आप शायद सही हों पर मेरा नजरिया कहता है की आप ईश्वर की कृति हो असंभव को संभव करना आपकी फितरत है तो आप भीख नही देंगे । मदद करो अच्छा है पर मेरी बात का अर्थ है कि भीख देने वाला ही एक भिखारी को जन्म देता है।
जिसे एक पांच रूपए की चाय पीने की इच्छा तो तो उसे चलकर पिलाओ वह आत्मसंतोषआपको उन्नति की और ले जाएगा क्योंकि आपने यहाँ मानवता का परिचय दिया लेकिन अगर आप ने उसे 5 रुपये रुपी भीख दी तो वह आत्मसंतोष कहाँ मिलेगा ।
अब आप कहेंगे की टाइम नहीं है इतना, नहीं तो कर लूँ । बताओ की यह कैसे हो । आपके सोचने से लोग सोचेंगे और चेंज हो जाता है या यूँ कहिये की "रिप्लेस'" हो जाता है । शायद यही सिस्टम भी है ।
Satyen Sonu©
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मेरी समझ में "सोच " महत्वपूर्ण है क्योंकि अलग तरीके से सोचना और स्वयं में अटूट विश्वास ही एक दिन महान बन जाने का कारण बनते है ।