Thursday, December 29, 2016

छोड़ के जाने वाला

ना अब ख़ुशी है ना कोई गम रुलाने वाला,
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला ।
उस को रुकसत तो किया था मालुम ना था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला ।।

मुसाफिर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया,
कोई जल्दी सबतो कोई देर से जाने वाला ।
एक झूटी सी उम्मीद है चेहरा वो फिर दिखे,
चेहरा हर पल रहेगा सामने ना भुलाने वाला ।।

मेरे रंजो गम का साथी था ना पूछो इस कदर,
मैं रूठ जाता और वो था मुझे मनाने वाला ।
दिल के जख्मों का मरहम बन जाता था,
अब जख्म है बहुत पर ना कोई मिटाने वाला ।।

अब भी याद है कशिश उसकी आँखों की,
वो नहीं तो ना कोई और आनेवाला ।
भूल जाऊं भी खुद को तो बड़ी बात नहीं,
तेरे जाने का गम है ना भुलाने वाला ।।

सत्येन दाधीच
7425003500
s.j.dadhich@gmail.com

Wednesday, October 26, 2016

मेरे शब्द और मैं

लेखक कल्पनाओ के संसार को अपनी लेखनी से पढ़ने वाले के सामने रच देता है ।

माँ सरस्वती के पुजारी कला के जानकार और अपनी क्षमताओं से धीरे धीरे पारंगत हो अपनी साधना को जारी रखते है ।

साधना जारी है, पड़ाव नहीं है जारी रखना अनवरत है देखो यह संघर्ष चाँद तक पहुँचे या सूर्य से तेज़ दे सिर्फ समय जानता है ।

इंतज़ार कीजियेगा, सत्येन वही है, था और वही रहेगा ।

संघर्ष जारी है और आपका साथ इसमें काफी प्रोत्साहन देता रहेगा ।

आगामी पर्वों के इस मौसम के हर एक पल की आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।

आने दीपावली के दीपों की ज्योतिर्मय से आपके जीवन का हर क्षण आलोकित रहे ।

शुभकामनाओ के साथ
सत्येन

Wednesday, September 28, 2016

कविता : बदलती जिंदगी

देखो आब ओ हवा की तरह,
दुनिया हर पल यूं बदल रही है ।
बदलाव की बयार चली यूं कि,
पल पल ये जिंदगी बदल रही है ।

बदलते वक्त का बदलाव मुमकिन है,
किसी के सूरज की शाम ढल रही है ।
मुक्कदर कहते थे जिसे शहर वाले,
कुछ अलग से उसकी चाल बदल रही है ।

साथ चलते थे सबके सब जुदा हुए,
क्यों कुछ हम सफ़र की राह बदल रही है ।
साथ दीखते थे कुछ चेहरे हर पल,
बदली सी चाल ढाल क्यों लग रही है ।।

मौक़ा ना मिले तो हिना हो जाते है,
एक पत्थर पे कायनात बदल रही है ।
बहुत देखे है नकाबों में छुपे चेहरे मैंने,
हवा के साथ उनकी शक्ल बदल रही है ।

सत्येन दाधीच©

Thursday, September 8, 2016

रक्तदान : wtite up for GLi

खून की एक यूनिट से इंसान की जान ही नहीं बचती बल्कि उस इंसान का घर परिवार भी हँसी ख़ुशी से रह पाता है ।

मानवता जो हमें सिखाती है की इंसान बनो मानव के लिए कुछ करो । एक यूनिट रक्त अगर आप एक अंतराल के बाद देते है तो ना सिर्फ आपके खून की फिल्ट्राइजेशन प्रक्रिया सुचारू रहती है अपितु रक्त प्रवाह को भी सही रख पाते है । 

मैं 11 सितम्बर 2016 को डूंडलोद सामुदायिक भवन में आयोजित रक्तदान शिविर में मानवता के लिए अपना हरसंभव सहयोग करने के लिए तैयार हूँ और आप से अपील करता हूँ कि आगे होकर रक्तदान करके मानवता की सेवा करे ।

