Friday, December 22, 2017

शुक्र स्तोत्रं

नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित ।
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम: ।।1।।
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग: ।
परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकर: ।।2।।
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम: ।
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ।।3।।
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बर: ।
यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह ।।4।।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे ।
त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान ।।5।।
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन ।
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ।6।।
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम: ।
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम ।।7।।
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम: ।
नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ।।8।।
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने ।
स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन: ।।9।।
य: पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम ।
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम ।।10।।
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम ।
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितै: ।।11।।
अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम ।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात ।।12।।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा ।
प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत: ।।13।।
सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि: ।।14।।

(इति स्कन्दपुराणे शुक्रस्तोत्रम)

Wednesday, November 8, 2017

जमाना बदला क्या ??

कुछ बातें उस पूनम के चाँद को देखकर भी याद आती है जो अमावस्या के बाद आज फिर पूरे शबाब पर होती चांदनी के साथ सिर्फ और सिर्फ आज की रात के लिए है क्योंकि कल से तो उसे फिर एक बार फिर उसी अमावस्या को लेकर आना है ।

मेरे शहर की गलियों में फैले उजियारो के बीच मुझे याद आया कि अक्सर लोग इन्ही रास्तों से गुजरना गर्व समझते थे क्योंकि तब चरम पर अनुशासन और आपसी समझ आधारित ज मानवता थी । सब एक दूसरे के हिताकांक्षी थे और आपसी भाईचारे के लिए जाने जाते थे तो आप अपने साथ ही नहीं बल्कि एक और एक ग्यारह वाली कहावत में ही विश्वास करते थे ।

तब भले ही चारों और ना तो इतनी सड़कें थी और ना ही कोई दिनभर गुजरने वाले वाहनों की खड़ी बेतरतीब भीड़ अगर कुछ था तो वह कुछेक तांगे या गिने चुने टैक्सी ड्राइवर थे जो धुँवा उड़ाती, सजी धजी टैक्सियों के साथ मेरे शहर में आने वाली कोयले की छुक-छुक गाड़ी से उतरने वाले लोगों का स्वागत मुस्कुराहट के साथ बड़ी आत्मियता से करते थे जबकि उस समय भाड़े के नाम के दो रुपए का लाल नोट मिला तो संतोष कर लेते थे ।

शहर के गोल चक्कर  से अन्दर अल सुबह उतरना जहां देस आने की खुशी दिखाते थे वहीं रात को नौ बजे रेलवे स्टेशन जाना मानो अकल्पनीय था । शहर  तब बन चुका था लेकिन यहां सब कुछ थक भी लेकिन हर बड़ा काम पास के बड़े शहर से तालुक रखता था ।

मैं तब पहली बार निकला था अपने संघर्षों से दो चार होने जिसे मैंने खुद चुना था ।

Monday, November 6, 2017

भारत वासी सोच कैसी

माफ कीजियेगा लेकिन मेरा उद्देश्य किसी भी प्रकार से मेरे अपने राष्ट्र हिंदुस्तान या यहाँ के निवासियों की गरिमा के संदर्भ में कोई अनुचित भावना है क्योंकि मैं स्वयं इस महान भारत देश का एक भारतवंशी नागरिक हूँ जिसे अपने राष्ट्र और राष्ट्रीयता पर अभिमान है किन्तु कुछ घटना और बदलते समय के चक्र के कारण कुछ अजीब कहने की इच्छा जाग्रत हुई ।

चलिए हिंदुस्तान की बात करने से पहले जाने की असल हिंदुस्तान क्या है ? चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर "भारत" और आर्य जाति के क्षेत्र के कारण कभी इसे "आर्यावर्त" भी कहा गया था लेकिन यह "हिन्दुस्तान" कहा गया मुगलों द्वारा क्योंकि यहां हिन्दकुश नाम का पर्वत था और उसके आस पास रहने वाले लोग हिंसा से दूर थे इसलिए हिन्दू कहलाये ( हिंसायाम दूयते सः हिन्दू ) इसका अर्थ यह था कि यहां के लोग शांतिपूर्ण तरीके से जीवन यापन करने में विश्वास रखते थे ।

