Monday, March 27, 2017

Gair old

नवलगढ़ शहर की बात ।

राजस्थान के झुंझनु जिले का कस्बा नवलगढ़ ।

यहाँ हर साल रंगों के पर्व होली पर परंपरागत "गैर" निकलती है । इस गैर का इतिहास जब खंगाला गया तो कुछ इस तरह से पता चला कि गैर पोदार गेट जो की नवलगढ़ का पूर्वाभिमुखी प्रवेश द्वार है से प्रारम्भ होकर बाला किला गढ़ से होकर नानसा गेट के रास्ते फतेहगढ़ (पानी की टंकी पर एक गढ़ है जिसमे असलहा तोपे आदि रहते थे ) के नीचे बनी नहर पर जाकर खत्म होती थी ।

पुराने जमाने में पानी की कीमत लोगों को पता थी इसलिए गैर हो या किसी के दाह संस्कार में जाना हो लोग कुवें, बावड़ी या नहर पर नहा लिया करते थे । इस प्रकार से यह एक ऐसी प्रथा है जिसे हम परम्परागत रूप से नाच गाकर सालों से मनाते और निभाते चले आ रहे है ।

कुछ 15 या 20 साल पहले एक बार यहाँ कुछ असामाजिक तत्वों ने उपद्रव कर इस शहर की गैर को मानो प्रशासन की मशक्कत और लोगों के नाक का प्रश्न सा बना दिया था । प्रशासन पूरा मुस्तैद रहकर इस त्यौहार के दिन शान्ति और सुरक्षा बनाए रखता है जिसकी हर नवलगढ़ का नागरिक तहे दिल से प्रशंसा करता है ।

लेकिन इस व्यस्ततम भागदौड़ भरी जिंदगी में त्योहारो की रौनक को खोते हुए देखकर नवलगढ़ के युवाओं ने आपस में चर्चा की और सोचा की क्यों ना इस बार होली को अनूठे ढंग से मनाकर एक मिसाल कायम की जाए । 364 दिन आपसी भाई चारे और साम्प्रदायिक सौहार्द में जीने वाले लोग क्या एक दिन जो की उनका सबसे बड़ा पर्व है और सौहार्द कायम नहीं रख सकते ।

नवलगढ़ पर झूठा सांप्रदायिक होने का लेबल चिपकता देख मुट्ठी भर संवेदनशील नागरिकों और मस्ती ग्रुप ने इस बार एक अनूठी पहल की । मस्ती ग्रुप के 256 सदस्यों ने आपस में विचार विमर्श करके लोगों और हर आम नागरिक से बात कर यह राय जानी । बस फिर क्या था व्हाट्स एप्प, फेसबुक और पेम्पलेट से सबने अपने आपको इस माह अभियान में लगा दिया । आप की बाटचीतों का दौर, शान्ति की अपील, परम्परा का निर्वाह अनुशासन से करने को लेकर लोग जुट गए । 23 मार्च अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत के दिन नवलगढ़ कस्बा उमड़ आया । जाति पाँति से ऊपर उठकर हर उम्र का चाहे वो वृद्ध हो या युवा यहां तक की छोटे छोटे बच्चों ने पुरे शहर में मार्च निकाला । शहर मैं पहली बार लीक से हटकर कोई कार्यक्रम हुआ । शहर का हर आदमी गवाह बना है की उस दिन भारतीय तिरंगे के तले पूरा नवलगढ़ एक था। लोगों में होली के त्यौहार से कहीं ज्यादा उत्साह उस मार्च में आने और शामिल होने का देखा गया । सबक मिला कि एक हैं हम भारत माता के नाम पर ।

अगले दिन 24 मार्च को सबको एक मंच पर लाकर शानदार तरीके से गैर निकली कहीं कोई अप्रिय घटना के बिना यह गैर निकालकर त्यौहार मनाकर यह सिद्ध कर दिया की नवलगढ़ शहर आपसी सौहार्द और भाईचारे में विश्वास करता है ।
इस पूरे माहौल को बनाया गया आपसी संपर्कों, सोश्यल मीडिया जैसे की व्हॉट्स एप्प, फेसबुक आदि के जरिये ।