रक्तदान इस अमूल्य जीवन के लिए महादान है । आइये सहयोग करे ।

कहते है कि खून की एक यूनिट से उस इंसान का घर परिवार भी ख़ुशी से रह पाता है जिसे आज खून की ज़रुरत है ।

इंसान बनो मानव और मानवता के लिए कुछ करो । मेडिकल साइंस कहता है कि एक यूनिट रक्त अगर आप एक अंतराल के बाद देते है तो ना सिर्फ आपके खून की फिल्ट्राइजेशन प्रक्रिया सुचारू रहती है अपितु आप रक्त प्रवाह को भी सही रख पाते है । 

मैं आनेवाली 11 सितम्बर 2016 को डूंडलोद सामुदायिक भवन में आयोजित रक्तदान शिविर में मानवता के लिए अपना सहयोग कर रहा हूँ, आप भी इस दिन रक्तदान करके मानवता की सेवा में अपना योगदान करे ।

रक्तदान इस अमूल्य जीवन के लिए वो महादान है जो किसी कारखाने में नहीं बनता सिर्फ मानव ही मानव के लिए रक्तदान कर पाता है । आइये इस मुहिम में अपना हर प्रकार से सहयोग करे ।

इंसान वही जो इंसान के काम आये ।

Wednesday, September 7, 2016

Frm flying wings...

Umananda Temple a Lord Shiva temple located at the Peacock Island in the middle of river Brahmaputra, Guwahati Asaam. Ahom King Gadadhar Singha buit it and it's known as smallest inhabited riverine island in the world.

Lord Siva is said to have resided here in the form of Bhayananda. According to the Kalika Purana, Lord Siva sprinkled ashes (bhasma) at this place and imparted knowledge to Devi Parvati (his consort).

This mountain is also called Bhasmakuta. The Kalika Purana states that Urvasikunda is situated here.

The presiding deity at the temple is Umananda (Tatrasti bhagavan sambhu- ruma- nandakarah Prabhu). It is believed that, worship here on the Amavasya day when it falls on Monday brings the highest bliss. The Siva Chaturdasi is the most colourful festival that is held here annually.

Many devotees come to the temple on this occasion for the worship of the deity.

I visited the same during guwahati visit of mine... Such a place what will be always remember as Incredible one...

Satyen
7425003500

Wednesday, August 10, 2016

@Satyen... Bachpan

Kabhi apnaa bachpan missing agar feel hota ho to...... Sab mayajaal ek taraf rakhkar kisi bacchey ke saath rahkar khud ko kuch pal jeelo....

Jab aap unhe muiskuraate dekhkar smile karte ho to socho ki kabhi tum bhi aisey hi hua karte they.......

Delighted moments... The best medicine to forgot all your sorrow and everything.... Sabse accha samay hota hai bachpan tab insaan jo maangtaa hai usey mil jaata hai.... Dulaar, sneh, laad.....

Uske baad jindagi to maano khushiyon ki wasooli par nikal padti hai....pyaar dekar aansoon.. Jindagi tujhe Cruel  kahoon yaan kindness.

Satyen Dadhich Sonu

भजन : तेरा क्या कहना गुरुदेव

मन मगन आपके चरणों में,
गुरुदेव कृपा है क्या कहना ।
हूँ मस्त नाम श्रीराम में अब,
भवसागर पार हो क्या कहना ।।

यह सुंदर सौम्य जो सूरत है,
परम दिव्य सी मूरत है ।
मुस्कान है रहती होंठों पर,
महिमा का उनका क्या कहना ।।

जब मैं विचलित हो जाता हूँ,
घनघोर अन्धेरा पाता हूँ ।
तब दिव्य पुंज यूं दिखता है,
फिर रस्ते कट जाते क्या कहना ।।

जब वाणी उनकी सुनता हूँ,
बतलाए पथ पर चलता हूँ ।
काँटों का जंगल जो दुनिया,
फूलों से महके क्या कहना ।।

तकदीर से पाया है जिनको,
श्री गुरुवर वो पारसमणि है ।
"सोनू" सोना हो जाएगा
अनुपम है कृपा वाह क्या कहना ।।

सत्येन दाधीच सोनू
7425003500
®© कॉपीराइट

Monday, August 8, 2016

कौन


मेरी तकदीर है, तुम भी रूठ गए
फिर बनाएगा मेरी बिगड़ी हुई कौन ?