आप ने शायद सुना भी हो कि पुराने जमाने में काफी मंदिर स्वर्ण, बेशकीमती जवाहरात और अन्य कलात्मक समृद्धि से परिपूर्ण थे और यहां पर लोग दूर देशों से पठन-पाठन के लिए भी आते थे क्योंकि तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय इसी हिंदुस्तान में थे ।

आततायी मुगलों ने जमकर लूटा इस देश को लेकिन हिंदुस्तान सोने की चिड़िया थी और एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इस महान राष्ट्र की नस-नस में थी जी आज भी महसूस की जा सकती है । संस्कृत भाषा, व्यापार, वाणिज्य, स्थापत्य, अद्वितिय आदर, आदर्श आचार-विचार इस देश की पहचान है जो उस समय अपने स्वर्णिम काल में थे ।

फिर समय आया अंग्रेजो का जिन्होंने व्यापार के बहाने भारत में अपने पैर जमाये और शुरू करदी हिंदुस्तान को इंडिया बनाने की प्रक्रिया ।

अंग्रेजों को बखूबी पता था कि भारत अपनी संस्कृति और मानवीय मूल्यों के कारण पूरे विश्व का गुरु रह चुका है और इनका बौद्धिक स्तर भी अन्य देशों की तुलना में काफी उन्नत है साथ ही यहाँ की जमीन उपजाऊ होने के साथ प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ सम्पदा से सम्पन्न है ।

फिर उन्होंने दोहन किया ना सिर्फ खनिजों का बल्कि भारतीयों के मस्तिष्क में ब्रितानी सभ्यता का बीजारोपण भी किया । किसानों, मजदूरों को लगान और मजदूरी के जरिये गुलाम बनाने का काम तो राजा महाराजाओं ने काफी पहले कर ही दिया था तो इन्होंने सिर्फ उन्हीं रियासत के राजा महाराजाओं की आपसी फूट का फायदा उठाकर ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापार के बहाने हुकूमत करना शुरू कर दिया ।

अंग्रेज़ पूरे देश से भर भर कर सम्पदा ब्रिटेन भेज रहे थे और उनका विरोध करने वाले लोगों का दमन करने का काम करने लगे ।

फिर हिंदुस्तान के लोगों ने इस कुचक्र को समझकर विद्रोह का बिगुल बजाया तो हमे 200 वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त एक देश मिला जिसे अंग्रेजों ने इंडिया बना दिया था, एक समय विश्व गुरु रहा हिंदुस्तान अपने वजूद को नए सिरे से तलाश शुरू करने के लिए तैयार था लेकिन अब एक नई समस्या थी पाकिस्तान और बांग्लादेश जो उसके खुद के विभाजन से बने थे उसके लिए समस्या खड़ी करने को तैयार थे ।

आज आजादी के वर्षों बाद भी पाकिस्तान की समस्या हिंदुस्तान के लिए जस की तस बनी हुई है जो उसे विभाजन के साथ मिली है और एक ऐसा शासन तंत्र मिला है जो घोटालों के रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड तोड़ने में नेताओं की मदद करता रहा है ।

इन सबको ठीक करने के लिए एक लंबा समय तक इंतजार करना चाहिए लेकिन वर्तमान सरकार ने वाकई बहुत कम समय में अपने प्रयत्न करते हुए ना सिर्फ डिजिटल इंडिया की बात की बल्कि अपने सांस्कृतिक मूल्यों की बात को भी प्रधानता से लेकर चलने की बात की है, जिससे हम लोगों का ना सिर्फ विकास हो बल्कि हम बौद्धिक स्तर पर भी विकसित हो ।

तो यह था एक समय का भारतवर्ष जिसे मुगल हिंदुस्तान कहते थे अंग्रेजों ने इंडिया बना डाला ।

सत्येन दाधीच
Freelancer Writer
Mo : 7425003500
s.j.dadhich@gmail.com

Sunday, November 5, 2017

समझकर वोट मांगिये, नोटा ना दबा दे

ये भी पर सुना है कि कांग्रेसी राजमाता अपना इलाज करवाने विदेश अक्सर जाया करती है इसका मतलब समझते हो या नही ??? 1947 से अब तक कांग्रेस का अपना शासन रहा है और भारत में बड़े बड़े अस्पतालों की स्थापना इन्ही के शासनकाल में हुई या नही ??? जवाब अगर हां है तो मेरा सवाल यह है कि आपने 1947 से लेकर आज तक जितना भी चिकित्सा के नाम पर भारत में खर्च किया वह जब आपके नही काम आया तो आम आदमी के क्या काम आएगा ???

