Wednesday, December 30, 2015

Resolutions again.. Welcome New year.

Yo always wrote what you want and the liberty of thoughts are never brings seldom emotion to mind.

Some unanswered or may be called as The unanswerable one is by mid the mistakenly launched Aura of god or the greatest thought what none other then we are having safe in the bottom lid of our mind.

I used to say sometimes "immortality of thoughts". So just Commence the same into worldwide and turn yourself as a part of it. 

This is not from your choice but still you are a part of this world. Now its up to you that do you want to be a simple human or the world grows yourself as The Incredible one.

But commence it as soon as possible. As it is passing not only a hour... But also A day full of night... A year full of months. Now all of us going to knock 2016. A brand new year. Now a full pitch to your dreams play what you lost last in 2015.

Satyen Sonu©

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Wild rule's of Humans...

The unbroken memories are always remains alive in our mind. The same happens to us because we are humans and living in a same social circle of all the people who claim humanity as their own earned property. We usually used to addicted all such decorum what is fuming in our surrounding atmosphere.

People of this galaxy are very much habitual for these inhabitants conditions what the socialist of our society reforms or what the rules we are following since stone age.

We are not accurate to the law of nature but the atmospheric pressures or the so called living patterns makes us used to the untamed or wild rules of Humans.

I want to omit that what the Best you carrying forward to our growing up children is what you learned from our parents and the same was gifted to them by our forefathers.

Now its not again the only main reason or pointing the other humans. It's whatever more then imagination or the mind set of surrounding civilization of deemed human being.. Why we always kept back side. Why we can't make a bridge between two different concepts of cultural behavior on behalf of humanity.

I did it, but not assumed by them. Theme what I make gonna be very out of fantasy, from our imagination. You may not tried every time what was ever best for you.

Do it. Make it yours. Years back you started your journey from Stone Age and now you are technically very ahead from you point of start.... claim it... It is very yours exclusively.

Wish to them, who are neither closely attached but also a far part of this socialism of society. Yes they are also well connected to us in everything.

Go social and make world a real social world.

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Monday, December 28, 2015

Khwaabon kaa jahan

Dhoop ke dhundhalkey maiin bhi raataon ke andherey Nazar aatey hai,
meri khamoshiyon main bhi kaise baaton k waadey Nazar aatey hai,
kya pata tha is kadar hogi wafa bewafai se,
jhoote ye ishq ke zazbaat Nazar aatey hai.

Fnaa khud  ko karte hai tere is ishq ki raahon main,
Kyon tere chehrey main sau chand nazar aatey hai.
Kohra teri yaadon kaa kaabiz hai mere dil-o-dimaag par,
Dhundhle saare rishtey har baar nazar aatey hai.

Tere jaane ki sochne se sihar uthtaa hoon,
Tere aane main hazaar khwaab nazar aatey hai.
Tu mile to sanwar jaaye jindagi,
Tere jaane ki soch kar bhi hum bikhar jaate hai..

#Satyen

Thursday, December 24, 2015

अटल जी का जन्मदिन

जैसा की आप सब को विदित है आज मनप्राण भारत रत्न हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन नवलगढ़ शहर भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा मनाया जा रहा है ।

मोर्चा के प्रेस प्रवक्ता सत्येंद्र दाधीच ने बताया की कार्यक्रमो की कड़ी का प्रथम कार्यक्रम मोर्चा द्वारा सुबह 11 बजे शहर मंडल अध्यक्ष भाई गौतम खंडेलवाल की अध्यक्षता में हुआ । मंडल अध्यक्ष भाई गौतम खंडेलवाल ने शहर के सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजो को फल वितरण करते हुए उनके हाल चाल पूछकर वहां की व्यवस्थाओ का भी जायजा लिया । इस अवसर पर अस्पताल प्रभारी डॉ. निशि कुमार अग्रवाल, डॉक्टर्स की टीम, भारतीय जनता युवा मोर्चा के पदाधिकारियों समेत बड़ी संख्या में मोर्चा के कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे ।

सत्येंद्र दाधीच
प्रेस प्रवक्ता
भारतीय जनता युवा मोर्चा
नवलगढ़ शहर - राजस्थान

Wednesday, December 16, 2015

Is it Practical ??