मस्ती ग्रुप और नवलगढ़ के हर आम आदमी ने यह सिद्ध किया की यह शहर आपसी भाई चारे और सौहार्द में विश्वास करता है, सुकून और शांति इस शहर की परम्परा रही है जिसे आगे भी यूं ही कायम रखा जाएगा ।

यह संदेश आम जन तक पहुँचे की भारत का यह कस्बा नवलगढ़ ना सिर्फ हवेलियों बल्कि अपनी शान्ति के लिए भी जाना और पहचाना जाता है ।

सत्येन दाधीच
क्रिएटिव कंटेंट  राईटर

Sunday, March 26, 2017

गैर

नवलगढ़ की गैर में इस बार को हुए विवाद को लेकर आप हमारी बात सुनने के लिए पधारे हमारे संभागीय आयुक्त साहब इसके लिए हम आपको और राजस्थान प्रशासन का हार्दिक धन्यवाद देते है ।

यहाँ हम आये है क्योंकि हमें अपना पक्ष रखना है और शान्ति से अपनी इस परम्परा गैर को निकालने के लिए किये जा रहे हमारे मिलेजुले प्रयासों की जानकारी प्रशासन तक लिखित रूप में पहुचानी है । 

श्रीमान जी,

यह गैर नवलगढ़ की एक परंपरा है और इस परंपरा का निर्वहन यहाँ एक आम बात है क्योंकि राजशाही जमाने से चली आ रही यह गैर हम हमारे बड़े बुजुर्गों के जमाने से देखते आ रहे है और गर्व है हमें हमारी नवलगढ़ की समृद्ध संस्कृति और इस सांस्कृतिक विरासत भरी परंपरा का जिसके वजह से नवलगढ़ की गैर जानी जाती है ।

पुराने समय में पोदार गेट से शुरू होकर शहर के राजपरिवार के साथ रंग खेलते हुए शहर के मुख्य मार्गों से होकर रंग खेलते हुए लोग चूणा चौक पहुँचते थे जहाँ एक समय नहर थी और लोग वहां नहा धोकर अपने अपने घरों का रुख करते थे ।

कालांतर में नहर नहीं रही मकान बनते चले गए और गैर भी एक परम्परा बन गई । नवलगढ़ की इस गंगा जमुनी संस्कृति में जहाँ साम्प्रदायिक सौहार्द, आपसी भाई चारा कण कण में है वहां ऐसी घटना होना वाकई सोचने वाली बात है ।

श्रीमान जी यहाँ एक बार 1987 में कुछ असमाजिक तत्वों ने गैर जुलुस में अपनी हरकतों से गैर का स्वरूप बिगाड़ने की कोशिश की लेकिन जैसा की सब जानते है की अपनी परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों का सच्चा अर्थ और मायने तभी है जब आदमी इसको अपना दायित्व समझता है । हमें गर्व है अपनी नवलगढ़ की जनता और आम नागरिक का जो 1987 के बाद भी ना सिर्फ गैर में सम्मिलित हुए बल्कि हर एक ने यह साबित किया की नवलगढ़ एक शांतिप्रिय शहर है और हमारे लिए हमारी शान्ति और परम्परायें सर्वोपरि है क्योंकि ये हमें हमारे पुरखों से विरासत में मिले है ।

बैरिकेडिंग, परदे, पुलिस जाब्ता आदि अगर आप 1987 की गैर के पश्चात की रिपोर्ट्स मंगवा कर देखे तो साल दर साल बिना वजह बढ़ाया जा रहा है । पिछली बार घुड़सवार पुलिस बुलवाई गयी थी और ज्ञात रहे की पिछली बार की गैर सर्वाधिक शांतिपूर्ण और सौहार्द भरे माहौल में निकली थी फिर भी इस बार दंगारोधी बल, वाटर कैनन से लेस 2 वाहन, 1000 कमांडो और पुलिस जाब्ता क्या इतना संवेदनशील है यह शहर नवलगढ़ ?

