Tuesday, April 17, 2018

बस रह गए.... कविता

यूँ बस तेरी मेरी के फेर में रह गए ।
जज्बात दफन थे दफन रह गए ।।

जो रुमाल दिए थे उसने निशानी कहकर,
मेरे जनाजे का वो बस होकर कफन रह गए ।

मैंने आवाज दी मुँह से हटा कर चादर,
लोग बोले पिछली गली मे सनम रह गए ।

ना यकीन मानिए पर यह भी सच निकला,
हम तो छोड़ जहाँ चले तन्हा वो रह गए ।

फूलों से ढकी कब्र में चुभते काँटे बेहिसाब,
खाक होकर भी खाकसार हम रह गए ।

सत्येन

Tuesday, April 3, 2018

भारत बंद

हिंदुस्तान के विश्व गुरु के रूप में दिए गए वसुधैव कुटुम्ब के संदेश को शायद आज की पीढ़ी भूल रही है तभी तो आज निरर्थक बातों पर भारत बंद करके कौनसा हित साधन कर रहे हैं हम ?

कभी किसी बात पर, कभी किसी मुद्दे पर सरकारी संपत्ति की तोड़फोड़ तो कभी दंगो के रूप में अमन चैन को भंग करने की कोशिशें बीते कुछ समय से बहुत ज्यादा बढ़ रही है जो हिंदुस्तान को रोकना चाहती है हर पल आगे बढ़ने से ।

अब जरा सा हट कर सोचना होगा कि आखिर आज तक यह आरक्षण आंदोलन क्यों ना हुआ और ना किसी को किसी कानून व्यवस्था से कोई समस्या थी लेकिन जब से हिंदुस्तान की जड़ो में रचे बसे भ्रष्टाचार को निकालने की कवायद शुरू हुई तो अचानक से मानो देश की सारी विरोधी पार्टियों ने एक होकर सरकार के खिलाफ हर दांव आजमाने की तैयारी की ।

Monday, April 2, 2018

Poem : एकता

कभी ये तो कभी वो,
मिलके रोज़ भारत बंद करेंगे ।
आधे सवर्ण आधे दलित,
हिंदुस्तानी बस यूँ ऐसे बंटेंगे ।।

सैतालिस में बाँट दिया पहले,
हिन्दू मुसलमां के नाम पर ।
नेता ने मिल नेताओं के साथ,
किया छल आजादी के नाम पर ।।

समझदार तब भी न थे हम,
अब कौनसी समझा करेंगे ।
नेताओं की लगाई में आग में,
जल जल के बस यूँ मरेंगे ।।

जो नही आये कभी सामने,
मरहम लगाने वो नेता है ।
एकता उसकी दुश्मन है,
तभी वो सबको बाँट देता है ।।

मानसिकता को कुछ यूं समझो यारो,
ये नेता तो जीवन भर बस यूँ ही करेगा ।
तुम आपस में लाख लड़ो जात पांत पर,
हर हाल में अपना हिंदुस्तानी मरेगा ।।

खाई जो नफरत की बनाते है नेता,
आओ मिलके एक हो मिटायें यारों ।
हम एक थे और एक रहेंगे हर पल,
बाँटने वालों को चलो दिखाए यारों ।।

सत्येन दाधीच
7425003500