राहुल गांधी नेता है नेता रहे भले ही कांग्रेस के प्रमुख बने हमें कोई आपत्ति नही क्योंकि यह आपकी खानदानी पार्टी है और मुखिया की मर्जी चाहे जिसे वारिस बनाए लेकिन देश के मामले में सोचिये कि वो प्रधानमंत्री आपकी बात क्या समझेगा जिसको यह तक नही पता कि आलुओं की फैक्टरी होती है या किसान उगाता है ?? और ये खुद को किसान हितैषी कहते है ।

वैसे एक बात तो राहुल गांधी का खर्चा कम है क्योंकि नोटबन्दी में सिर्फ एक बार बैंक गए थे नोट बदलाने ????

जनता समझदार हो चली है, सोशल मीडिया पर सबकी नजरें और करतूत रहती है और ईवीएम में नोटा का बटन भी आ गया है, कहीं ऐसा ना हो कि हाथ का निशान रखने वाली पार्टी के आका हाथ हिलाते हुए किसी और देश का रुख कर दे क्योंकि पब्लिक सब जानती है और उसे अपना हक लेना बखूबी सिखाया है इस सरकार ने जिसे पूरी दुनिया सलाम करती है ।

सत्येन दाधीच

Wednesday, October 18, 2017

प्यार भरी पाती

तुम छू गए इस मेरे दिल को,
पहली बार तुम पे आ गया ।
अंकिता के अंकित हुए आप,
खुशबू भरा सौरभ भा गया ।।

है जगमग रोशन जहाँ अब मेरा,
बनके दिवाली यूँ महबूब आ गया ।
खुशियों संभाल मुझे लेना हर पल,
मेरे जीवन का हर त्यौहार आ गया ।।

वो आपको जब देखा था पहली बार,
मुझे आप पे प्यार बेशुमार आ गया ।
धड़कनो ने कहा धड़क के सुन लो,
सपनों का सामने राजकुमार आ गया ।।

आपका आना मेरे जीवन की खुशी,
खुशियों में दिवाली का त्यौहार आ गया ।
ये दिन खास है हर एक लम्हा दर लम्हा,
जन्मदिन मुबारक आपका पैगाम आ गया ।।

बस यूं ही मुस्कुराते रहियेगा हर पल,
मेरी तो अ दिलबर जिंदगी संवर जाएगी ।
बस अब तो इंतजार है उस लम्हे का,
सौरभ की हो अंकिता डोली में चली जायेगी ।।

आपकी
अंकिता

Sunday, October 15, 2017

जमीनी हकीकत

आपका यह देखा हुआ सपना है किसी एक के लिए और वह भी तब जब आप इसे अपने तरीके से जनता को दिखाने नही बल्कि सिर्फ बता रहे है तो आप कैसे कह सकते हो कि जनता सात बार मतलब अगले कई वर्षों तक एक जैसा जनादेश देगी ??

रिकॉर्ड्स गेम में बना करते है राजनीति अलग चिड़िया है जिसके पर आप नही नाप सकते और ना ये भाँप सकते हैं कि किसी के मन में क्या है ?

इंतजार कीजिये सपना देखा है तो हकीकत भी तो करना होगा ना बाकी सिर्फ प्रचार के लिए Facebook है ना ।

बात कड़वी होगी पर कड़वी दवा ही अक्सर बीमारी की आखरी दवा है ऐसा कहीं सुना होगा या नही ???

Enjoy your time as you are a team player but also remember that you are a member only... Not the trendsetter...

