Saturday, January 30, 2016

Short span.... joyful life

see in my opinion reliability, revaluation and realisation of any relationship is always depending upon dedication and understanding. Hey don't accept me as a Answer mode enabled human machine.. but for you there are few lines off course..

Society is the atmosphere what makes us "Social"... so just move yourself towards circumstances when you can be a part of the so call "Society".

Imagine simply that good and bad, best and worse come to our every moment thousands times...

The best what you lived is "Life"

The worse what never could forgotten is "Past"..

There are a period of joy or sorrow is "Present"

And always much awaited "Future" will be a Turning Point.

Its what i know.. simple live

Satyen Dadhich

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मेरी समझ में "सोच " महत्वपूर्ण है क्योंकि अलग तरीके से सोचना और स्वयं में अटूट विश्वास ही एक दिन महान बन जाने का कारण बनते है । ©®

Wednesday, January 27, 2016

पानी रे पानी

आज पूरे भारत में पानी की कमी पिछले 30-40 साल की तुलना में तीन गुणा हो गयी है । देश की कई छोटी-छोटी नदियां सुख गयी हैं या सूखने की कगार पर हैं । बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है । कुएं सूखते जा रहे हैं ।

1960 में हमारे देश में 10 लाख कुएं थे, लेकिन आज इनकी संख्या 2 करोड़ 60 लाख से 3 करोड़ के बीच है । हमारे देश के 55 से 60 फीसदी लोगों को पानी की आवश्यकता की पूर्ति भूजल द्वारा होती है, लेकिन अब भूजल की उपलब्धता को लेकर भारी कमी महसूस की जा रही है । पूरे देश में भूजल का स्तर प्रत्येक साल औसतन एक मीटर नीचे सरकता जा रहा है । नीचे सरकता भूजल का स्तर देश के लिए गंभीर चुनौती है ।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आजादी के बाद कृषि उत्पादन बढ़ाने में भूजल की महत्वपूर्ण भूमिका थी । इससे हमारे अनाज उत्पादन की क्षमता 50 सालों में लगातार बढ़ती गयी, लेकिन आज अनाज उत्पादन की क्षमता में लगातार कमी आती जा रही । इसकी मुख्य वजह है कि बिना सोचे-समझे भूजल का अंधाधुंध दोहन ।कई जगहों पर भूजल का इस कदर दोहन किया गया कि वहां आर्सेनिक और नमक तक निकल आया है पंजाब के कई इलाकों में भूजल और कूएं पूरी तरह सूख चुके हैं । 50 फीसदी परंपरागत कुएं और कई लाख टयूबवेल सुख चुके हैं । गुजरात में प्रत्येक वर्ष भूजल का स्तर 5 से 10 मीटर नीचे खिसक रहा है । तमिलनाडु में यह औसत 6 मीटर है यह समस्या आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार में भी है । सरकार इन समस्याओं का समाधान नदियों को जोड़कर निकालना चाहती है हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जिन जगहों पर नदी के पानी को रोककर डैम, वैराज और वाटर रिजर्व बनाया जाता है वहां से आगे नदी का प्रवाह सिकुड़ने लगता है ।भारत का एक-तिहाई हिस्सा गंगा का बेसिन है । इसे दुनिया का सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है, लेकिन इस नदी के ऊपर डैम बनने से यह क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है ।

गंगा की लगभग 50 सहायक नदियों में पानी का प्रवाह कम हो गया है । भारत की तीन प्रमुख नदियां-गंगा, ब्रह्मपुत्र और यमुना लगातार सिकुड़ती जा रही है । दिल्ली में यमुना के पानी में 80 फीसदी हिस्सा दूसरे शहरों की गंदगी होती है । चंबल, बेतवा, नर्मदा, गोदावरी और कावेरी जैसी अन्य नदियों में भी लगातार पानी कम होता जा रहा है ।इससे निपटने के लिए नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना की चर्चा हो रही है लेकिन पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा करने से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि हर नदी में लाखों तरह के जीव-जन्तु रहते हैं । हर नदी का अपना एक अलग महत्व और चरित्र होता है ।अगर हम उसे आपस में जोड़ देंगे तो लाजमी है कि उन नदियों में जीवन व्यतीत कर रहे जीव-जंतु के जीवन पर विपरीत असर पड़ेगा जानकारों का मानना है कि आर्थिक दृष्टि से यह योजना जायज है पर इस योजना में बहुत सोच-समझकर कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे कुदरत के चक्र को क्षति पहुंच सकती है ।