आज दरार है, कल खाई होगी
आपकी कृपा बिन भरेगा कौन ?

मैं चुप हूँ अन्तर्यामी तुम सब जानो,
इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन ?

बात छोटी को लगा लोगे दिल से,
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?

दुखी मैं हो ज्याउंगा बिछड़कर,
हाथ तुम बिन फिर बढ़ाएगा कौन ?

नादाँ हूँ ना गलती माफ़ करोगे गर तुम
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन ?

डूब जाएगा यादों में दिल कभी,
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?

एक अहम् बसा है मेरे भीतर कबसे,
इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?

ज़िंदगी कहाँ मिली है "सत्येन"सदा के लिए ?
आप बिन मुक्ति मार्ग दिखायेगा मुझे कौन ?

Thursday, July 21, 2016

Color एंड copy writer

जब किसी ब्रैंड का बात आती है तो दिमाग में सबसे पहले कंपनी का Logo आता है. इससे भी पहले अगर कुछ हमारे दिमाग में बनता है तो वो है Logo का रंग. Logo के रंग का असर ​कस्टमर के दिमाग पर इतना ज़्यादा होता है जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते. कई रंगों से लोगों के इमोशन जुड़े होते हैं. अपने प्रॉडक्ट की पैकेजिंग का रंग, कस्टमर की Color Psychology को ध्यान में रखते हुए बनाने से बिक्री पर काफी असर आता है.

रिसर्च एंड डिज़ाइन कंपनी WebPageFX की रिसर्च के मुताबिक कोई भी कस्टमर 90 सेकंड के अंदर किसी प्रॉडक्ट को खरीदने या न खरीदने का मन बना लेता है. ऐसे में 85% लोग रंग की बुनियाद पर ये फैसला करते हैं. 80% लोग मानते हैं कि रंग ब्रैंड की पहचान बनाता है. कोई भीरंगीन विज्ञापन, ब्लैक एंड वाइट विज्ञापन से 42% ज़्यादा देखा जाता है. रंग आपकी समझ और पढ़ने-सीखने की क्षमता को 40% से 73% तक बढ़ा देता है. मार्केटिंग के ​लिए मुख्य रूप से 6 रंगों का इस्तेमाल होता है, जो हैं लाल, पीला, हरा, नीला, नारंगी और बैंगनी रंग.

Monday, July 11, 2016

रिश्ता

हमेशा समझौता करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा झुक जाना
किसी रिश्ते को हमेशा के लिए
तोड़ देने से बहुत बेहतर है।

सोच अच्छी है ।

सीख जो दी जा रही क्या वह सही है ।

झुक कर चलो, समझौता करो, सहयोग करो

सही है लेकिन क्या यह सही है कि

हर बार झुक कर चलो, समझौता करो,
सहयोग करो और वो भी उस रिश्ते को
निभाने के लिए जहाँ सारी रियायते
छीन तुम्हे हिदायतों की एक लंबी लीक
का रास्ता बता दिया जाता है...

और तुम बस चलते रहो चलते रहो ।

यह रास्ता कहाँ और किस मंज़िल पर ले जाएगा
यह तो पता नहीं पर रिश्तों को स्वयं के
स्वाभिमान से भी ऊपर रखना क्या सही होता है ?