सुबह 9 बजे घर से निकल कर रंग खेलते, धमाल गाते लोगों की हालत बिना किसी पानी के इंतज़ाम के (इस अवसर पर शहर मैं पानी सप्लाई गैर के बाद होती है) ऐसी नहीं रहती की वो किसी तरह का उपद्रव करे । फिर भी प्रशासन ने पता नहीं क्यों सिर्फ और सिर्फ गैर जुलुस को आगे धकेलने को लेकर इतने इंतज़ाम करने की हर साल ठान रखी है ।

इस बार प्रशासन ने ना सिर्फ बिजली आपूर्ति बंद की अपितु इंटरनेट भी बंद किया जो भारत देश के उन हिस्सों में किया जाता है जहां धार्मिक, सामुदायिक, जातिगत, देशविरोधी गतिविधियाँ चलती है हमें तो आज तक इस शहर में ऐसा कुछ नजर नहीं आया ।

गैर जुलुस के दौरान पीने के पानी का इंतज़ाम तक के लिए हमें बारबार आला अधिकारियों को कहना पड़ता है तब भी अपर्याप्त इंतजाम होते है जो वाकई सोचने का विषय है ।

हर बार एक से एक हाईटेक इंतज़ाम किये जाते है इस बार ड्रोन कैमरा था जिसकी रिकॉर्डिंग अगर जुलुस, चूणा चौक, मस्जिद के आस पास की देखी जाए तो मामला समझ में आ सकता है ।

पहले गैर के रास्ते में पड़ने वाली मस्जिद से 200 फीट तक बैरिकेडिंग होती थी था किसी को भी मस्जिद में प्रवेश अजान के तय समय से पूर्व वर्जित था लेकिन इस बार बेरिकेडिंग मस्जिद के गेट के पास लगाईं गई  और कुछेक वीडियो रिकॉर्डिंग्स में आप लोगों को बेरिकेडिंग तोड़ते हुए देख सकते है जो गैर जुलुस का किसी तरह से कोई हिस्सा नहीं थे ।

गैर जुलुस के रस्ते में भारी पुलिस फ़ोर्स होना और आस पास के रास्तों को 500 मीटर तक बेरिकेडिंग से बंद करना समस्या बना जिसकी कोई पूर्व योजना प्रशासन ने निर्धारित न की ।

पिछले कुछ सालों से गैर के रास्ते में आने वाली मस्जिद को परदों, कनात आदि से ढका जाता है लेकिन फिर भी कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा उन्हें फाड़ दिया जाता है । इस बार जब सुझाव माँगा गया तो लोहे की टिन से एक अस्थाई व्यवस्था करने की मांग की गई ताकि परदे फाड़ने या किसी तरह की पथरबाजी से जुलुस या मस्जिद को नुक्सान ना पहुँचे लेकिन इस सुझाव को दरकिनार कर दिया गया और नतीजन परदे भी फटे और पत्थरबाजी भी हुयी ।

नवलगढ़ की जनता और यहां के हर आम आदमी द्वारा इस गैर उत्सव का आनंद लिया जाता है और सभी स्वयं अनुशासित रहकर इस गैर को इतने सालों से निर्विघ्न संम्पन् करवाते है तो कुछ असमाजिक तत्वों के चलते पूरी जनता अपने त्यौहार गैर के दिन बिना वजह अपने शहर को अतिसंवेदनशील महसूस करती है ।

क्यों आखिर क्यों ऐसा है की नवलगढ़ का हिन्दू समुदाय अपने त्यौहार को प्रशासन के ऐसे इंतजाम ना सिर्फ झेलता है बल्कि घुड़सवार पुलिस द्वारा खदेड़ा जाता है और डंडे भी खाता है ।

क्या उत्पाती लोगो की पूरी भीड़ सिर्फ गैर जुलुस में होती है ?

क्या हमारी परम्परा गैर जुलुस अब सिर्फ प्रशासन द्वारा अपने सरक्षण में आयोजित एक समय नियोजित कार्यक्रम भर रह गया है ???

