Tuesday, March 24, 2015

पंक्तियाँ अनमोल....

कुछ पंक्तियाँ....

शब्दों के दांत नहीं होते है
      लेकिन शब्द जब काटते है  
        तो दर्द बहुत होता है
और   
कभी कभी घाव इतने गहरे हो जाते है की
              जीवन समाप्त  हो जाता है
                परन्तु घाव नहीं भरते.............

इसलिए जीवन में जब भी बोलो मीठा बोलो मधुर बोलों

'शब्द' 'शब्द' सब कोई कहे,
'शब्द' के हाथ न पांव;

एक 'शब्द' 'औषधि" करे,
और एक 'शब्द' करे 'सौ' 'घाव"...!

"जो 'भाग्य' में है वह भाग कर आएगा..,
जो नहीं है वह आकर भी भाग 'जाएगा"..!

प्रभू' को भी पसंद नहीं
'सख्ती' 'बयान' में,
इसी लिए 'हड्डी' नहीं दी, 'जबान' में...!
जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,

एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।

और....

जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,
किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।

जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,
एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना।

और….

जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,
अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।

जीभ जन्म से होती है और मृत्यु तक रहती है क्योकि वो कोमल होती है.

दाँत जन्म के बाद में आते है और मृत्यु से पहले चले जाते हैं...  
  क्योकि वो कठोर होते है।

छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर
बड़ी रहमत...
बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार
देती है..
किस्मत और पत्नी
भले ही परेशान करती है लेकिन
जब साथ देती हैं तो
ज़िन्दगी बदल देती हैं.।।

"प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा।

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी।

साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा।

किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं ।
मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती ।

एक साँस भी तब आती है,
जब एक साँस छोड़ी जाती है!!"

Sunday, March 15, 2015

पवन तनय

हनुमान जी  के इतने स्त्रोत है बहुधा साहित्य लिखा गया है परंतु आर्त भाव रखने वाले और किंचित उन लोगो के लिए जिनको संस्कृत का ज्ञान नहीं है गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा के रूप मैं रामचरित मानस के किष्किन्धा काण्ड जामवंत जी के श्री हनुमान जी को बल स्मरण कराने की चौपाई को उदार चित्त से लिख कर एक सम्पूर्ण स्तुति का रूप दे दिया है । मेरे निजी विश्वास की बात है और यह अनुभूत भी है की आप अगर अपने किसी कार्य का निवेदन बजरंग बली के श्री चरणों में करते हो तो वह कार्य सफल ही होगा ।

    पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना ।
  कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होत तात तुम पाहि ।

जामवंत जी कहते है की हे तात हनुमान जी आप पवन के पुत्र हो इसलिए आपका बल पवन के समान है । भावार्थ यह है की वायु इस संसार को चलाने और मिटाने मे समर्थ है तथा पञ्च महाभूत जिनसे मिलकर इस मानव शरीर का निर्माण हुआ है उसके सांस के लिए प्राणवायु है । वानरराज सुग्रीव ने किष्किन्धा से रवाना होते समय कहा था की एक मास में माँ सीता की सुधि लेकर आनी है अन्यथा जीवन खत्म । इन वानरों के जीवन को बचाओ ।

हे पवन पुत्र आप बुद्धि, विवेक और विज्ञानं के अपार भण्डार हो । बुद्धि का अर्थ यहाँ बोद्धिक चेतना से है । आप जानते हो की जिस जगह आप जा रहे हो वह आप से सदा सर्वथा अनभिज्ञ है किन्तु आप स्वविवेक से उन आने वाली दुस्तर परिस्थितियों को भी अपने कार्य करने के विशिस्ट ज्ञान विज्ञान द्वारा संभव करना जानते हो । अब यहां तक जो जामवंत जी ने कहा वो उनको सावधान करने का तथा उनसे यह विनय का था की आर्तजनो के प्राण बचाओ । लेकिन अगली पंक्ति में उन्होंने श्री हनुमान जी को उनके भूले हुए बल की बहुत अद्भुत तरीके से याद दिला दी ।

कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होत तात तुम पाहि ।

जामवंत जी कहते है की इस जगत में ऐसा कौनसा कार्य है जो की आप ने किया नहीं और नहीं कर सकते । बहुत बड़ी बात एक छोटी सी लाइन में पवनपुत्र के विस्मर्त बल को जगाने हेतु । भावार्थ देखिये की जिसने पैदा होते ही सूर्य को लील्यो ताहि मधुर फल जानू  वह सूर्य तक बालपन मे पहुँचने वाला वीर बजरग आज चुप है । आप तो भय से सदा सर्वाथ दूर हो और श्री हनुमान जी एकादश रूद्र के अवतार है और भगवान् राम के अनन्य भक्त यह बात जामवंत जी भलीभांति जानते थे सो उन्होंने यह बात कही ।

इतना सुनते ही केशरीसुत ने कहा की हे जामवंत जी कहिये लंका को उखाड़कर, रावण को मारकर माता सीता को ले औन । जामवंत जी ने कहा नहीं तात आप सिर्फ पता लगाओ की माता सीता है कहाँ तो श्री हनुमान जी प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि जलधि लांघ गए अचरज नाही ।

तो बस अर्पण कीजिये इस आस्था के साथ की बेगी हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो । विश्वास रखिये श्री लक्ष्मण जी के लिए द्रोण गिरी पर्वत लाने वाले के लिए हमारे कष्टों का अंत करना दुरुह नहीं है ।       

।।जय श्री राम ।।                      ।। जय हनुमान ।।


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मेरी समझ में "सोच " महत्वपूर्ण है क्योंकि अलग तरीके से सोच और विश्वास ही एक दिन महान बन जाने का कारण बनते है


Friday, March 13, 2015

मेरा हिन्दुत्ववाद और मैं

यहाँ हिंदुत्व की बात करने वाले और हिन्दू होने का दम भरने वाले कितने बंधू लोग विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े है । शायद की कोई एक आधा....राजनैतिक दलों से 99 प्रतिशत जुडे हुए है । अब बताओ कितना हिंदुत्व है । मेरे एक शब्द का भी उद्देश्य आपको या आपकी भावनाओ को आहत करना नहीं है सिर्फ मेरे  विचार व्यक्त करना है ।

बात अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक की नहीं है । बात यहाँ उन परिपाटियों उन रस्मो की है जिन्हें हम आदिकाल से निभाते आये है । अगर कोई आपको कहे की 2016 से आप मंदिर मैं आरती रात को 12 बजे करेंगे और 2017 से आपको रात के 3 बजे करनी है । तो क्या आप मानेंगे । नेताओ को बीच से हटा दो ।

जिस परिवार ने दंगों के दर्द को नजदीक से महसूस किया है उन्हें यह पता है की ये नेता लोग कुछ नहीं होते इनकी कोई जात नहीं होती । तुम्हारे समाज का हिस्सा नहीं है वो लोग फिर उनको तुम्हारे हक़ के या बेहक़ के फैसले करने का अधिकार देकर तुम अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का दुस्साहस कर रहे हो । बात अगर हिंदुत्व की है तो हिंसायाम् दूयते स हिन्दू । जो हिंसा से दूर है उस हिन्दू के साथ इस प्रकार की दोगली राजनीति खेल यह परशान करने का खेल यह प्रशासन और  नेतागण खेल रहे है । हमारी आस्था और रीतियों के साथ जो खिलवाड़ करेगा याद रखो ये हिन्दू उसे कभी क्षमा नहीं करेगा ।

