Wednesday, October 18, 2017

प्यार भरी पाती

तुम छू गए इस मेरे दिल को,
पहली बार तुम पे आ गया ।
अंकिता के अंकित हुए आप,
खुशबू भरा सौरभ भा गया ।।

है जगमग रोशन जहाँ अब मेरा,
बनके दिवाली यूँ महबूब आ गया ।
खुशियों संभाल मुझे लेना हर पल,
मेरे जीवन का हर त्यौहार आ गया ।।

वो आपको जब देखा था पहली बार,
मुझे आप पे प्यार बेशुमार आ गया ।
धड़कनो ने कहा धड़क के सुन लो,
सपनों का सामने राजकुमार आ गया ।।

आपका आना मेरे जीवन की खुशी,
खुशियों में दिवाली का त्यौहार आ गया ।
ये दिन खास है हर एक लम्हा दर लम्हा,
जन्मदिन मुबारक आपका पैगाम आ गया ।।

बस यूं ही मुस्कुराते रहियेगा हर पल,
मेरी तो अ दिलबर जिंदगी संवर जाएगी ।
बस अब तो इंतजार है उस लम्हे का,
सौरभ की हो अंकिता डोली में चली जायेगी ।।

आपकी
अंकिता

Sunday, October 15, 2017

जमीनी हकीकत

आपका यह देखा हुआ सपना है किसी एक के लिए और वह भी तब जब आप इसे अपने तरीके से जनता को दिखाने नही बल्कि सिर्फ बता रहे है तो आप कैसे कह सकते हो कि जनता सात बार मतलब अगले कई वर्षों तक एक जैसा जनादेश देगी ??

रिकॉर्ड्स गेम में बना करते है राजनीति अलग चिड़िया है जिसके पर आप नही नाप सकते और ना ये भाँप सकते हैं कि किसी के मन में क्या है ?

इंतजार कीजिये सपना देखा है तो हकीकत भी तो करना होगा ना बाकी सिर्फ प्रचार के लिए Facebook है ना ।

बात कड़वी होगी पर कड़वी दवा ही अक्सर बीमारी की आखरी दवा है ऐसा कहीं सुना होगा या नही ???

Enjoy your time as you are a team player but also remember that you are a member only... Not the trendsetter...

Satyen

बदलाव जरूरी है ।

सब का एक समय होता है पर एक सा हमेशा नही होता , बदलाव जरूरी होता है या नही पर बदलाव होता आया है क्योंकि परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है ऐसा गीता में भी पढ़ा है और अगर आप स्थायित्व की बात करे तो याद रखिये जो आता है वो जाएगा क्योंकि तभी तो नया आएगा ।

उदाहरण के लिए कैसा हो कि पूरा जीवन दिन ही रहे कभी रात ना हो ?? परेशानी होगी या नही ??

अगर आप टेक्नोलॉजी नई चाहते हैं तो आपको बदलते रहना होगा अब ऐसी के युग में भला हाथ पंखे को कोई याद करता है ?

रही बात जनप्रतिनिधियों की तो आप जानते है जनता जिसे देखती है उसे उसके काम के हिसाब से बराबर का हिसाब करती है क्योंकि जनता वही है जो सब जानती है और फिर ये तो टेक्नोलॉजी का जमाना है तो बदलाव कब और कैसे होगा समझ ही नही सकता इंसान ।

वक्त की धारा में बहते हुए इंतजार कीजिये कल क्या होगा उसका आप सिर्फ पूर्वानुमान लगा सकते है भविष्यवाणी करना होगातो सिद्ध पुरुषों का काम है उन्हें करने दीजिए ।

बस जनता को खुश रखिये क्योंकि वही मत देती है उससे बड़ा जज जनप्रतिनिधियों के लिए और कोई नही है ।