रिश्तों को निभाइये ना कि सिर्फ बनाये रखे ।

रिश्ता

हमेशा समझौता करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा झुक जाना
किसी रिश्ते को हमेशा के लिए
तोड़ देने से बहुत बेहतर है।

सोच अच्छी है । सीख जो दी जा रही क्या वह सही है ।

झुक कर चलो, समझौता करो, सहयोग करो सही है लेकिन क्या यह सही है कि हर बार झुक कर चलो, समझौता करो, सहयोग करो और वो भी उस रिश्ते को निभाने के लिए जहाँ सारी रियायते छीन कर तुम्हे हिदायतों की एक लंबी लीक का रास्ता बता दिया जाता है... और तुम बस चलते रहो चलते रहो ।

यह रास्ता कहाँ और किस मंज़िल पर ले जाएगा यह तो पता नहीं पर रिश्तों को स्वयं के स्वाभिमान से भी ऊपर रखना क्या सही होता है ?

रिश्तों को निभाइये ना कि सिर्फ बनाये रखे ।

Sunday, July 10, 2016

कहानी : बलजी और भूरजी

.........शेखावाटी की शान ..बलजी भूरजी........

राजस्थान में शेखावाटी राज्य की जागीर बठोठ-पटोदा के ठाकुर बलजी शेखावत दिनभर अपनी जागीर के कार्य निपटाते,लगान की वसूली करते,लोगों के झगड़े निपटाकर न्याय करते,किसी गरीब की जरुरत के हिसाब से आर्थिक सहायता करते हुए अपने बठोठ के किले में शान से रहते ,पर रात को सोते हुए उन्हें नींद नहीं आती,बिस्तर पर पड़े पड़े वे फिरंगियों के बारे में सोचते कि कैसे वे व्यापार करने के बहाने यहाँ आये और पुरे देश को उन्होंने गुलाम बना डाला | ज्यादा दुःख तो उन्हें इस बात का होता कि जिन गरीब किसानों से वे लगान की रकम वसूल कर सीकर के राजा को भेजते है उसका थोड़ा हिस्सा अंग्रेजों के खजाने में भी जाता | रह रह कर उन्हें फिरंगियों पर गुस्सा आता और साथ में उन राजाओं पर भी जिन्होंने अंग्रेजों की दासता स्वीकार करली थी | पर वे अपना दुःख किसे सुनाये,अकेले अंग्रेजों का मुकाबला भी कैसे करें सभी राजा तो अंग्रेजों की गोद में जा बैठे थे |
उन्हें अपने पूर्वज डूंगरसीं व जवाहरसीं Dungji Jawahar ji की याद भी आती जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ा था और जोधपुर के राजा ने उन्हें विश्वासघात से पकड़ कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया था,अपने पूर्वज डूंगरसीं के साथ जोधपुर महाराजा द्वारा किये गए विश्वासघात की बात याद आते ही उनका खून खोल उठता था वे सोचते कि कैसे जोधपुर रियासत से उस बात का बदला लिया जाय |
आज भी बलजी को नींद नहीं आ रही थी वे आधी रात तक इन्ही फिरंगियों व राजस्थान के सेठ साहूकारों द्वारा गरीबों से सूद वसूली पर सोचते हुए चिंतित थे तभी उन्हें अपने छोटे भाई भूरजी की आवाज सुनाई दी |