क्या मस्जिद में दी जाने वाली अजान का समय हर वर्ष बदलता है ? क्योंकि हर बार तय समय अलग रहता है ।

क्या सारे इंतज़ाम और सुरक्षा सिर्फ और सिर्फ गैर जुलुस के ऊपर ही लागू होते है जबकि वहाँ के आस पास के निवासी अपनी छतों पर रहते है जो बिल्कुल गलत है और इसकी पूर्व सूचना भी प्रशासन को देने के बावजूद कोई कार्यवाही ना होना क्या प्रशासन के इंतज़ाम का फैल होना नहीं माना जाए ।

पूर्व में गैर सदा शान्ति पूर्वक निकलती रही है और कंही कोई अप्रिय घटना नहीं हुई यह इस शहर का सौहार्द और भाई चारे की भावना ही तो है जो इस आयोजन को अपनी आने वाले पीढ़ियों तक अपनी सांस्कृतिक विरासत पहुचाने का कार्य करती है । ऐसे शहर में इतना पुख्ता इंतजाम होना आउट उसके बाद होने वाली ऐसी घटनाओं द्वारा शहर का माहौल बिगाड़ने की चन्द असमाजिक तत्वों की साजिश हो सकती है जिनका ना कोई धर्म है, ना कोई राजनैतिक दल और ना कोई समुदाय उनका मकसद इस शहर की शान्ति व्यवस्था और शहर की पहचान गैर पर टेढ़ी नजर है जिससे नवलगढ़ का आम नागरिक क्षुब्ध है और आप से चाहता है की सांप्रदायिकता के इस झूठे ठप्पे को इस गौरवशाली शहर के माथे से उतार दिया जाए ।

हम गैर जो की हमारी परम्परा है को निर्विघ्न और शान्ति से निकाले को लेकर प्रतिबद्ध है और इसी क्रम में पिछले साल 2016 की गैर की अगर आप वीडियो रिकॉर्डिंग देखेंगे तो यह भीड़ कम और अनुशासन से भरे आम नागरिकों का सौहार्द जुलूस अधिक नजर आयेगा । नवलगढ़ शहर के नागरिकों, मस्ती ग्रुप, नवलगढ़ पोस्ट ने पिछली बार तमाम सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया के जरिये सभी से शान्ति और अनुशासन का पालन करने की अपील की थी और गर्व से कहना होगा की सब ने इस अपील का पुरजोर समर्थन करते हुए एक शानदार गैर निकाली जिसमे राजस्थानी लोकगीत, भजन, हनुमान चालीसा, धमाल का पहली बार अभूतपूर्व दृश्य सबने देखा और सराहा ।

आप इस विषय पर ध्यान दे और इस शहर की शान्ति और सौहार्द को कायम रखते हुए हम अपने परंपरागत त्योहारों को मनाएं सिर्फ ऐसी व्यवस्था करे ।

होली एक त्यौहार है उल्लास का, रंगों का, मस्ती का इस त्यौहार के ऊपर यूं इस तरह की घटना होना वाकई एक प्रश्नचिंह खड़ा करता है प्रशासन पर कि वह किस बिनाह पर गैर जुलुस को एक तय समयसीमा वाला त्यौहार बनाने पर तुला है ।

प्रशासन से अनुरोध करते है हम सब नवलगढ़ के नागरिक

Monday, March 20, 2017

कविता : तेरा साथ

वो पल पल तुम्हारा साथ,
वो हाथों मे तेरा हाथ ।
ये दिल अब भी नहीं मानता,
कि तुम हो वहाँ और मैं हूँ यहाँ ।।

वो तेरा मेरे सपनो में आना,
फिर पंख लगाकर उड़ जाना,
ये दिल अब भी नहीं मानता,
कि तुम हो वहाँ और मैं हूँ यहाँ ।।

तुम से सुनना मुहब्बत है,
मेरा कहना तुमसे मुहब्बत,
ये दिल अब भी नहीं मानता,
कि तुम हो वहाँ और मैं हूँ यहाँ ।।

