आज कल ये दुनिया रंगीन से रंगहीन हो गई है,
चमक पैसों की फैली रिश्तों की ललक खो गई है ।
काट लेता है गला इंसान का अपना इंसान,
इंसानियत भी अब कहीँ हैवानियत हो गई है ।।
बदरंग बदनुमा ख़्वाब से आते है यादों में,
खुशनुमा जिंदगी खुद एक ख्वाब हो गई है ।
दर से है बेदर ये मीठे बोल की ख्वाहिश,
पड़ोसियों से नजदीकी बड़ी दूर हो गई है ।।
आँखों में सुकून नहीं मिलता एक पल भी,
सौ बार क्यों आँसुओं की बरसात हो गई है ।
तड़प है आज मिल जाने की किसी आदम से,
लुटेरे लोगों से तो कई मुलाक़ात हो गई है ।।
ठोकर तोड़े हर एक को सुना मैंने ताउम्र,
बन जाने की तमन्ना हर एक चोट के बाद हो गई है ।
नफरत है मेरी सुबह के उजाले से शायद सबको,
खुश है सब लोग के मेरी जिंदगी स्याह रात हो गई है ।।
बात कह दी ना मालूम उनके क़ासिद से क्यू मैंने,
आज बाद मुद्दत के तुमसे मेरी बात हो गई है ।
लिख के भेज दिया पैगाम उसने मुझ इंसा को,
मैं खुद खुदा हूँ तेरा तेरी खुदाई मेरे जज़्बात हो गई है ।।
Satyen Sonu©
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