विडंबना यह है कि आज हम हवा और पानी को लेकर संवेदनशील नहीं है । हमारी हवा और पानी प्रदूषित हो चुका है । हमें यह सोचना चाहिए कि हम कैसी प्रगति की ओर बढते जा रहे हैं? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हम नदियों को आपस में जोड़ेंगे तो एक नदी का जहरीला पानी दूसरी नदी में जाएगा । ऐसा भी हो सकता है कि कोई नदी सुख जाये ।बेहतर हो कि इन्हीं पैसों को खर्च कर परंपरागत स्रोतों को फिर से जिंदा किया जाये ।

शहर से बाहर ड्रेनेज की योजना बनाने के बजाय हमें बारिश के पानी को इक्कठा करने की योजना बनानी चाहिए ताकि बारिश का पानी जमीन में रिसकर ना सिर्फ भू जलस्तर को बढाए अपितु आस पास हरियाली और मृदा ऊपजाउपन को बढ़ावा दे । याद रखिये अगर भू गर्भ जलस्तर अगर निचे जा रहा है तो यह एक बहुत चिंता का विषय है और हमें अपने पुराने जल भंडारण संसाधनों यथा कुओं, जोहड़ों, बावड़ियों, कुण्ड में वर्षा जल सरक्षण पर ध्यान देना होगा ताकि पेयजल की कमी का स्थाई समाधान हो सके । 

जल संरक्षण में पेड़ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है । पेड़ों के कारण जमीन में नमी बरकरार रहती है । क्या यह सही नहीं होगा कि नदियों को आपस में जोड़ने के अलावा दूसरे विकल्प तलाशे जायें? जरूरत तो सिर्फ इच्छाशक्ति की है ।

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Friday, January 22, 2016

Thousands of thoughts and prayers..

आप शायद सही हों पर मेरा नजरिया कहता है की आप ईश्वर की कृति हो असंभव को संभव करना आपकी फितरत है तो आप भीख नही देंगे । मदद करो अच्छा है पर मेरी बात का अर्थ है कि भीख देने वाला ही एक भिखारी को जन्म देता है।

जिसे एक पांच रूपए की चाय पीने की इच्छा तो तो उसे चलकर पिलाओ वह आत्मसंतोषआपको उन्नति की और ले जाएगा क्योंकि आपने यहाँ मानवता का परिचय दिया लेकिन अगर आप ने उसे 5 रुपये रुपी भीख दी तो वह आत्मसंतोष कहाँ मिलेगा ।

अब आप कहेंगे की टाइम नहीं है इतना,  नहीं तो कर लूँ । बताओ की यह कैसे हो । आपके सोचने से लोग सोचेंगे और चेंज हो जाता है या यूँ कहिये की "रिप्लेस'" हो जाता है । शायद यही सिस्टम भी है ।