भूरजी अति साहसी व तेज मिजाज रोबीले व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे उनके रोबीले व्यक्तित्व को देखकर अंग्रेजों ने भारतीय सेना की आउट आर्म्स राइफल्स में उन्हें सीधे सूबेदार के पद पर भर्ती कर लिया था| एक अच्छे निशानेबाज व बुलंद हौसले वाले फौजी होने के साथ भूरजी में स्वाभिमान कूट कूटकर भरा था | अंग्रेज अफसर अक्सर भारतीय सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार करते थे ये भेदभाव भूरजी को बर्दास्त नहीं होता था सो एक दिन वे इसी तरह के विवाद पर एक अंग्रेज अफसर की हत्या कर सेना से फरार हो गए | सभी राज्यों की पुलिस भूरजी को गिरफ्तार करने हेतु उनके पीछे पड़ी हुई थी और वे बचते बचते इधर उधर भाग रहे थे |
आज आधी रात में बलजी को उनकी (भूरजी) आवाज सुनाई दी तो वे चौंके,तुरंत दरवाजा खोल भूरजी को किले के अन्दर ले गले लगाया,दोनों भाइयों ने कुछ क्षण आपसी विचार विमर्श किया और तुरंत ऊँटों पर सवार हो अपने हथियार ले बागी जिन्दगी जीने के लिए किले से बाहर निकल गए उनके साथ बलजी का वफादार नौकर गणेश नाई भी साथ हो लिया |
अब दोनों भाई जोधपुर व अन्य अंग्रेज शासित राज्यों में डाके डालने लगे ,जोधपुर रियासत में तो डाके डालने की श्रंखला ही बना डाली | जोधपुर रियासत के प्रति उनके मन में पहले से ही काफी विरोध था |धनी व्यक्ति व सेठ साहूकारों को लुट लेते और लुटा हुआ धन शेखावाटी में लाकर जरुरत मंदों के बीच बाँट देते |
लूटे गए धन से किसी गरीब की बेटी की शादी करवाते तो किसी गरीब बहन के भाई बनकर उसके बच्चों की शादी में भात भरने जाते | हर जरुरत मंद की वे सहायता करते जोधपुर,आगरा, बीकानेर,मालवा,अजमेर,पटियाला,जयपुर रियासतों में उनके नाम से धनी व सेठ साहूकार कांपने लग गए थे | साहूकारों के यहाँ डाके डालते वक्त सबसे पहले बलजी-भूरजी उनकी बहियाँ जला डालते थे ताकि वे गरीबों को दिए कर्ज का तकादा नहीं कर सके |
गरीब,जरुरत मंद व असहाय लोगों की मदद करने के चलते स्थानीय जनता ने उन्हें मान सम्मान दिया और बलसिंह -भूरसिंह के स्थान पर लोग उन्हें बाबा बलजी-भूरजी Balji Bhurji कहने लगे | और यही कारण था कि पुरे राजस्थान की पुलिस उनके पीछे होने के बावजूद वे शेखावाटी में स्वछन्द एक स्थान से दुसरे स्थान पर घूमते रहे | लोग उनके दल को अपने घरों में आश्रय देते,खाना खिलाते ,उनका सम्मान करते | वे भी जो रुखी सुखी रोटी मिल जाती खाकर अपना पेट भर लेते कभी किसी गांव में तो कभी रेत के टीलों पर सो कर रात गुजार देते |गांव के लोगों से जब भी वे मिलते ग्रामीणों को फिरंगियों के मंसूबों से अवगत कराते,राजाओं की कमजोरी के बारे में उन्हें सचेत करते,कैसे सेठ साहूकार गरीबों का शोषण करते है के बारे में बताते |
कई लोग उनके नाम से भी वारदात करने लगे ,पता चलने पर बलजी-भूरजी उन्हें पकड़कर दंड देते और आगे से हिदायत भी देते कि उनके नाम से कभी किसी ने किसी गरीब को लुटा या सताया तो उसकी खैर नहीं होगी | उनके दल में काफी लोग शामिल हो गए थे पर जो लोग उनके दल के लिए बनाये कठोर नियमों का पालन नहीं करते बलजी उन्हें निकाल देते थे | उनके नियम थे -किसी गरीब को नहीं सताना,किसी औरत पर कुदृष्टि नहीं डालना,डाका डालते वक्त भी उस घर की औरतों को पूरा सम्मान देना आदि व डाके में मिला धन गरीबों व जरुरत मंदों के बीच बाँट देना |