Following What i Need..

Its you my destiny...

Let's Begin the journey of Life...

Prove and show the inner one what anyone can't understand... Moving towards extent what we looking for a deep mode of Creative Creations... Do that.

Hoping something more unexpected but it garnished by all that

so lets perform the best of best and achieve what you set as a goal...  Achieve it.

Let's play what you played.. you principal of your

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Sunday, December 6, 2015

J से जिंदगी है Ye

बनती संवरती...
चलती ना कभी रूकती....
दौड़ती और बस दौड़ती...

तू ऐसी क्यों है ए जिंदगी..

थोड़ा रूककर संवारले खुद को...
जरा रूककर थोडा दम ले....
जरा दौड़ दौड़ मेरी जिंदगी ।।

#Satyen

#KalaamAKalam

Saturday, December 5, 2015

पल वो इश्क के

ये लाखों लाख लम्हे प्यार के जो तूने दिए मुझको,
वो साल वो इश्क जो हमने एक जीवन बन के जिये ।
शुक्राना कैसे अदा करू तेरे प्यार का ए हमसफ़र,
हर एक पल जिया जो पल मेरे नाम ए मोहब्बत किये ।।

कुछ वो लम्हे प्यार के कुछ मीठी सी तकरार के,
बेइन्तहा मुहब्बत के जो तूने हर पल दिए ।
शुक्रिया मेरे महबूब तुझको मेरे बेपनाह,
शुक्रिया तेरे उस मेरे रूठने इसरार के लिए ।।

प्यार से तूने मेरे इश्क के हर पल को संभाला,
शुक्रिया प्यारे से नन्हे इन दो फूलों के लिए ।
मैं कायल हो गया तेरी मुह्हबत का सनम,
जीता हूँ अब सिर्फ तेरी मुस्कुराहटों के लिए ।।

तेरा वो हाथ रहना हाथ में मेरे नर्म अहसास है,
लगता है मेरी सांस आती है तेरी सांस के लिए ।
ये जिदगी का दिन है यादगार मुझ दीवाने को,
के जब तुम आये थे सदा के मेरा हो जाने के लिए ।।

इश्क है तुझसे अ मेरे दिल की धड़कती धड़कन,
धड़कती है तेरे दिल में हर एक पल धड़क जाने के लिए ।
दूर होता हूँ जब भी मैं साँसों से तेरी अ रहबर,
मचल जाता हूँ फिर तेरा साथ पाने के लिए ।।

Satyen dadhich

कलाम-ए-कलम ®

Saturday, November 14, 2015

बचपन की जिद

कागज़ की कश्तियों से सफ़र नहीं हुआ करते ये तो सच है पर किसी ने बचपन की इन कश्तियों को देखकर पानी के जहाज़ जैसी चीज बनाने की ठानी होगी ।

बचपन से लेकर आज तक काउ सपने देखे और उन्हें पूरा करे ऐसी कोशिश भी की । कुछ पूरे सच हुए और कुछ आधे अधूरे से । बचपन एक बड़ी चीज़ सीखा गया "जिद"

जिद करो और पूरे करो हर सपने को ताकि जिंदगी जी सको अपनी खुद की जिद पर खुद की शर्तों पर ।

बाल दिवस की आप सबके बाल गोपाल को हार्दिक शुभकामनायें । उनकी जिद को पूरा करो और बनाओ उन्हें सफलतम ।

शुभकामनायें ।

Satyendra Dadhich Sonu

Tuesday, November 10, 2015

दीपोत्सव

Dhanteras vastav main Dhantrayodashi hai... Kaartik maas ki trayodashi tithi... Is din aayurved ke aadipravaartak bhagwaan dhanvantari ji ka pradurbhaav hua tha....