Satyen

बदलाव जरूरी है ।

सब का एक समय होता है पर एक सा हमेशा नही होता , बदलाव जरूरी होता है या नही पर बदलाव होता आया है क्योंकि परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है ऐसा गीता में भी पढ़ा है और अगर आप स्थायित्व की बात करे तो याद रखिये जो आता है वो जाएगा क्योंकि तभी तो नया आएगा ।

उदाहरण के लिए कैसा हो कि पूरा जीवन दिन ही रहे कभी रात ना हो ?? परेशानी होगी या नही ??

अगर आप टेक्नोलॉजी नई चाहते हैं तो आपको बदलते रहना होगा अब ऐसी के युग में भला हाथ पंखे को कोई याद करता है ?

रही बात जनप्रतिनिधियों की तो आप जानते है जनता जिसे देखती है उसे उसके काम के हिसाब से बराबर का हिसाब करती है क्योंकि जनता वही है जो सब जानती है और फिर ये तो टेक्नोलॉजी का जमाना है तो बदलाव कब और कैसे होगा समझ ही नही सकता इंसान ।

वक्त की धारा में बहते हुए इंतजार कीजिये कल क्या होगा उसका आप सिर्फ पूर्वानुमान लगा सकते है भविष्यवाणी करना होगातो सिद्ध पुरुषों का काम है उन्हें करने दीजिए ।

बस जनता को खुश रखिये क्योंकि वही मत देती है उससे बड़ा जज जनप्रतिनिधियों के लिए और कोई नही है ।

बस लगे रहिये, क्योंकि सोशल मीडिया आपका आईना है ।

सत्येन दाधीच

Friday, October 13, 2017

सहारा - बेसहारा

नवलगढ़ शहर के पास बड़वासी गाँव में रहने वाली एक विधवा स्त्री जो अपना नाम सुप्यार कँवर बताती है पिछले कुछ दिनों से मेरे घर के आस पास ही अपने दिन बिता रही है । एक आध बार ध्यान नहीं गया लेकिन एक रात को जब उसे रोते बिलखते देखा तो उस वृद्धा के दुख के कारण जानने चाहे तो कुछ यूं हकीकत सामने आई ।

बड़वासी में रहने वाली इस महिला के पति का नाम केशरसिंह राव था और कई सालों पहले उनका देहांत हो गया ना कोई बेटा ना बेटी और फिर शुरू हो गया इनके दुखों का दौर ।

कभी अपने रिश्तेदारों के यहां, कभी पड़ोसियों के यहां दो जून की रोटी और रात को सोने के लिए एक छत जहाँ बस जीवन यूँ ही कट रहा है लेकिन पिछले कुछ दिनों से ना जाने क्या हुआ इस वृद्धा के साथ सब ने किनारा कर लिया ।

अपने रिश्तेदारों के यहाँ एक दिन रुकी लेकिन उन्होंने इसे निकाल के पल्ला झाड़ लिया और आ गई एक जिंदगी सड़क पर उस उम्र में जब उसे सहारा चाहिए ।

मेरे पड़ोसी महिलाओं ने संवेदनाशून्यता की मारी इस वृद्धा को खाने पीने से लेकर रात्रि विश्राम तक कि व्यवस्था की ताकि सब यह देख समझ सके कि इंसानियत जिंदा है अभी ।

कल 13 अक्टूबर 2017 को दोपहर नवलगढ़ उपखंड अधिकारी श्री दुर्गाप्रसाद मीणा जी को मैंने फोन कर वस्तुस्थिति से अवगत करवाया तो उन्होंने यथसम्भव सहायता करने की कही । नवलगढ़ थानाधिकारी श्री बलराज मान ने एक टीम गठित कर ए एस आई सुश्री ललिता और ओमप्रकाश को तत्संबंधित कार्यवाही करने हेतु भेजा ।

Tuesday, October 10, 2017

Majority emotions... India that is Bharat.