वो याद आना तेरी पल पल,
मैं दिन गिन रहा आज कल,
ये दिल अब भी नहीं मानता,
कि तुम हो वहाँ और मैं हूँ यहाँ ।।

तुम आ जाओगे बनके जिंदगी मेरी,
तुम खुदा मेरे मैं करूँ इबादत तेरी,
ये दिल अब भी नहीं मानता,
कि तुम हो वहाँ और मैं हूँ यहाँ ।।

तुम्हारा इंतज़ार है हर पल
ये दिल अब भी नहीं मानता,
कि तुम हो वहाँ और मैं हूँ यहाँ ।।

सत्येन दाधीच
7425003500

Copyright©®

Sunday, March 19, 2017

कविता :: वह है प्यार...

यह क्या है  प्यार...

जब तुम न कहो...
जब हम न कहें...
शब्द सीमाओं से...
है परे की चीज़ यह प्यार...

ज़ज्बात मेरे-तुम्हारे...
बयाँ कर पाए...
वह है प्यार...

बिन कहे जो समझ जाए...
वह है प्यार...
कोई हो ना हो पर साथ निभाए...
वह है प्यार...

बिन चाहत जो दे चाहत...
है वह प्यार...

क्या कहूँ मैं...
जो मन में है मेरे...
वह है प्यार...

जो कहता हूँ तुमसे...
वह है प्यार...
और जहाँ चुप हो जाऊँ...
वह है प्यार...

जहाँ लगालूँ सीने से तुम्हे...
वह है प्यार...
और तुम सुनो मेरी धड़कन...
वह है प्यार...

Satyen Dadhich sonu

Freelancer Writer

+91 7425003500

rulooking.com@gmail.com


To read my thoughts visit my blog

http://satyensonu.blogspot.in

#LifeLine #कलाम-ए-कलम #Satyen

मेरी समझ में "सोच " महत्वपूर्ण है क्योंकि अलग तरीके से सोचना और स्वयं में अटूट विश्वास ही एक दिन महान बन जाने का कारण बनते है । 

Copyright Protected ©®





Friday, March 17, 2017

परम्परा से परे होते हम

त्यौहार.... यह शब्द दिमाग में आते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है और उल्लास, उमंग, मस्ती से सराबोर होकर अपने आपको परंपराओं  से जुड़ा महसूस करने लगता है ।

श्रीमान जिला कलेक्टर महोदय ,
जिला - झुंझुनू

विषय - होली के जुलुस बाबत

महोदय ,

हम नवलगढ वासी पिछले कई वर्षो से होली को परम्परागत रूप से गैर के रूप में मनाते आये है । पिछले कुछ वर्षो में कई बदलाव इस रूप में हमने देखे है , इन्ही बदलावों के विषय में कुछ बिन्दुओ पर आपका ध्यान आकर्षित करवाना चाहते है

1. गैर के जुलुस में लोग हर्षोल्लास से जाते है परन्तु पिछले 2 वर्षो से प्रशासन ने पानी पिने की व्यवस्था को गैर में से हटा दिया है । जो की उचित नहीं है ।

2. महोदय होली के समय शहर के सैकड़ो लोगो को ज्ञापन थमा दिए जाते है , अगर आप इसकी सही रूप से जाँच करवाएंगे तो पाएंगे की ऐसे कई लोग है जिन्हें पुलिस के नाम का भी भय लगता है और उन्हें कुछ प्रभावशाली लोगो की वजह से ज्ञापन थमा दिए जाते है ।

3. महोदय यह त्यौहार हिन्दू संस्कृति से ओत प्रोत है और केशरिया ध्वजा हमारे धर्म का प्रतीक है ।फिर क्यों प्रशासन द्वारा गैर में इस ध्वजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है ।

महोदय हम नवलगढ के नागरिक 364 दिन हिन्दू मुस्लिम सभी मिल जुलकर रहते है । कई वर्षो पहले यदि गलत घटना हो गयी तो क्या इसकी सजा दोनों समाज को हमेशा भुगतनी होगी । हमारा प्रयास सिर्फ इतना है की सकारत्मक प्रयास प्रारम्भ किये जाये जिससे यह कटुता खत्म हो और दोनों समाज निकट आकर होली पर मिसाल कायम करे ।