Kal roop chaudas ya Narak Chaturdashi hai... Kal ke din shrikrishna ne narkaasur ko maar kar uske paapon kaa ant kiya tha is din yamraaj ko deepdaan bhi kiyaa jata hai...

Aur tatpaschaat hindu dharm kaa sarvaadhik mahatvpurn aur sabse bada tyohaar... Deepawali... Jiska arth hota hai "deepakon ki Pankti"...

Bahgwaan raam ke ayodhya aagman par sabhi nagarjano ne ghee ke diye jalaye the so aaj bhi wo pratha kaayam hai....

dhan ki devi laxmi is din apne vaahan ullu par baith kar kisi lallu ko dhanwaan karne ke liye vichran karti hai...

Happy Deepawali

Sunday, November 8, 2015

खुद की खुदी को पहचानो...

Nothing Destroys Iron other than its Own RUST..like wise a person loses his Position only b'coz of his Own EGO. So Think Twice ACT Wise"..

लोहे को सिर्फ उसकी जंग खत्म कर सकती है और पारस पत्थर उसे मात्र छूकर उसे सोने में बदल देता है.... तुम खुद अपने भाग्यविधाता हो की जंग लगकर खत्म होना चाहोगे या सोना होकर अपने अस्तित्व को एकदम अलग कर दोगे ???

अपने अहम् को कायम रखो पर उसे तुम्हारे अस्तित्व के ऊपर उसे हावी मत होने दो । तुम कर सकते हो क्योंकि तुम बुद्धिमत्ता में सर्वश्रेष्ठ हो ।

सोचो... समझो... बुद्धिमान रहो ।

Satyendra Dadhich Sonu

जीवन क्या है

ये जीवन क्या है ??

थोड़ा फैला अगर दुखों का कुहासा है,
तो कहीं थोड़े सुखों की अभिलाषा है,
गर अकेलेपन की कहीं निराशा है तो
कहीं क्षणिक प्रेम की आशा है,

कहीं किसी की आमद का उजाला है,
कहीं तन्हाई की एक भाषा है,
मिलन अधूरेपन का कहीं,
कहीं किसी से मिल जाने की आशा है,

बन संवर जाए तो जिंदगी है,
बिगड़ गर जाए तो तमाशा है,
चार पल की कहते है लोग
जीवन की शायद यही परिभाषा है,

#सत्येन

Thursday, November 5, 2015

रोज़ की डायरी... पन्ना 25 अगस्त 2015 का

एक बार फिर रात है.... कुछ सितारे और बहती ठंडी हवा । सड़क पर बेतहाशा दौड़ती गाड़ियों का शोर.... शहर की भागमभाग भरी जिंदगी । ऊँचे बैठ कर नीचे बसी एक बौनी सी लगती यह लम्बी जगमगाती सड़क जिसे मानो रात के होने का कोई असर ही ना हुआ हो । व्यस्त से भी व्यस्ततम है इसके आस पास फैला यह जंगल जो इस प्रदूषण से भरे इस माहौल को कुछ शुद्ध करने की एक नाकाम सी कोशिश हर लम्हा कर रहा है.... पर अब उसमे भी उगने लगी है कंक्रीट की बहुमंजिला इमारतें । जलती बुझती रोशनियों के बीच इन कबूतरखानोका तक का सफर गाँव की शांत और स्वयमेव शुद्ध गलियों से शुरू हुआ यह सफ़र शान्ति से अनवरत कोलाहल की और.... शहर की और जिसे बसाया किसी ने आदर्श होने को पर अब रहती है वहाँ अनेको जिंदगियाँ.... अपनी हर लम्हा दौड़ती जिंदगी जीने के लिए ।