जस्टिस लोग बाबा साहेब के बनाये उस संविधान के लिखे गए नियमों के गुलाम हैं जो 1935 के India Independence Act की फ़ोटो कॉपी है, जिसमें  1950 में हमारे पूर्वजों ने कॉमा पाई लगाकर उसका भारतीयकरण कर दिया।

इस संविधान में मेजोरिटी हिन्दू के पक्ष में एक भी आर्टिकल लिखा हो तो बताओ। जबकि माइनॉरिटीज के हितों की रक्षा के  लिए इसमें  5 आर्टिकल हैं - आर्टिकल 25 से 30 तक।

ज़ज़्ज़ साहब को न गरियाये पटाखे के चक्कर में क्योंकि भारत चीनी झालरों और पटाखों से भरा पड़ा है। बाकी भारत में पटाखे के प्रोडक्शन का काम शांतिप्रिय लोग करते हैं।

वो ऑब्जेक्शन करें। तो ठीक है ।
आपको क्या दिक्कत है ?

दीवाली दियाली और दीपों का त्योहार हैं - दिया जलाएं , अपने कुम्हार भाइयों के घरों को रोशन कीजिये।

सत्येन

Wednesday, October 4, 2017

कृष्ण कथा 1

✍🏻 *महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा "मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?*

दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था?

परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी साथ ये शाप भी दिया कि मैं अपनी विद्या भूल जाऊंगा क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय समझते थे।

भूलवश एक गौ मेरे तीर के रास्ते मे आकर मर गयी और मुझे गौ वध का शाप मिला?

द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया।

यहां तक कि मेरी माता कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच अपने दूसरे पुत्रों की रक्षा के लिए स्वीकारा।

मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला!

*तो क्या ये गलत है कि मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूँ..??*

*श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले-*
"कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा। तुम्हारा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट और तीर कमानों के साये में गुज़रा।
मैने गायों को चराया और गोबर को उठाया।
जब मैं चल भी नही पाता था तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए।
कोई सेना नही, कोई शिक्षा नही, कोई गुरुकुल नही, कोई महल नही, मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।
जब तुम सब अपनी वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे उस समय मेरे पास शिक्षा भी नही थी। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला।

तुम्हे अपनी पसंद की लड़की से विवाह का अवसर मिला मुझे तो वो भी नही मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी।
मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था!
जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा।

यदि दुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हे भी मिलता, लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिला! मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझ।

*हे कर्ण!* किसी का भी जीवन चुनोतियों से रहित नही है। सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नही होता। कुछ कमियां अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्टर में भी थीं।
सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं!

इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है,

इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारा अपमान होता है,

इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।

*फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं..!!*

Tuesday, October 3, 2017

आर्थिक अंगूठाछाप

बस एक फँसे रिकोर्ड की तरह बजते रहेंगे: शिक्षा पर ख़र्च बढ़ाओ, चिकित्सा पर ख़र्च बढ़ाओ, तरक़्क़ी होगी।

ब्रिटेन में शिक्षा अनिवार्य हुई थी 1880 में, 1750 में नहीं। अशिक्षित थे तो दुनिया क़ब्ज़े में कर ली थी। पढ़ लिख गए तो साम्राज्य खो बैठे।
ब्रिटेन में मुफ़्त चिकित्सा आयी 1948 में।
1980 आते आते देश दिवालिया हो गया।
थेचर ना आयी होती तो अब तक देश दिवालिया होकर गलफ़ियों को बिक चुका होता।

ब्रिटेन की चिकित्सा सेवा जीवित है तो इसलिए कि बहुत ज़्यादा राशनिंग है: इतने बरस के हो गए तो हार्ट सर्जरी नहीं होगी, इतने के हो गए तो घुटनो की सर्जरी नहीं होगी, व हज़ारों मरते है वेटिंग लाइन में, इलाज के इंतज़ार में हर वर्ष। और देश हो चुका है ख़त्म। 2050 में कोई ब्रिटेन नहीं होगा।

भारत में ही अभी से ही बच्चो ने MBBS में जाना बंद कर दिया है। शिक्षा दस बरस चलती है और उसके बाद भी कोई आय नहीं क्यूँकि बीमार तो है लेकिन इनके पास फ़ीस के पैसे नहीं है। क्यूँकि देश में उद्योग नहीं है जहाँ वे काम कर पैसे कमा सके। हम सोचते है कि बिना ओद्योगिकरण के हम ओद्योगिककृत देशों जैसी चिकित्सा व शिक्षा पा सकते है।