20 वर्ष तक इन बागियों को रियासतों की पुलिस द्वारा नहीं पकड़पाने के चलते अंग्रेज अधिकारी खासे नाराज थे और डीडवाना के पास मुटभेड में जोधपुर रियासत के इन्स्पेक्टर गुलाबसिंह की हत्या के बाद तो जोधपुर रियासत की पुलिस ने इन्हें पकड़ने का अभियान ही चला दिया | अंग्रेज अधिकारीयों ने जोधपुर पुलिस को सीकर व अन्य राज्यों की सीमाओं में घुसकर कार्यवाही करने की छुट दे दी |
जोधपुर रियासत ने बलजी-भूरजी को पकड़ने हेतु अपने एक जांबाज पुलिस अधिकारी पुलिस सुपरिडेंट बख्तावरसिंह के नेतृत्व में तीन सौ सिपाहियों का एक विशेष दल बनाया | बख्तावरसिंह ने अपने दल के कुछ सदस्यों को उन इलाकों में ग्रामीण वेशभूषा में तैनात किया जिन इलाकों में बलजी-भूरजी घुमा करते थे इस तरह उनका पीछा करते हुए बख्तावरसिंह को तीन साल लग गए,तीन साल बाद 29 अक्तूबर 1926 को कालूखां नामक एक मुखबिर ने बख्तावरसिंह को बलजी-भूरजी के रामगढ सेठान Ramgarh Shekhawati के पास बैरास गांव में होने की सुचना दी | कालूखां भी पहले बलजी-भूरजी के दल में था पर किसी विवाद के चलते वह उनका दल छोड़ गया था |
सुचना मिलते ही बख्तावरसिंह अपने हथियारों से सुसज्जित विशेष दल के तीन सौ सिपाहियों सहित ऊँटों व घोड़ों पर सवार हो बैरास गांव की और चल दिया | बख्तावरसिंह के आने की खबर ग्रामीणों से मिलते ही बलजी-भूरजी ने भी मौर्चा संभालने की तैयारी कर ली | उन्होंने बैरास गांव को छोड़ने का निश्चय किया क्योंकि बैरास गांव की भूमि कभी उनके पुरखों ने चारणों को दान में दी थी इसलिए वे दान में दी गयी भूमि पर रक्तपात करना उचित नहीं समझ रहे थे अत : वे बैरास गांव छोड़कर उसी दिशा में सहनुसर गांव की भूमि की और बढे जिधर से बख्तावर भी अपनी फ़ोर्स के साथ आ रहा था | रात्री का समय था बलजी-भूरजी ने एक बड़े रेतीले टीले पर मोर्चा जमा लिया उधर बख्तावर की फ़ोर्स ने भी उन्हें तीन और से घेर लिया | बलजी ने अपने सभी साथियों को जान बचाकर भाग जाने की छुट दे दी थी सो उनके दल के सभी सदस्य भाग चुके थे ,अब दोनों भाइयों के साथ सिर्फ उनका स्वामिभक्त नौकर गणेश ही शेष रह गया था |
30 अक्तूबर 1926 की सुबह चार बजे आसपास के गांव वालों को गोलियां चलने की आवाजें सुनाई दी | दोनों और से कड़ा मुकबला हुआ ,भूरजी ने बख्तावरसिंह के ऊंट को गोली मार दी जिससे बख्तावरसिंह पैदल हो गया और उसने एक पेड़ का सहारा ले भूरजी का मुकाबला किया ,उधर कुछ सिपाही टीले के पीछे पहुँच गए थे जिन्होंने पीछे से वार कर बलजी को गोलियों से छलनी कर दिया |
भूरजी के पास भी कारतूस ख़त्म हो चुके थे तभी गणेश रेंगता हुआ बलजी की मृत देह के पास गया और उनके पास रखी बन्दुक व कारतूस लेकर भूरजी की और बढ़ने लगा तभी उसको भी गोली लग गयी पर मरते मरते उसने हथियार भूरजी तक पहुंचा दिए | भूरजी ने कोई डेढ़ घंटे तक मुकाबला किया | बख्तावर सिंह की फ़ोर्स के कई सिपाहियों को उसने मौत के घाट उतार दिया और उसे कब गोली लगी और कब वह मृत्यु को प्राप्त हो गया किसी को पता ही नहीं चला ,जब भूरजी की और से गोलियां चलनी बंद हो गयी तब भी बख्तावरसिंह को भरोसा नहीं था कि भूरजी मारा गया है कई घंटो तक उसकी देह के पास जाने की किसी की हिम्मत तक नहीं हुई |