#शुभरात्रि

#सफ़रएजिंदगी

#सफरनामा

Satyendra Dadhich

रंग-ए-मोह्हबत

प्यार मोह्हबत प्यारा रिश्ता यारों इस संसार में,
पापड बेलते देखा सबको इश्क के इस व्यापार में ।
इश्क में लैला मजनू बनते कुछ देवदास है प्यार में
जीत प्यार की ख़ुशी दिलाती टूट है जाते हार में ।।

कभी संदेसे लाते कबूतर उड़ कर सरहद पार में,
तड़प इश्क की हरपल रहती उसके इंतज़ार में ।
बच्चे बन जाते थे डाकिये बड़े बड़ों के प्यार में,
खूब मिन्नते करते उनकी ख़त के इंतज़ार में ।।

लव लेटर का क्या कहना प्रेम पात्र हो जाते थे
उसने ख़त भेजा है कहकर सीने से लगाते थे ।
किस से लिखना क्या है लिखना खूब सोचना
गुप चुप पढ़ना चुप रहना ये लक्षण थे प्यार में ।।

मोबाइल हुआ ज़माना बंद खतों का आना जाना
व्हाट्स अप और फेसबुक पर मैसेज वाह ज़माना ।
शेयर होता उलटा पुल्टा स्टेटस चेंज हो जाता है,
ये आधुनिक इश्क है इसलिए डिज़िटल हो जाता है ।।

Monday, November 2, 2015

तेरी यादों की उम्र...

बातें तेरी  अब भी महकती  हैं....
यूँ लगता है जैसे की... तुने बस अभी कही हैं...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...

न सच झूठ का पता था मुझे... 
न सही गलत की खबर...
अपने सचों को को झूठ कहा था मेरे लिए...
मेरी गलतियों को  भी... तुने कहा था सही है...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...

मेरे हर आंसू को थामा था अपना लहू समझ कर...
तेरे बूढी आखोँ को याद कर....
न जाने मेरी आसुओं की ...कितनी नदियाँ बही हैं...
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है...

मैं अब भी चुप रह के सुनता हूं तुझको....
तेरी वो फटी धुंधली तस्वीर आज  न जाने क्या क्या कह रही है..
तुझे गुज़रे हुए एक अरसा बीत गया...
पर तेरी यादों की उम्र अब भी वही है.

Saturday, October 24, 2015

अरज़ म्हारी सुणो रामसा पीर

अरज़ म्हारी सुणो राम सा पीर
मेणादे रा कँवर लाडला, बाई सुगना रा बीर - 2
अर्ज म्हारी सुणो राम सा पीर ।।

नवलगढ़ भक्ता र कारण, प्रगट भया थे पीर,
भारी-भारी जेल दिल्ही की तोड़ी हथकड़ियां जंजीर...
अर्ज़ म्हारी सुणो राम सा पीर ।।

ठाकुर ले ठुकरानी आयो ओढ़ कसुमल चीर,
मंदिरयो चिणायो थारो मेलो भरायो ,ल्याई रे चुरमो खीर
अर्ज़ महारी सुणो राम सा पीर ।।

बण्यो दीवालों थारो सोवणो कंचन वरन शरीर,
राम सा पीर न दुनिया ध्यावे,राजा रंक फकीर
अर्ज़ म्हारी सुणो राम सा पीर ।।

स्नेह राम जी सतगुरु मिलगा दियो भजन म सीर,
कहता भँवर भगत की नैया करियो परल तीर

अर्ज़ म्हारी सुणो राम सा पीर........

।।ॐ।। बोल राम सा पीर की..जय ।।ॐ।।

Saturday, October 17, 2015

स्वयमेव मृगेंदृता.... मानव

सब कुछ प्राप्य है अगर वो सहज प्रयत्न से ही उप्लब्धभो जाए तो क्या बात....  फिर कोई क्यों साध्य करने के यत्न करे पर नहीं इसी संघर्ष में ही तो वो आनंद है जिसे हम अपने जीवन मैं पाकर फिर एक नए लक्ष्य को निर्धारित कर चल पड़े । बस चलना अनवरत है...