ओद्योगिककृत देश पहले ओद्योगिककृत हुए उसके बाद उन्हें अच्छी चिकित्सा व शिक्षा मिली। भारत में जब 70 साल की हज़ारों ग़रीबी हटाओ योजनाओ के बाद भी ग़रीबी ज्यों की त्यों रही और लोगों ने पूछना शुरू कर दिया कि हम अभी भी ग़रीब क्यूँ है तो वामपंथियों ने ये "शिक्षा पर ख़र्च बढ़ाओ, चिकित्सा पर ख़र्च बढ़ाओ, तरक़्क़ी होगी" का रिकोर्ड बजाना शुरू कर दिया, full volume पर।

सम्पन्नता उद्योग व व्यापार से आती है। लेकिन हम सोचते है कि क़ानून बनाकर हम ख़ुद को अमीर बना लेंगे।

यह समाधान नहीं है कि बस क़ानून बना दो: सबको शिक्षा, सबको चिकित्सा, सबको रोज़गार ।
बने सभी तो क्या आर्थिक अँगूठाछाप ??

Satyen Dadhich

Sunday, September 17, 2017

67 साल का हिंदुस्तान

67 साल पहले सिर्फ आजाद हुए थे तब अंग्रेजों ने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हिंदुस्तान को पूरा लूट कर जाने की तैयारी की थी तब एक नासूर पाकिस्तान हमें गांधीजी ने दिया ।

हम सब अच्छी तरह से यह जानते है कि कांग्रेस के कार्यकाल में क्या हुआ है आप मानो या ना मानो हकीकत यही है ।

क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले लोग जैसे सुभाष चंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि गांधीजी को पसंद नहीं थे जो शायद आप उनकी आत्मकथा में भी पढ़ सकते हो ।

मजे की बात यह है कि कांग्रेस शासन में देश में सूचना क्रांति, श्वेत क्रान्ति, प्रौद्योगिकी क्रान्ति जैसी क्रान्तियाँ हुई लेकिन आज़ादी का आंदोलन क्रान्ति नहीं शान्ति के साथ हुआ ।

आपको 67 साल के विकास की बधाई देने के साथ ही मैं आपको अग्रिम शुभकामनायें देना चाहता हूँ उस विकसित राष्ट्र हिंदुस्तान की जो अगले चन्द सालों में आप देख पाएंगे ।

आप देखेंगे कि अटल जी ने अपने इस्तीफे के भाषण में किस प्रकार छोटी छोटी पार्टियों की ओछी राजनीति की वजह को इस देश के हितों में बाधक बताया था ।

सोच ही नहीं पार्टी बदलने का वक्त है क्योंकि अब लोग हमारे प्रधानमंत्री की बात को ना सिर्फ सुनते हैं बल्कि अपने भविष्य की समझ भी रखते है ।

Satyen Dadhich Sonu
Whats App 7425003500

Monday, July 17, 2017

बहती नदी सी...

बस चुपचाप बहे जाती है,
कल कल छल छल करते ।
मैंने पिघलते पत्थर देखे,
हम बैठ किनारे बातें करते ।।

अब तक थी खामोश ओ गुमसुम,
कभी ना देखा बाते करते ।
ना विश्राम किया जाता था,
रात ओ दिन बस बहते बहते ।।

फिर आया बारिश का पानी,
सब को मैंने देखा भरते ।
मिट्टी की खुशबू पहचानी,
दूर किनारे फिर भी रहते ।।

शांत और निर्मल वो बहना,
भूले खूब उमड़ती जाती ।
नदिया जीवन सर सरिता सी,
खाली होते फिर है भरते ।।

Satyen Dadhich©®

Thursday, June 15, 2017

प्यार तुमसे जाना


आपके साथ ने मुझे मेरे वजूद का एहसास कराया मुझे ये बताया कि वो नर्म, मीठा एहसास जिसे पाने की लिए एक अरसे से तड़पा था वो मुहब्बत आपसे कुछ यूं दिलों के तार जोड़ चुकी है कि बस अब ये पल हर पल यूँ ही थम जाये और मैं महसूस कर सकूं आपको अपने दिल की गहराइयों में हर पल जीवन के आखरी क्षण तक ।