आखिर बख्तावर ने दूरबीन से देखकर भूरजी के मरने की पुष्टि की जब उनके शव के पास जाया गया |
बख्तावरसिंह ने बलजी-भूरजी के मारे जाने की खबर जोधपुर जयपुर तार द्वारा भेजी व लाशों को एक जगह रख वहीँ पहरे पर बैठ गया तीसरे दिन जोधपुर के आई.जी.पी.साहब आये उन्होंने लाशों की फोटो आदि खिंचवाई व उनके सिर काटकर जोधपुर ले जाने की तैयारी की पर वहां आस पास के ग्रामीण इकठ्ठा हो चुके थे पास ही के महनसर व बिसाऊ के जागीरदार भी पहुँच चुके थे उन्होंने मिलकर उनके सिर काटने का विरोध किया | आखिर जन समुदाय के आगे अंग्रेज समर्थित पुलिस को झुकना पड़ा और शव सौपने पड़े | जन श्रुतियों के अनुसार बख्तावरसिंह को बलजी-भूरजी के मारे जाने पर इतनी आत्म ग्लानी हुई कि उसने तीन दिन तक खाना तक नहीं खाया |
उनके दाह संस्कार के लिए सहनुसर गांव के ग्रामीण तीन पीपे घी के लाये,उसी गांव के गोमजी माली व मोहनजी सहारण (जाट) अपने खेतों से चिता के लिए लकड़ी लेकर आये और तीनों का उसी स्थान पर दाह संस्कार किया गया जहाँ वे शहीद हुए थे | उनकी चिता को मुखाग्नि बिसाऊ के जागीरदार ठाकुर बिशनसिंह जी ने दी | अस्थि संचय व बाकी के क्रियाक्रम उनके पुत्रों ने आकर किया | आस पास के गांव वालों ने उनके दाह संस्कार के स्थान पर ईंटों का कच्चा चबूतरा बनवा दिया | सीकर के राजा कल्याणसिंघजी ने बलजी-भूरजी के नाम पर दाह संस्कार स्थान की ४० बीघा भूमि गोचर के रूप में आवंटित की | जिसमे से ३० बीघा भूमि तो पंचायतों ने बाद में भूमिहीनों को आवंटित कर दी अब शेष बची १० बीघा भूमि को "बलजी-भूरजी स्मृति संस्थान" ने सुरक्षित रखने का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया ये भूमि बलजी-भूरजी की बणी के रूप में जानी जाती है | कच्चे चबूतरे की जगह अब उनके स्मारक के रूप में छतरियां बना दी गयी है ,जहाँ उनकी पुण्य तिथि पर हजारों लोग उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने इकट्ठा होते है |
जो बलजी-भूरजी अंग्रेज सरकार व जोधपुर रियासत के लिए सिरदर्द बने हुए थे मृत्यु के बाद लोग उन्हें भोमियाजी(लोकदेवता) मानकर उनकी पूजा करने लगे | आज भी आस-पास के लोग अपनी शादी के बाद गठ्जोड़े की जात देने उनके स्मारक पर शीश नवाते है,अपने बच्चों का जडुला (मुंडन संस्कार) चढाते है | रोगी अपने रोग ठीक होने के लिए मन्नत मांगते है तो कोई अपनी मन्नत पूरी होने पर वहां रतजगा करने आता है | भोपों ने उनकी वीरता के लिए गीत गाये तो कवियों ने उनकी वीरता,साहस व जन कल्याण के कार्यों पर कविताएँ ,दोहे रचे |
जोधपुर रियासत में उनके द्वारा डाले गए धाड़ों पर एक कवि ने यूँ कहा -
बीस बरस धाड़न में बीती ,
मारवाड़ नै करदी रीति |