जाती पाँति और धर्म का भेदभाव करके हुंकार करने वाला इंसान क्या ब्लड बैंक में जाकर कभी नहीं पूछता की ये खून मुस्लिम, हिन्दू, सिक्ख या ईसाई में से किसका है । वहां अगर खून की जात सिर्फ इंसान है तो और जगह ये  भेदभाव नहीं होना चाहिए ।

मुम्बई दिल्ली और देश विदेश मैं रहने वाला हर हिन्दू जब जय बली बजरंग बली का नारा लगाएगा तो प्रशासन की आँखें खुलेगी । फ़ॅसबुक या व्हाट्स अप पर हिंदुत्व की बात चाँद पर बैठ कर भी की जा सकती है लेकिन अगर बात संस्कृति त्यौहार और रिवाजों की है तो फिर आओ मित्रो और अपना हर त्यौहार मनाओ ।

दिल तो है हिंदुस्तानी पर अगर मैं हिंदुत्व की बात करूँ तो वो आत्मा के अंदर है । मैं शांति पसंद हूँ तो गर्व से कह सकता हूँ की मुझे मेरे हिंदुत्व और मेरे हिन्दू होने पर गर्व है ।

#Satyen #हिंदुत्व #LifeLine

Monday, March 9, 2015

#LifeLine

how's the wordings...  please do Comment..

my sweetu...

i m so so so sorry....

please forgive me my betu...

i love you and wants to be forever yours....

i had talk to you in a rude way... i bag to say sorry for every mistake what i made...

Love me if any of my moment made you smile... if you felt happy by any of my act then my love don't leave me alone...

i can't live without you and its very true.

Forever and exclusively yours

Its Me... for You

Tuesday, March 3, 2015

गुरु प्रशस्त पथ

अध्यात्म जगत में वे ही गुरु हो सकते हैं, जो मनुष्य को ऊपर उठा कर आत्मिक उज्ज्वलता को प्रकाशित कर सकें। इसलिए गुरु वे ही हो सकते हैं, जो महाकाल हैं। अन्य कोई गुरु नहीं हो सकता। और इस आत्मिक स्तर पर गुरु होने के लिए उन्हें साधना का प्रत्येक अंग, प्रत्येक प्रत्यंग, प्रत्येक क्षुद्र, वृहत अभ्यास सभी कुछ सीखना होगा, जानना होगा और सिखलाने की योग्यता रखनी होगी। इसे केवल महाकाल ही कर सकते हैं, अन्य कोई नहीं। जिन्होंने अपने जीवत्व को साधना द्वारा उन्नत कर शिवत्व में संस्थापित किया है, वे ही काल हैं। और जो स्वयं करते हैं तथा दूसरे को उसके बारे में दिग्दर्शन कराने का सामथ्र्य रखते हैं, वे ही महाकाल हैं। अतीत में महाकाल शिव आए थे और आए थे कृष्ण। गुरु होने के लिए महाकाल होना होगा, साधना जगत में सूक्ष्म विवेचन कर सभी चीजों की जानकारी रखनी होगी। केवल इतना ही नहीं, उन्हें शास्त्र-ज्ञान अर्जन करने के लिए जिन सभी भाषाओं को जानने की आवश्यकता है, उन्हें भी जानना होगा। अर्थात् केवल साधना सिखलाने के लिए ही नहीं, वरन् व्यावहारिक जगत के लिए भी सम्पूर्ण तथा चरम शास्त्र ज्ञान भी उनमें रहना होगा और तभी वे अध्यात्म जगत के गुरु की श्रेणी में आएंगे। जो साधना अच्छी जानते हैं, दूसरे की सहायता भी कर सकते हैं, किन्तु उनमें पांडित्य नहीं है, शास्त्र ज्ञान नहीं है, भाषा ज्ञान नहीं है तो वे आध्यात्मिक जगत के भी गुरु हो नहीं सकेंगे। गुरु अगर कहता है कि ‘वैसा करोगे, जैसा मैं कहूंगा’ तो उसे यह भी तो बताना होगा कि शिष्य वैसा क्यों करे। इसी के लिए शास्त्र की उपमा की आवश्यकता पड़ती है।
शास्त्र क्या है? शास्त्र कह कर एक मोटी पुस्तक दिखला दी, ऐसा नहीं है। ‘शासनात् तारयेत् यस्तु स: शास्त्र: परिकीर्तित:।’ जो मनुष्य पर शासन करता है तथा उसके छुटकारे का, मुक्ति का पथ दिखला देता है, उसे शास्त्र कहते हैं। इसलिए गुरु को शास्त्र पंडित होना होगा, अन्यथा वे मानव जाति को ठीक विषय का ज्ञान नहीं दे सकेंगे। ‘शास्त्र’ माने वह वेद, जो मनुष्य को शासन द्वारा रास्ता दिखाए। शास्त्र माने जो मनुष्य को सत् पथ पर चलाए, जिस पथ पर चलने से मनुष्य को ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होगी और कल्याण होगा।
अब यह शासन क्या है? ‘शासन’ यानी जिसे शास्त्र में अनुशासन कहा गया है। ‘हितार्थे शासनम् इति अनुशासनम्।’ कल्याण के लिए जितना शासन किया जाता है, उस विशेष शासन को कहा जाता है अनुशासन। अध्यात्म गुरु को जिस तरह अपनी साधना स्वयं जाननी होगी और दूसरे को उसे बताने का सामथ्र्य रखना होगा, उसी तरह शासन करने का सामथ्र्य रखना होगा। साथ ही पे्रम, ममता, आशीर्वाद करने का भी सामथ्र्य
रखना होगा।
केवल शासन ही किया, प्रेम नहीं किया तो ऐसा नहीं चलेगा। एक साथ दोनों ही चाहिए। और शासन की मात्रा कभी भी प्रेम की सीमा का उल्लंघन न करने पाए। तभी होंगे वे आध्यात्मिक जगत गुरु। ये सारे गुण ईश्वरीय सत्ता में ही हो सकते हैं।

