आज पूरे भारत में पानी की कमी पिछले 30-40 साल की तुलना में तीन गुणा हो गयी है । देश की कई छोटी-छोटी नदियां सुख गयी हैं या सूखने की कगार पर हैं । बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है । कुएं सूखते जा रहे हैं ।
1960 में हमारे देश में 10 लाख कुएं थे, लेकिन आज इनकी संख्या 2 करोड़ 60 लाख से 3 करोड़ के बीच है । हमारे देश के 55 से 60 फीसदी लोगों को पानी की आवश्यकता की पूर्ति भूजल द्वारा होती है, लेकिन अब भूजल की उपलब्धता को लेकर भारी कमी महसूस की जा रही है । पूरे देश में भूजल का स्तर प्रत्येक साल औसतन एक मीटर नीचे सरकता जा रहा है । नीचे सरकता भूजल का स्तर देश के लिए गंभीर चुनौती है ।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आजादी के बाद कृषि उत्पादन बढ़ाने में भूजल की महत्वपूर्ण भूमिका थी । इससे हमारे अनाज उत्पादन की क्षमता 50 सालों में लगातार बढ़ती गयी, लेकिन आज अनाज उत्पादन की क्षमता में लगातार कमी आती जा रही । इसकी मुख्य वजह है कि बिना सोचे-समझे भूजल का अंधाधुंध दोहन ।कई जगहों पर भूजल का इस कदर दोहन किया गया कि वहां आर्सेनिक और नमक तक निकल आया है पंजाब के कई इलाकों में भूजल और कूएं पूरी तरह सूख चुके हैं । 50 फीसदी परंपरागत कुएं और कई लाख टयूबवेल सुख चुके हैं । गुजरात में प्रत्येक वर्ष भूजल का स्तर 5 से 10 मीटर नीचे खिसक रहा है । तमिलनाडु में यह औसत 6 मीटर है यह समस्या आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार में भी है । सरकार इन समस्याओं का समाधान नदियों को जोड़कर निकालना चाहती है हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जिन जगहों पर नदी के पानी को रोककर डैम, वैराज और वाटर रिजर्व बनाया जाता है वहां से आगे नदी का प्रवाह सिकुड़ने लगता है ।भारत का एक-तिहाई हिस्सा गंगा का बेसिन है । इसे दुनिया का सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है, लेकिन इस नदी के ऊपर डैम बनने से यह क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है ।
गंगा की लगभग 50 सहायक नदियों में पानी का प्रवाह कम हो गया है । भारत की तीन प्रमुख नदियां-गंगा, ब्रह्मपुत्र और यमुना लगातार सिकुड़ती जा रही है । दिल्ली में यमुना के पानी में 80 फीसदी हिस्सा दूसरे शहरों की गंदगी होती है । चंबल, बेतवा, नर्मदा, गोदावरी और कावेरी जैसी अन्य नदियों में भी लगातार पानी कम होता जा रहा है ।इससे निपटने के लिए नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना की चर्चा हो रही है लेकिन पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा करने से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि हर नदी में लाखों तरह के जीव-जन्तु रहते हैं । हर नदी का अपना एक अलग महत्व और चरित्र होता है ।अगर हम उसे आपस में जोड़ देंगे तो लाजमी है कि उन नदियों में जीवन व्यतीत कर रहे जीव-जंतु के जीवन पर विपरीत असर पड़ेगा जानकारों का मानना है कि आर्थिक दृष्टि से यह योजना जायज है पर इस योजना में बहुत सोच-समझकर कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे कुदरत के चक्र को क्षति पहुंच सकती है ।
विडंबना यह है कि आज हम हवा और पानी को लेकर संवेदनशील नहीं है । हमारी हवा और पानी प्रदूषित हो चुका है । हमें यह सोचना चाहिए कि हम कैसी प्रगति की ओर बढते जा रहे हैं? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हम नदियों को आपस में जोड़ेंगे तो एक नदी का जहरीला पानी दूसरी नदी में जाएगा । ऐसा भी हो सकता है कि कोई नदी सुख जाये ।बेहतर हो कि इन्हीं पैसों को खर्च कर परंपरागत स्रोतों को फिर से जिंदा किया जाये ।
शहर से बाहर ड्रेनेज की योजना बनाने के बजाय हमें बारिश के पानी को इक्कठा करने की योजना बनानी चाहिए ताकि बारिश का पानी जमीन में रिसकर ना सिर्फ भू जलस्तर को बढाए अपितु आस पास हरियाली और मृदा ऊपजाउपन को बढ़ावा दे । याद रखिये अगर भू गर्भ जलस्तर अगर निचे जा रहा है तो यह एक बहुत चिंता का विषय है और हमें अपने पुराने जल भंडारण संसाधनों यथा कुओं, जोहड़ों, बावड़ियों, कुण्ड में वर्षा जल सरक्षण पर ध्यान देना होगा ताकि पेयजल की कमी का स्थाई समाधान हो सके ।
जल संरक्षण में पेड़ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है । पेड़ों के कारण जमीन में नमी बरकरार रहती है । क्या यह सही नहीं होगा कि नदियों को आपस में जोड़ने के अलावा दूसरे विकल्प तलाशे जायें? जरूरत तो सिर्फ इच्छाशक्ति की है ।
Satyen Dadhich ©
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मेरी समझ में "सोच " महत्वपूर्ण है क्योंकि अलग तरीके से सोचना और स्वयं में अटूट विश्वास ही एक दिन महान बन जाने का कारण बनते है ।