बस लगे रहिये, क्योंकि सोशल मीडिया आपका आईना है ।

सत्येन दाधीच

Friday, October 13, 2017

सहारा - बेसहारा

नवलगढ़ शहर के पास बड़वासी गाँव में रहने वाली एक विधवा स्त्री जो अपना नाम सुप्यार कँवर बताती है पिछले कुछ दिनों से मेरे घर के आस पास ही अपने दिन बिता रही है । एक आध बार ध्यान नहीं गया लेकिन एक रात को जब उसे रोते बिलखते देखा तो उस वृद्धा के दुख के कारण जानने चाहे तो कुछ यूं हकीकत सामने आई ।

बड़वासी में रहने वाली इस महिला के पति का नाम केशरसिंह राव था और कई सालों पहले उनका देहांत हो गया ना कोई बेटा ना बेटी और फिर शुरू हो गया इनके दुखों का दौर ।

कभी अपने रिश्तेदारों के यहां, कभी पड़ोसियों के यहां दो जून की रोटी और रात को सोने के लिए एक छत जहाँ बस जीवन यूँ ही कट रहा है लेकिन पिछले कुछ दिनों से ना जाने क्या हुआ इस वृद्धा के साथ सब ने किनारा कर लिया ।

अपने रिश्तेदारों के यहाँ एक दिन रुकी लेकिन उन्होंने इसे निकाल के पल्ला झाड़ लिया और आ गई एक जिंदगी सड़क पर उस उम्र में जब उसे सहारा चाहिए ।

मेरे पड़ोसी महिलाओं ने संवेदनाशून्यता की मारी इस वृद्धा को खाने पीने से लेकर रात्रि विश्राम तक कि व्यवस्था की ताकि सब यह देख समझ सके कि इंसानियत जिंदा है अभी ।

कल 13 अक्टूबर 2017 को दोपहर नवलगढ़ उपखंड अधिकारी श्री दुर्गाप्रसाद मीणा जी को मैंने फोन कर वस्तुस्थिति से अवगत करवाया तो उन्होंने यथसम्भव सहायता करने की कही । नवलगढ़ थानाधिकारी श्री बलराज मान ने एक टीम गठित कर ए एस आई सुश्री ललिता और ओमप्रकाश को तत्संबंधित कार्यवाही करने हेतु भेजा ।

Tuesday, October 10, 2017

Majority emotions... India that is Bharat.

जस्टिस लोग बाबा साहेब के बनाये उस संविधान के लिखे गए नियमों के गुलाम हैं जो 1935 के India Independence Act की फ़ोटो कॉपी है, जिसमें  1950 में हमारे पूर्वजों ने कॉमा पाई लगाकर उसका भारतीयकरण कर दिया।

इस संविधान में मेजोरिटी हिन्दू के पक्ष में एक भी आर्टिकल लिखा हो तो बताओ। जबकि माइनॉरिटीज के हितों की रक्षा के  लिए इसमें  5 आर्टिकल हैं - आर्टिकल 25 से 30 तक।

ज़ज़्ज़ साहब को न गरियाये पटाखे के चक्कर में क्योंकि भारत चीनी झालरों और पटाखों से भरा पड़ा है। बाकी भारत में पटाखे के प्रोडक्शन का काम शांतिप्रिय लोग करते हैं।

वो ऑब्जेक्शन करें। तो ठीक है ।
आपको क्या दिक्कत है ?

दीवाली दियाली और दीपों का त्योहार हैं - दिया जलाएं , अपने कुम्हार भाइयों के घरों को रोशन कीजिये।

सत्येन

Wednesday, October 4, 2017

कृष्ण कथा 1

✍🏻 *महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा "मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?*

दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था?

परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी साथ ये शाप भी दिया कि मैं अपनी विद्या भूल जाऊंगा क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय समझते थे।

भूलवश एक गौ मेरे तीर के रास्ते मे आकर मर गयी और मुझे गौ वध का शाप मिला?

द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया।

यहां तक कि मेरी माता कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच अपने दूसरे पुत्रों की रक्षा के लिए स्वीकारा।

मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला!

