Tuesday, April 17, 2018

बस रह गए.... कविता

यूँ बस तेरी मेरी के फेर में रह गए ।
जज्बात दफन थे दफन रह गए ।।

जो रुमाल दिए थे उसने निशानी कहकर,
मेरे जनाजे का वो बस होकर कफन रह गए ।

मैंने आवाज दी मुँह से हटा कर चादर,
लोग बोले पिछली गली मे सनम रह गए ।

ना यकीन मानिए पर यह भी सच निकला,
हम तो छोड़ जहाँ चले तन्हा वो रह गए ।

फूलों से ढकी कब्र में चुभते काँटे बेहिसाब,
खाक होकर भी खाकसार हम रह गए ।

सत्येन