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Monday, January 18, 2016

संजय जोशी

संजय जोशी ..एक कुशल संगठनकर्ता ..संघ की योजना से राजनीति में.कुछ साल पहले भाजपा के संगठन महामंत्री..मैकनिकल इंजीनियर के रुप लेक्चरर के बाद प्रचारक .पहले गुजरात फिर कम आयु मतलब 38साल की आयु राष्ट्रीय संगठन मंत्री का दायित्व..साधरण पाजमा ओर कुर्ता पहने वाले 53 वर्षीय संजय जोशी की सांगठनिक कुशलता गजब की है.. मोदी के साथ 1988 से साथ काम करने वाले जोशी का  शेखावाटी शहीद सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में आने से राजनैतिक चर्चा दिल्ली तक जा रही है.जोशी व वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तिगत संबध खराब होने की चर्चा प्रेस  में आती रहती है.पर संघ परिवार व भाजपा का एक धडा़ संजय जोशी की वापसी पर काम कर रहा है.देश भर में कार्यक्रम तय हो रहे है.शेखावाटी शहीद सम्मान समारोह के आयोजक की माने तो संजय जोशी भाजपा नेता डा.दशरथ सिंह के राजनैतिक गुरु माने जाते है.दशरथ सिंह के जन्म दिन पर संजस जोशी बुलाया गया.

Sunday, January 17, 2016

रचयिता की कलम से

किसी भी विषय, उत्पाद को समझ कर उसके बारे में सटीक शब्दों में लिखना और उसको आमजन तक इंटरनेट के द्वारा पहुँचाना आज के वैश्विक मार्केटिंग के जमाने में हर कोई चाहता है ।

मेरा मानना है कि अगर आपकी पकड़ अच्छे शब्दों पर है और भूतकाल में अगर जुड़ाव मार्केटिंग या सेल्स से रहा है तो आपके लिए सोशल मीडिया मैनेजर जैसी पोस्ट हासिल करना कोई बड़ी बात नहीं है ।

ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्स एप्प का वृहत् डाटाबेस आपको इंटरनेट पर स्थापित कर चुका है और आप जुड़ रहे है नित नए उन लोगों से जो आपके विचारों को पढ़ते, सुनते, समझते है । यह कहने को तो एक आभासी दुनिया है पर यह वास्तव में लोगो से पल प्रतिपल जुड़े रहने का सशक्त माध्यम भी है ।

रचनात्मक दिमाग में उमड़ - घुमड़ कर आने वाले विचारों को हाथों - हाथ व्यवस्थित कर, कम लेकिन प्रभावपूर्ण शब्दों में जोरदार उपस्थिति दर्ज करवाने को ये लेखक अब सोशियल होकर सोशल मिडिया मैनेजेर बन पाते है ।

सबसे आवश्यक कम्प्यूटर और तकनीकी ज्ञान है जो उनके विचारों को अनेको अनेक माध्यमों द्वारा प्रभावशाली ई-ब्रांडिंग करवाने में अतुलनीय मदद करता है ।

आपका विविध भाषाओं का भाषाई ज्ञान, श्रोताओं पर बेहतर पकड़, विषयात्मक, आकर्षक और संदेशात्मक छवियों का चयन इसमें चार चाँद लगाकर आपको रचनात्मकता के छोर से शुरुआत करने में सहायता करता है ।

कोई बात मायने नहीं रखती कि आप विद्वान और विषयात विशिष्ट ग्यानी हो या ना हो, आप मूलभूत बैचलर या मास्टर्स डिग्री धारक हो या ना हो पर अगर सिर्फ आपका दिमाग आपको रचनात्मक बातों को समझने की दिशा में ले जाता है तो आप बखूबी से यह सब कर सकते है ।

ई ब्रांडिंग के मेरे नज़रिये में ये मूल मन्त्र है :

चलो कुछ देखा और ऐसा दिखाया जाए,
सुसज्जित बेहतर छवि जो आँखों को भाये ।
सन्देश बेहतरीन हो रचनात्मकता से भरा
शब्द गहरे दिमाग में आसानी से उतर जाये ।।

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Wednesday, January 13, 2016

सोशल मीडिया : नया युग

आज कल का युग इतना तेज़ और अलग आभास में जीता है कि अगर आप अपने आस पास की दुनिया से अगर आगे उठकर कहीं अपने आप को कुछ साबित करना चाहते हो तो स्वयं को इस चकाचौंध भरी दुनिया के सामने एक मौलिक, नए नजरिये से और वृहत्त रूप में लाना होगा ।