Monday, March 2, 2015

दो ख़त जो लिखे उसने...

लिखे थे तुमने ,
दो ही ख़त मुझको
एक था ,
जिसमे प्यार भरा था
और दूसरे में ,
शिकवा गिला था...
आज तक बस ,
इसी सोच में हैं दिल
कौन सा ख़त भला ,
और..
कौन सा बुरा था

वो प्यार का ख़त....

अरमानो के मेले उसके दिल में ,
मेरा दिल है उस बिन सूना ।
तुम वो हकीकत मेरा सपना,
तुझ बिन हर पल सूना सूना ।

कैसे कहूँ की क्या हो आप मेरे लिए । वो सपना जिसकी चाह हर लम्हे में थी, है और हर पल रहेगी । मेरा हर पल आपका हर पल इंतज़ार करता है । बस हाथ थाम कर साथ दो यकीन जानो की मैं अपने हर पल को तुम्हारी ख़ुशी के लिए सदा सदा रखूँगा । आपको खुश रख कर जिंदगी को जीते हुए महसूस कर खुश रहेगा । वादा है मेरा की आपको हर एक पल कभी कोई कमी ना महसूस होने दूंगा । वो बेपनाह प्यार कि जिस की चाह हर किसी को होती है अगर मिला तो कसम से आप के चेहरे पर हर पल मुस्कराहट देखूंगा । सिर्फ आप को खुश रखना चाह है क्योंकि आप वो प्यार हो जिसे फनी बन के जिया है । फनी को अगर कोई प्यार दे सकता है तो वो आप आप और सिर्फ आप । फनी आपके बिना नहीं । बेट्टो को प्यार से रखना मेरी सबसे बड़ी खव्हाहिश है ।

बस आप साथ दो ये जंग-ए-जिंदगी जीत जाऊँगा हर पल ।

हमेशा जो करेगा इंतज़ार वो सिर्फ

आपका हमेशा फनी....