    निवेदक

समस्त नवलगढ वासी

Friday, March 10, 2017

क्या लिखूं

कह देता हूँ सिर्फ तुम्हारा है,
मैं दिल ये मेरा तेरे नाम लिखूँ,
मेरी धड़कन कहती है अब,
हर रोज़ सुबह और शाम लिखूँ ।

लिखने की इश्क करू कोशिश,
हर बार मैं तेरा नाम लिखूँ ।
जुल्फों की बदली जब छाये,
मैं चाँद पे ढलती शाम लिखूँ ।।

सोता ही कहाँ अब हूँ यारा,
सितारों से ये पैगाम लिखूँ ।
है इश्क मुहब्बत है तुमसे,
जीवन मैं तेरे नाम लिखूँ ।।

सत्येन दाधीच
7425003500

तुम्हे अब क्या बताना है

कितना है मुझे इश्क अब तुमसे,
तुम्हे अब क्या मुझे बताना है ।
देखा है जब से तुम्हे इन आँखों ने,
ये दिल सिर्फ तेरे दीदार का दीवाना है ।

खुद को खो चुका हूँ तेरी यादों के दरमियाँ,
अब हर पल उन्हें याद करते जाना है ।
पाने की चाह और और कुछ नहीं सनम,
सब को भूल सिर्फ तेरा हो जाना है ।।

धड़कता है मेरा दिल तेरे दिल के साथ,
कहता है तेरे साथ जिंदगी बिताना है ।
चुप रहता हूँ तेरे आँखों को देखकर,
अब तो सिर्फ आँखों से ही सब कह जाना है ।।

सत्येन दाधीच
7425003500

Tuesday, March 7, 2017

क्या मेरा प्यार है

तुम्हे पाने का तेरा हो जाने का नाम प्यार है,
तेरा हो जाने का नाम बस यही तो प्यार है ।
जो लोग कहते है धड़कना धड़कनो का,
सीने पे तेरा नाम लिख जाने का नाम प्यार है ।।

तेरी बात को मेरे होठों से कह जाने का,
फिर लबों पे लिख जाना मेरा प्यार है ।
जिंदगी हम ना जानते थे तेरे मिलने से पहले,
असल में तेरा मिल जाना प्यार है ।।

वो बातें अनकही जो कहता है मेरा दिल,
उन्हें तुम्हे बताना जताना प्यार है ।
मैं अकेला जी रहा था इतने सालों से,
अब जन्मो के लिए तेरा हो जाना प्यार है ।।

तन्हाई देखा करता था आज तक मैं,
अब तेरा साथ पाना मेरा यही प्यार है ।
जो कहना पाया मैं अपने होठों से अब तक,
तेरी धड़कन से कह जाना हाँ प्यार है ।।

सत्येन दाधीच
7425003500
®© कॉपीराइट

Monday, March 6, 2017

इश्क तुमसे बार बार

ये जिंदगी है मेरी अरसे से तुमसे,
तुम मेरे हर प्यार का इकरार हो ।
परी सी उतर आई आसमाँ से,
दिल की मेरे धड़कन हर बार हो ।।

तुम हो गये हो इस कदर सांस मेरी,
खत्म जल्दी से ये दूरी ये इंतजार हो ।
जल्द ही आयेगा वो लम्हा जिसके बाद,
चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ प्यार हो ।।

मेरे गुल का गुलिस्तां आबाद है तुम से,
महका दी जिसने जिंदगी वो बहार हो ।
साँसे अब कहती है जाते हां प्यार है,
और हर आनेवाली सांस से प्यार हो ।।

इस जन्म में मिली हो तड़प के बाद,
दुआ ये खुदा से साथ हर जन्म हर बार हो ।
शुक्रिया खुदा मेरे सीने में इश्क देने का,
बस उनके इश्क का साथ हर जन्म हर बार हो ।

सत्येन दाधीच
7425003500
©® कॉपीराइट