ज़माना बहुत बदल चुका है, स्व-आभासी दुनिया में जीने वाले आज के इंसान बौद्धिकता, अन्तःप्रेरणा, साहसिक होने से कहीं ज्यादा अंतर्मुखी होते जा रहे है ।

राजा लोगो द्वारा की जाने वाली "मुनादी" कालांतर में लाऊडस्पीकर पर होने लग गई । अखबार, रेडियो, टीवी, पत्र-पत्रिकाओं, पम्प्लेट्स मानो अब बीते जमाने की बात हो गई है । इंटरनेट ने एक नयी सूचना क्रान्ति का आगाज़ किया है और इक्कीसवीं सदी का सबसे अद्भुत मंच बना दिया है कि आप अपनी बात को अपने व्यक्तिगत तरीके से इस दुनिया के सामने रख सकते है ।

ऑरकुट से शुरू हुई यह क्रान्ति फेसबुक के पदार्पण के साथ अपने चरम रूप की और अग्रसर हुई है, जिसे ट्विटर और इंस्टाग्राम ने एक नया आयाम दिया है । 160 शब्दों के शॉर्ट मैसेजिंग सर्विस (एस ऍम अस) को व्हाट्स एप्प ने अपनी विविध खुबियों के साथ बीते जमाने की बात सा कर दिया है ।

किताबी ज्ञान मानो बीते जमाने की बात हो गया है । पन्ना पलटने वाली अँगुलियों के श्रम पर मानो विराम सा लग गया है । निरक्षरता की  निशानी माना हुआ "अँगूठा" आपके मोबाइल स्क्रीन को छूकर पलक झपकते ही आपको इंटरनेट के अगाध और अकल्पनीय ज्ञान से साक्षात् करवा देता है । 

बड़ी विज्ञापन फर्मो ने इस माध्यम का सबसे बड़ा और अकल्पनीय फायदा उठाया उन कम्पनियों के लिए जो रचनात्मक लेखन को मात्र प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ही बपौती समझते थे । 

आज के इस युग में आप अगर अपने आपको एक बेहतर ब्रांड बनाना चाहते है या फिर अपने किसी उत्पाद को नव पीढ़ी के सामने लाना और स्थापित रखना चाहते है तो और आम आदमी तक फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्स एप्प जौसे बेहतर माध्यम के जरिये पहुँचना चाहते है तो यकीन जानिये आप इस आभासी दुनिया में अपना वजूद स्थापित करके रह पाएंगे ।

मितव्ययी, कम बजट और आसानी से अपने मोबाइल से मात्र इंटरनेट कनेक्शन से आप अपना काम कर सकते है । यह आपका अपना सोचने का और बात कहने का आसान तरीका ही है जो आपसे जुड़े हुए लोगों को आपके विचारों को सुनने और समझने को प्रेरित करता है ।

शब्दों का बेहतर चयन, नयनाभिराम चित्रों, सटीक और स्पष्ट बात तथा लोगों से जुड़ाव आप और आपके विचारों को लोगों के साथ अधिकतम रूप में जोड़ता है । यह एक ऐसी आभासी दुनिया है जिससे जुड़ाव सहज ही हुआ है पर उस से जुड़े रहना अत्यंत कठिन है ।

करोड़ों रुपए विज्ञापन पर फूँक डालने वाली कम्पनीज अपने विभागों में "सोशल मीडिया विंग" को जोड़ कर आम आदमी के मोबाइल तक पहुँचने का हर पल प्रयास कर रही है । अपनी रचनात्मकता से किसी भी व्यक्ति या उत्पाद को आमजन के दिल और दिमाग में स्थापित करने वाले लेखकों की फौज के लिए मानो नए द्वार को खोलकर ये कंपनियां सूचना क्रान्ति के हर आयाम को भुना लेना चाहती है ।

और शायद यह सही भी है क्योंकि कभी भी सायबर कैफे में कदम ना रख पाये व्यक्तियों तक ने टच स्क्रीन मोबाइल्स के जरिये आने वाली इस क्रान्ति को हाथों हाथ लिया है और फेसबुक, व्हाट्स एप्प जैसे बहुआयामी मंचों पर अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज की है । 