*तो क्या ये गलत है कि मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूँ..??*

*श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले-*
"कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा। तुम्हारा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट और तीर कमानों के साये में गुज़रा।
मैने गायों को चराया और गोबर को उठाया।
जब मैं चल भी नही पाता था तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए।
कोई सेना नही, कोई शिक्षा नही, कोई गुरुकुल नही, कोई महल नही, मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।
जब तुम सब अपनी वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे उस समय मेरे पास शिक्षा भी नही थी। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला।

तुम्हे अपनी पसंद की लड़की से विवाह का अवसर मिला मुझे तो वो भी नही मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी।
मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था!
जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा।

यदि दुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हे भी मिलता, लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिला! मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझ।

*हे कर्ण!* किसी का भी जीवन चुनोतियों से रहित नही है। सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नही होता। कुछ कमियां अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्टर में भी थीं।
सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं!

इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है,

इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारा अपमान होता है,

इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।

*फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं..!!*

Tuesday, October 3, 2017

आर्थिक अंगूठाछाप

बस एक फँसे रिकोर्ड की तरह बजते रहेंगे: शिक्षा पर ख़र्च बढ़ाओ, चिकित्सा पर ख़र्च बढ़ाओ, तरक़्क़ी होगी।

ब्रिटेन में शिक्षा अनिवार्य हुई थी 1880 में, 1750 में नहीं। अशिक्षित थे तो दुनिया क़ब्ज़े में कर ली थी। पढ़ लिख गए तो साम्राज्य खो बैठे।
ब्रिटेन में मुफ़्त चिकित्सा आयी 1948 में।
1980 आते आते देश दिवालिया हो गया।
थेचर ना आयी होती तो अब तक देश दिवालिया होकर गलफ़ियों को बिक चुका होता।

ब्रिटेन की चिकित्सा सेवा जीवित है तो इसलिए कि बहुत ज़्यादा राशनिंग है: इतने बरस के हो गए तो हार्ट सर्जरी नहीं होगी, इतने के हो गए तो घुटनो की सर्जरी नहीं होगी, व हज़ारों मरते है वेटिंग लाइन में, इलाज के इंतज़ार में हर वर्ष। और देश हो चुका है ख़त्म। 2050 में कोई ब्रिटेन नहीं होगा।

भारत में ही अभी से ही बच्चो ने MBBS में जाना बंद कर दिया है। शिक्षा दस बरस चलती है और उसके बाद भी कोई आय नहीं क्यूँकि बीमार तो है लेकिन इनके पास फ़ीस के पैसे नहीं है। क्यूँकि देश में उद्योग नहीं है जहाँ वे काम कर पैसे कमा सके। हम सोचते है कि बिना ओद्योगिकरण के हम ओद्योगिककृत देशों जैसी चिकित्सा व शिक्षा पा सकते है।

ओद्योगिककृत देश पहले ओद्योगिककृत हुए उसके बाद उन्हें अच्छी चिकित्सा व शिक्षा मिली। भारत में जब 70 साल की हज़ारों ग़रीबी हटाओ योजनाओ के बाद भी ग़रीबी ज्यों की त्यों रही और लोगों ने पूछना शुरू कर दिया कि हम अभी भी ग़रीब क्यूँ है तो वामपंथियों ने ये "शिक्षा पर ख़र्च बढ़ाओ, चिकित्सा पर ख़र्च बढ़ाओ, तरक़्क़ी होगी" का रिकोर्ड बजाना शुरू कर दिया, full volume पर।

सम्पन्नता उद्योग व व्यापार से आती है। लेकिन हम सोचते है कि क़ानून बनाकर हम ख़ुद को अमीर बना लेंगे।

यह समाधान नहीं है कि बस क़ानून बना दो: सबको शिक्षा, सबको चिकित्सा, सबको रोज़गार ।
बने सभी तो क्या आर्थिक अँगूठाछाप ??

Satyen Dadhich