चलिए और बस चलते रहिये क्योंकि गतिमान ही स्वीकार्य है इस दुनिया में बाकी निर्जीव को कोई भी एक पल नहीं चाहता की वो इस दुनिया में रहे । हाँ कुछ भावनाओं की बात है तभी तो हर्षोउल्लास या दुखः जैसी परिस्थिति दृश्यमान होकर मानस पाटल पर सदैव के लिए अंकित हो जाया करती है ।

जीवन को उमंग और उत्साह की सरल दिशा दो... निराशा और हताशा तुम्हारे लिये वो राह है जिस पर तुम्हारा लक्ष्य नहीं तो मुङो हिम्मत से और जी जाओ एक ऐसा जीवन जो आपको स्थापित करदे ।

यही तो तुम होना चाहते थे... खुद आदर्श हो जाओ ऐसा बन कर एक मिसाल बनो... तुम अद्भुत हो उस ईश्वर की श्रेष्ठ कृति "मानव"

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Tuesday, October 13, 2015

अभिनय : शौक या जूनून

आज काफी अरसे बाद रामलीला मन्च पर एक बार फिर चढ़ने और अभिनय करने का मौक़ा मिला । 10 साल या शायद उससे भी ज्यादा समय हुआ । एक बार फिर मंच ने उसी गर्मजोशी के साथ स्वागत किया और फिर यादें ताज़ा हुयी ।

नए चेहरे, वही दिलकश हारमोनियम और ढोलक का संगीत ।

अद्भुत लीला राम की जाने वही जो है रचियता इस अखिल सृष्टि का... राजा रामचंद्र की जय ।

नवलगढ़ की लीला अपने 49वें सोपान पर है ।

Thursday, October 1, 2015

बधाई हो जन्मदिवस की

बहुत बहुत बधाई, शुभकामनायें और सस्नेह यह आपके जन्मदिन पर मंगलकामना की आप सदा यूं ही मुस्कुराते हुए रहे ।

आनंद और उल्लास से परिपूर्ण जीवन के हर आते जाते पल के साथ ढेरों खुशियों का तोहफा मिलकर जीवन को यादगार बना दे ।

खुश रहिये.... मस्त रहिये ।।

Sunday, September 13, 2015

मनुः के पुत्र हो... अजेय हो

मनु पुत्र हो तुम.......

सर्वश्रेष्ठता की हद से आगे तक सर्वश्रेष्ठ हो फिर क्यों दर-दर भटक रहे हो । संसाधन के रूप में उसने तुम्हे वो मस्तिष्क दे दिया जो कुछ भी उपजा सकता है.... अरे तुम्हारे पास उत्थान और पतन वाली वो सोच है जो तुम्हे किसी भी हद तक जुनूनी बना देती है फिर यह आस क्यों कि कुछ बेहतर "मिल" जाए...

कुछ भी तो "अप्राप्य" नहीं है "तुम्हारे" लिए... फिर क्यों शुरू करने से डरते हो वो "संघर्ष" जो तुम्हे ले जाएगा "सफलता" की चौखट पर ।

कर्म को अन्तःप्रेरणा से करने वाले हम इंसान अच्छे और बुरे का फर्क जानकर श्रेष्ठतम को ग्रहण करते है । समययोक्त निर्णय लेकर हम उसे पूर्णरूप से लागू करते है और वह हमारा जीवन विधान बन जाता है । दूसरों के लिए हितकारी या समाजकंटक ये सोच ही तो है जो बनाती है ।

अच्छे रहो.... बनो...ताकि और अच्छे उपजा पाओ विचार और मनुःपुत्र ।

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Wednesday, September 9, 2015

रोज़ की डायरी... पन्ना 8 सितम्बर 2015 का

आज की रात का रतजगा बड़ा अद्भुत होने वाला था यही सोचकर हम निकल पड़े थे ।

रात के धुंधलके में अब हल्की हल्की ठण्ड दस्तक देने लगी है । रात 11:15 पर निकले तो रुख सीधा किया पहाड़ों की वादियों की और ।

