Tuesday, October 3, 2017

आर्थिक अंगूठाछाप

बस एक फँसे रिकोर्ड की तरह बजते रहेंगे: शिक्षा पर ख़र्च बढ़ाओ, चिकित्सा पर ख़र्च बढ़ाओ, तरक़्क़ी होगी।

ब्रिटेन में शिक्षा अनिवार्य हुई थी 1880 में, 1750 में नहीं। अशिक्षित थे तो दुनिया क़ब्ज़े में कर ली थी। पढ़ लिख गए तो साम्राज्य खो बैठे।
ब्रिटेन में मुफ़्त चिकित्सा आयी 1948 में।
1980 आते आते देश दिवालिया हो गया।
थेचर ना आयी होती तो अब तक देश दिवालिया होकर गलफ़ियों को बिक चुका होता।

ब्रिटेन की चिकित्सा सेवा जीवित है तो इसलिए कि बहुत ज़्यादा राशनिंग है: इतने बरस के हो गए तो हार्ट सर्जरी नहीं होगी, इतने के हो गए तो घुटनो की सर्जरी नहीं होगी, व हज़ारों मरते है वेटिंग लाइन में, इलाज के इंतज़ार में हर वर्ष। और देश हो चुका है ख़त्म। 2050 में कोई ब्रिटेन नहीं होगा।

भारत में ही अभी से ही बच्चो ने MBBS में जाना बंद कर दिया है। शिक्षा दस बरस चलती है और उसके बाद भी कोई आय नहीं क्यूँकि बीमार तो है लेकिन इनके पास फ़ीस के पैसे नहीं है। क्यूँकि देश में उद्योग नहीं है जहाँ वे काम कर पैसे कमा सके। हम सोचते है कि बिना ओद्योगिकरण के हम ओद्योगिककृत देशों जैसी चिकित्सा व शिक्षा पा सकते है।

ओद्योगिककृत देश पहले ओद्योगिककृत हुए उसके बाद उन्हें अच्छी चिकित्सा व शिक्षा मिली। भारत में जब 70 साल की हज़ारों ग़रीबी हटाओ योजनाओ के बाद भी ग़रीबी ज्यों की त्यों रही और लोगों ने पूछना शुरू कर दिया कि हम अभी भी ग़रीब क्यूँ है तो वामपंथियों ने ये "शिक्षा पर ख़र्च बढ़ाओ, चिकित्सा पर ख़र्च बढ़ाओ, तरक़्क़ी होगी" का रिकोर्ड बजाना शुरू कर दिया, full volume पर।

सम्पन्नता उद्योग व व्यापार से आती है। लेकिन हम सोचते है कि क़ानून बनाकर हम ख़ुद को अमीर बना लेंगे।

यह समाधान नहीं है कि बस क़ानून बना दो: सबको शिक्षा, सबको चिकित्सा, सबको रोज़गार ।
बने सभी तो क्या आर्थिक अँगूठाछाप ??

Satyen Dadhich