्या है जयन्तसेनसूरि म.सा..?*
सिर्फ एक आचार्य..?
सिर्फ एक गच्छाधिपति..?
सिर्फ त्रिस्तुतिक संघ के गुरु.?
*नहीं नहीं नहीं....*
त्याग, सहनशीलता,करुणा,
शासन समर्पण उदारता,
परार्थ व्यासनिता
नवकार साधना एवं
प्रभावकता के सागर थे गुरुदेव
*जिनकी रगों में रक्त नहीं*
*शासन प्रेम बहता था*
*जो अखंड गुरु आज्ञा के पालक थे*
शासन सेवा के लिए गुरुदेव ने
अपने स्वास्थ्य को भी
अनदेखा कर दिया था...
*जो दिन रात*
*सुबह सांम,ठंडी,गर्मी*
*बस सिर्फ और सिर्फ*
*मेरा शासन...मेरे महावीर..*
*मेरा संघ...मेरे गुरु...मेरा गच्छ..*
भांडवपुर तीर्थ
एक दिव्य भूमि...
इसी तीर्थ से गुरुदेव की
सूरिपद यात्रा शुरू हुई थी और
इसी तीर्थ में महावीर के पुत्र
महावीर में विलीन हो गए...
मानो की महावीर से कहके गए की
प्रभु आपने जो जिम्मेदारी दी थी
वो पूर्ण निष्ठा से निभाई है और
में आपके लिए ही जिया..
उस दिन से आज तक
नहीं रुका हूं और
नहीं रुकना चाहता
प्रभु अब ये देह नहीं कर पायेगा
आपकी एवं गुरु आज्ञा का पालन
में आया हु तुझमें समाने...
*जयन्तसेनसूरि थे है और रहेंगे*