Sunday, April 30, 2017

नवलगढ़ शहर

नवलगढ़, झुंझनु जिले का एक शहर जिसने आज तक अपने हर लम्हे, हर क्षण, हर उत्सव, हर परम्परा को जिया है और पर्यटन मानचित्र पर अपनी एक पहचान पता नहीं क्यों हर आने वाले दिन प्रतिदिन अपनी शांत, सुंदर और और समृद्धिशाली पहचान को खोता जा रहा है ।

जिस शहर के शहरी शांत वातावरण में शान्ति से अपनी जिंदगी जी रहे थे अचानक से इतने आक्रामक तेवर ले आये कि शहर में आये दिन कुछ ना कुछ घटनाओं को भोग रहे है यह सब इतनी अचानक या यूँ कहे कि कुछ समझ में आने से पहले अपने शहर को बारूद के ढेर पर महसूस करने लगे है लेकिन किसी ने इस को बारीकी से समझने की कोशिश नहीं की ।

आप शायद ना मानते हो की इस शहर के साथ ऐसा कुछ नहीं पर अगर आप पिछले कुछ सालों से चले आ रहे घटनाक्रम पर अगर आप गहराई से विचार करे तो शायद ऊपर लिखी गयी बात आपको सच लगे और आप भी सहमत हो जाए कि यह सोच सही है की यह नवलगढ़ शहर धीरे धीरे अशांति की ओर ले जाया जा रहा है ।

सालों पहले यहां एक बार गैर पर छिटपुट घटना हुई और हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ने की कोशिश हुई लेकिन तब यहाँ के विधायक, प्रशासक और आम लोगों के द्वारा यहाँ फिर शान्ति का साम्राज्य कायम किया गया जो वाकई एक अद्भुत मिसाल थी ।

मगर उसके बाद यहां राजनीति और राजनैतिक समीकरण के मायने लोगों के समझ में आने लगे और लोग सत्तारूढ़ विधायक और प्रशासन तक अपनी बात शान्त और समुचित तरीके से पहुँचाते रहे और मैं नवलगढ़ अपने आपको शांत और समृद्धि के शिखर पर महसूस करने लगा ।

मेरे शहरवासी अपनी जिंदगी आराम से जी रहे थे कुछ परेशान थे लेकिन फिर एक बार यहां पर परिवर्तन की जरूरत पड़ी और इस बार नवलगढ़ ने ना सिर्फ अपनी ऐतिहासिक जीत दर्ज की और राजस्थान सरकार में पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज की जो वाकई बड़ी उपलब्धि थी लेकिन यहीं से मानो या ना मानो मेरे विनाश के दिन शुरू हो गए थे ।

विकास के नाम पर करोड़ों रूपये फूँक दिए गए और ऐसी ऐसी योजनाओं को नवलगढ़ पर थोप दिया गया जिनकी या तो मुझे जरुरत ही नहीं थी या मेरा दूर दूर तक उनसे कोई लेना देना नहीं था ।

साइंस पार्क, सेटेलाइट हॉस्पिटल, हाई मास्ट लाइट्स से कहीं ज्यादा जरुरत मुझे मेरे शहर में घूमते आवारा पशुओं, बरसाती पानी की निकासी, पेयजल व्यवस्था की जरुरत थी पर पता नहीं क्यों किसी का भी ध्यान इस तरफ गया ही नहीं ।

खैर जो भी हो मेरे परकोटे में चारों तरफ हेरिटेज सिटी के बोर्ड्स लगे थे अब वो सारे बोर्ड्स गए...

आपके शहर की शान और पर्यटन की पहचान हवेलियां जाने क्यों टूटती जा रही है और सेठों का यह शहर मार्केट्स का शहर बनता जा रहा है और वहम यह कायम है वाकई काफी विकास हुआ शहर का...

ऐसे ही कई सवालों के साथ तैयार हूं पूछने हर बार फिर एक बार क्या आपको परवाह है आपके अपने नवलगढ़ की ??