Saturday, November 14, 2015

बचपन की जिद

कागज़ की कश्तियों से सफ़र नहीं हुआ करते ये तो सच है पर किसी ने बचपन की इन कश्तियों को देखकर पानी के जहाज़ जैसी चीज बनाने की ठानी होगी ।

बचपन से लेकर आज तक काउ सपने देखे और उन्हें पूरा करे ऐसी कोशिश भी की । कुछ पूरे सच हुए और कुछ आधे अधूरे से । बचपन एक बड़ी चीज़ सीखा गया "जिद"

जिद करो और पूरे करो हर सपने को ताकि जिंदगी जी सको अपनी खुद की जिद पर खुद की शर्तों पर ।

बाल दिवस की आप सबके बाल गोपाल को हार्दिक शुभकामनायें । उनकी जिद को पूरा करो और बनाओ उन्हें सफलतम ।

शुभकामनायें ।

Satyendra Dadhich Sonu

Tuesday, November 10, 2015

दीपोत्सव

Dhanteras vastav main Dhantrayodashi hai... Kaartik maas ki trayodashi tithi... Is din aayurved ke aadipravaartak bhagwaan dhanvantari ji ka pradurbhaav hua tha....

Kal roop chaudas ya Narak Chaturdashi hai... Kal ke din shrikrishna ne narkaasur ko maar kar uske paapon kaa ant kiya tha is din yamraaj ko deepdaan bhi kiyaa jata hai...

Aur tatpaschaat hindu dharm kaa sarvaadhik mahatvpurn aur sabse bada tyohaar... Deepawali... Jiska arth hota hai "deepakon ki Pankti"...

Bahgwaan raam ke ayodhya aagman par sabhi nagarjano ne ghee ke diye jalaye the so aaj bhi wo pratha kaayam hai....

dhan ki devi laxmi is din apne vaahan ullu par baith kar kisi lallu ko dhanwaan karne ke liye vichran karti hai...

Happy Deepawali

Sunday, November 8, 2015

खुद की खुदी को पहचानो...

Nothing Destroys Iron other than its Own RUST..like wise a person loses his Position only b'coz of his Own EGO. So Think Twice ACT Wise"..

लोहे को सिर्फ उसकी जंग खत्म कर सकती है और पारस पत्थर उसे मात्र छूकर उसे सोने में बदल देता है.... तुम खुद अपने भाग्यविधाता हो की जंग लगकर खत्म होना चाहोगे या सोना होकर अपने अस्तित्व को एकदम अलग कर दोगे ???

अपने अहम् को कायम रखो पर उसे तुम्हारे अस्तित्व के ऊपर उसे हावी मत होने दो । तुम कर सकते हो क्योंकि तुम बुद्धिमत्ता में सर्वश्रेष्ठ हो ।

सोचो... समझो... बुद्धिमान रहो ।

Satyendra Dadhich Sonu

जीवन क्या है

ये जीवन क्या है ??

थोड़ा फैला अगर दुखों का कुहासा है,
तो कहीं थोड़े सुखों की अभिलाषा है,
गर अकेलेपन की कहीं निराशा है तो
कहीं क्षणिक प्रेम की आशा है,

कहीं किसी की आमद का उजाला है,
कहीं तन्हाई की एक भाषा है,
मिलन अधूरेपन का कहीं,
कहीं किसी से मिल जाने की आशा है,

बन संवर जाए तो जिंदगी है,
बिगड़ गर जाए तो तमाशा है,
चार पल की कहते है लोग
जीवन की शायद यही परिभाषा है,

#सत्येन

Thursday, November 5, 2015

रोज़ की डायरी... पन्ना 25 अगस्त 2015 का

एक बार फिर रात है.... कुछ सितारे और बहती ठंडी हवा । सड़क पर बेतहाशा दौड़ती गाड़ियों का शोर.... शहर की भागमभाग भरी जिंदगी । ऊँचे बैठ कर नीचे बसी एक बौनी सी लगती यह लम्बी जगमगाती सड़क जिसे मानो रात के होने का कोई असर ही ना हुआ हो । व्यस्त से भी व्यस्ततम है इसके आस पास फैला यह जंगल जो इस प्रदूषण से भरे इस माहौल को कुछ शुद्ध करने की एक नाकाम सी कोशिश हर लम्हा कर रहा है.... पर अब उसमे भी उगने लगी है कंक्रीट की बहुमंजिला इमारतें । जलती बुझती रोशनियों के बीच इन कबूतरखानोका तक का सफर गाँव की शांत और स्वयमेव शुद्ध गलियों से शुरू हुआ यह सफ़र शान्ति से अनवरत कोलाहल की और.... शहर की और जिसे बसाया किसी ने आदर्श होने को पर अब रहती है वहाँ अनेको जिंदगियाँ.... अपनी हर लम्हा दौड़ती जिंदगी जीने के लिए ।

#शुभरात्रि

#सफ़रएजिंदगी

#सफरनामा

Satyendra Dadhich

रंग-ए-मोह्हबत

प्यार मोह्हबत प्यारा रिश्ता यारों इस संसार में,
पापड बेलते देखा सबको इश्क के इस व्यापार में ।
इश्क में लैला मजनू बनते कुछ देवदास है प्यार में
जीत प्यार की ख़ुशी दिलाती टूट है जाते हार में ।।

कभी संदेसे लाते कबूतर उड़ कर सरहद पार में,
तड़प इश्क की हरपल रहती उसके इंतज़ार में ।
बच्चे बन जाते थे डाकिये बड़े बड़ों के प्यार में,
खूब मिन्नते करते उनकी ख़त के इंतज़ार में ।।

लव लेटर का क्या कहना प्रेम पात्र हो जाते थे
उसने ख़त भेजा है कहकर सीने से लगाते थे ।
किस से लिखना क्या है लिखना खूब सोचना
गुप चुप पढ़ना चुप रहना ये लक्षण थे प्यार में ।।

मोबाइल हुआ ज़माना बंद खतों का आना जाना
व्हाट्स अप और फेसबुक पर मैसेज वाह ज़माना ।
शेयर होता उलटा पुल्टा स्टेटस चेंज हो जाता है,
ये आधुनिक इश्क है इसलिए डिज़िटल हो जाता है ।।

Monday, November 2, 2015

तेरी यादों की उम्र...

बातें तेरी  अब भी महकती  हैं....
यूँ लगता है जैसे की... तुने बस अभी कही हैं...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...

न सच झूठ का पता था मुझे... 
न सही गलत की खबर...
अपने सचों को को झूठ कहा था मेरे लिए...
मेरी गलतियों को  भी... तुने कहा था सही है...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...

मेरे हर आंसू को थामा था अपना लहू समझ कर...
तेरे बूढी आखोँ को याद कर....
न जाने मेरी आसुओं की ...कितनी नदियाँ बही हैं...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...

मैं अब भी चुप रह के सुनता हूं तुझको....
तेरी वो फटी धुंधली तस्वीर आज  न जाने क्या क्या कह रही है..
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है.