Tuesday, April 7, 2015

Extent of life via karmyoga

कर्म योग सहज नहीं है । यह वास्तविक जगत से साक्षात् कर आधार मन को आत्मकेंद्रित करने का अद्भुत साधन है । वह जो आसानी से दिख पड़ता है पर होने मे असंभव जान पड़ता है कर्म योग है । स्वयं को प्रवृत रखना और साथ ही साथ खुद को निर्लिप्त रखना कर्म यही सिखाता है ।

आद्य या अंत नहीं प्रारंभ से लेकर निःशेष होने तक की अवस्था को सहेज कर जीना कर्मयोग है । यह दुर्लभ तो है किन्तु दुरूह नहीं है । कर्ता के लिए स्वयं प्राप्य और अकर्मण्य के लिए स्वप्नमात्र है ।

अनादि काल से देव, मुनि और मानव ही नहीं अपित जीव मात्र अपने सहज कर्मयोग को जीते है । प्रयत्न से या यत्न से अपने कर्म काल ( जीवन को अगर यही नाम दिया जाए तो उचित है ) का निर्वहन करता है ।

Satyen Sonu©

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