Tuesday, April 7, 2015

अनकहे ज़ज़्बात और यादें

चिपका के रखे है रेडियम के टुकड़े कमरों की छतों पर,
असली तारों वाली चमकती अब चांदनी रात नहीं होती ।

इसकदर नहा लेते है बाथरूम में शॉवर की चंद बूँदों से,
वो बचपन की भिगोने वाली आजकल बरसात नहीं होती ।।

कश्तियाँ अब भी चलती है समन्दरों में लाख लेकिन,
वो कागज़ की कश्तियों सी उनमे बात नहीं होती ।

बात करते है हम आज भी तुमसे यादों में ही सही,
वो रूबरू करने वाली सी बहुत बात नहीं होती ।।

कागजो के बने जहाज़ों से आसां था सफ़र कभी,
अब उड़ने वाले एरोप्लेन में तुमसे मुलाक़ात नहीं होती ।

अब भी लिपटा के सोते है तेरे इंतज़ार को सीने से,
मुकम्मल तेरी याद के बिना कोई रात नहीं होती ।।

सुना है महंगा सोना हुआ बहुत इन दिनों,
रहता है इंतज़ार आँखो को पर सोने की रात नहीं होती ।।

Satyen Sonu©

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