तो आइये इनका उपयोग करे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस युग में हम कदमताल मिलाकर ज्ञान को विशिष्ट ज्ञान में बदले । 

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Saturday, January 9, 2016

Flow of words

Life is changing……

every  time, every hour, every min…we always try to in line with change but sometime we fail to caught the same but……

you know its not possible but we can reach to our destination for what we started the journey……

common thing everyone knows that always but after that we always running beyond the repeated so call system…

we need something a little bit change for ourselves our peace……

nothing to do some special just think and implement.

Satyen Dadhich Sonu

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Friday, January 8, 2016

तेरा होना चाहता हूँ.....

आप जब चाहो तो आप से कभी भी,
बहुत फुरसत में थोडी बात चाहता हूँ ।
कहनी है बहुत सी बात अनकही,
तेरी बातों को सुनना चाहता हूँ ।।

लिख रही है जिंदगी ये कहानी,
किसी से कहना सुनना चाहता हूँ ।
सब्र रखा है बहुत उम्र तलक,
तेरे साथ और बेसब्र होना चाहता हूँ ।।

तू नूर है नायाब है और सबके लिए,
पास तेरे सबसे दूर होना चाहता हूँ ।
तुझसे है कायम सच अ मेरी जिन्दगी
सबसे चुराके तुझे जीना चाहता हूँ ।।

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Sunday, January 3, 2016

राजस्थान : भावनाओं का देस

राजस्थान, शब्द सुनते ही आँखों के सामने रेत के धोरों, ऊँट और साफा पहने हुए लोगों की छवियाँ मानो दृश्यमान होने लगती है । सांस्कृतिक विविधता से समृद्ध हमारे गौरवशाली हिन्दुस्तान का विषम जलवायु लेकिन जीवट से भरे हुए इस प्रदेश राजस्थान का परिचय किसी लेखनी से पूर्णरूप से लिख पाना असंभव सा है ।

एक तरफ माउण्ट आबू की सुरम्य वादियाँ तो एक तरफ  जैसलमेर के सम के धोरों पर पसरी अंतहीन बालू रेत । कहीं दूर उदयपुर जिसे झीलों की नगरी, राजस्थान का वेनिस तक कहा जाता है तो कहीं भरतपुर में फैला सरिस्का अभ्यारण्य जो सुदूर देशों के पक्षियों तक को न्यौता देता है कि "पधारो म्हारे देस"।

स्थापत्य कला की अगर इस मरुभूमि में अगर बात की जाए तो पत्थरों से बने एक से एक किले और दुर्ग अपने आप में अद्वितीय और अतुलनीय है । चित्तौड़ का दुर्ग, जैसलमेर का सोनार किला अगर दुश्मनो के लिए अभेद्य रहे है तो जयपुर के सिटी पैलेस, आमेर महल, अलवर नीमराणा किले में बेहिसाब सुंदरता पसरी हुई आज तक महसूस की जा सकती है । शेखावाटी की हवेलियों पर बने हुए भित्तिचित्र हो या किसी छोटे से गाँव में बनी हुई झोपड़ी पर गेरू और चूने से बने हुए "मांडणे"...

राजस्थान की खास बात यहाँ की भाषाई विविधता, अतिथि सत्कार का अनूठा अंदाज़, महाराजाओं जैसी आन-बान और शान, शुद्ध देसी खान पान ही नहीं अपितु यहाँ का समृद्ध इतिहास है जिसमे पन्नाधाय सरीखी धाय माता, महाराणा साँगा जैसी वीरता, महाराणा प्रताप जैसी स्वाभिमान भरी अनेकों अनुकरणीय गाथाओं के साथ साथ मीरा बाई और अनेकों अनेक संत पुरुषों की नमन योग्य जीवन गाथायें स्वर्णाक्षरों में अंकित है ।

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