राजाओं द्वारा अंग्रेजों की दासता स्वीकार करने से दुखी बलजी अपने भाव इस प्रकार व्यक्त किया करते -
रजपूती डूबी जणां, आयो राज फिरंग |
रजवाड़ा भिसळया अठै ,चढ्यो गुलामी रंग |

राजपूतों के रजपूती गुण खोने (डूबने) के कारण ही ये फिरंगी राज पनपा है | राजपुताना के रजवाड़ों ने अपना कर्तव्य मार्ग खो दिया है और उनके ऊपर गुलामी का रंग चढ़ गया है |
रजपूती ढीली हुयां,बिगडया सारा खेल |
आजादी नै कायरां,दई अडानै मेल ||

राजपूतों में रजपूती गुणों की कमी के चलते ही सारा खेल बिगड़ गया है | कायरों ने आजादी को गिरवी रख दिया है |
डाकू या क्रांतिवीर :
बलजी-भूरजी को यधपि लोग "धाड़ायति" (डाकू) ही कहते आये है कारण अंग्रेजी राज में जिसने भी बगावत की उसे कानूनद्रोही या डाकू कह दिया गया | जबकि बलजी-भूरजी डाके में लुटी रकम गरीबों में बाँट दिया करते थे उन्हें तो सिर्फ अपने ऊँटो को घी पिलाने जितने ही रुपयों की जरुरत पड़ती थी |
बलजी बठोठ-पटोदा के जागीरदार थे, बठोठ में उनका अपना गढ़ था ,उनके आय की कोई कमी नहीं थी वे अपनी जागीर से होने वाली आय से अपना गुजर बसर आसानी से कर सकते थे और कर भी रहे थे ,जबकि बागी जीवन में उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था उनका जीवन दुरूह हो गया था ,उन्हें अक्सर रेगिस्तान के गर्म रेत के टीलों के बीच पेड़ों की छाँव में जिन्दगी बितानी पड़ती थी ,खाना भी जब जैसा मिल गया खाना होता था | महलों में सोने वाले बलजी को बिना बिछोने के रेत के टीलों पर रातें गुजारने पड़ती थी | इसलिए आसानी से समझा जा सकता था कि बागी बनकर डाके डालकर धन कमाने का उनका कोई उदेश्य नहीं था |
भूरजी भी भारतीय सेना में सीधे सूबेदार के पद पर पहुँच गया था यदि उसके मन में भी अंग्रेजों के प्रति नफरत नहीं होती तो वो भी आसानी से सेना में तरक्की पाकर बागी जीवन जीने की अपेक्षा आसानी से अपना जीवन यापन कर सकता था पर दोनों भाइयों के मन में अंग्रेज सरकार के विरोध के अंकुर बचपन में ही प्रस्फुटित हो गए थे और उनकी परिणित हुई कि वे अपना विलासितापूर्ण जीवन छोड़कर बागी बन गए |

बेशक जोधपुर स्टेट में उन्हें कानूनद्रोही माना पर शेखावाटी व उन स्थानों की जनता ने जिनके बीच वे गए क्रांतिवीर व जन-हितेषी ही माना |

Wednesday, July 6, 2016

कैद ए इश्क

फिर ये मुमकिन कहाँ हो इश्क के बाद,
एक रोज जो हाजिर ना हुए उनके पास ।
करते देखा है मैंने तसल्ली उनको हर बार,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

मैंने डूबते देखा है खुद को दरिया ए इश्क में,
और महसूस करते है तेरा चुपके से चले जाना ।
नाउम्मीदी का आलम अभी कायम हर बार,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

मैं तन्हाई को अपना मुकद्दर समझ बैठा,
अब भी तेरे आने का इंतजार एक अरसे से है ।
मैं सोचता हूँ खुद को अब तेरे अक्स से परे,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

है तेरा इंतजार कि तेरे इकरार के बाद,
है रूठने का क्या मतलब इसरार के बाद ।
मोह्हबत है तुमसे हर पल मेरी जान मुझे,
ये कैद इश्क की मेरे हमदम...  ना छूटे ना छूटे ।।

सत्येन दाधीच
7425003500