लोहार्गल ।। पहाड़ों के बीच फैला एक तीर्थ जिसको विश्व मानचित्र पर बहुत अच्छी पहचान मिली है उस आदियुग से जब महाभारत का महायुद्ध हुआ था ।

पहाड़ों की गोद में बसा यह तीर्थ हम नवलगढ़ वासियों के लिए आस्था का स्थल, पिकनिक करने की जगह और अपने पूर्वजो की अस्थियां तक विसर्जित करने का स्थान है । सोमवती अमावस्या हो या मालकेतु की 24 कोसीय परिक्रमा श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ पर लगी ही रहती है । वर्तमान में परिक्रमा की वजह से काफी भीड़ भाड़ थी तो हम चल पड़े आगे कर्कोटक तीर्थ ( स्थानीय बोलचाल में कहते है "किरोड़ी" ) की और ।

किरोड़ी .... मशहूर है अपने गर्म और ठन्डे पानी के प्राकृतिक कुण्डों की वजह से । चारो और फैले ताड़ और खजूर के पेड़ों की सघन छाया रात के माहौल को रूककर महसूस करने को मजबूर करती है पर चारों और फैला श्रद्धालुओं का जमावाडे से सरोबार और दुकानों से फैली वह रौनक जो पता नहीं कहाँ से आ गई है गोगानवमी से शुरू होने वाली इस 24कोसीय परिक्रमा के दौरान ।

रात है पर अधनींदे लोगों के इस हुजूम में कुछ लोग शायद जग से रहे है और सोच रहे होंगे इस दृश्य, इस माहौल, इस वातावरण के बारे में जिसे मेला कहते है.... मिलने का नाम मेला है और यहाँ हर कोई मिलता है... विविध भाषाई संस्कृति, राजस्थान से लेकर हरियाणा और सुदूर मुम्बई से आये ये आराध्य को अपनी श्रद्धा समर्पित करने आते है ।

कुछ मूलभूत सुविधाओं का अभाव है जिसे उपलब्ध अगर करवा दिया जाए तो यह तीर्थ सालभर महका रहने वाला पर्यटन स्थल बन जाए ।

खैर हम तो फिर चल पड़े आगे पर पता नही क्या मन किया की घुम्मकड़ी को विराम दिया ।

काले डामर की बनी यह सड़क और काले स्याह अंधे से अँधेरे से ढलती यह रात.... सर्द होने वाली आगे आती रातों का यह सफ़र जारी रहेग अनवरत

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Sunday, September 6, 2015

अंतर्मन में मेरा दखल...

बहुत शान्ति । जिसे पता नहीं कैसे हासिल कर पाते है हम ..... उस अन्तर्द्वन्द को सुलाकर जो हमेशा चलायमान रहा है इस मष्तिष्क के भीतर जो तब भी कार्यशील रहता है जब हम शारीरिक रूप से सो रहे होते है ।

वह दूर तक शांत साम्राज्य उस भगवान् का जिसने हम सब को जन्म दिया मनुष्य बना कर । इस योनि में यदाकदा कोशिश करते है कई इंसान होने की पर फिर भी हम बने रह जाते भीड़ के हर उस आदमी की तरह जिसके चारों और फैले है आदमी ही आदमी ।

सोचते हैं हम ना जाने क्यों बहुत अन्दर फैली विस्तृत आत्मा की अंदर तक फ़ैल चुकी गहराइयों का । यह कुछ कुछ वैसा ही है जैसे आप पानी में अपने विंब को देखते और महसूस करते है... कंकड़ मारने पर चित्र का लहरों में बदलना और फिर शांत होने उस निर्मल जल पर फिर बनते हुए देखना खुद की साकार होती छवि को ।

द्वंद यह है की क्यों और कैसे बदला जाए खुद को और बना जाए मालिक उस मष्तिष्क का और लिखा जाए एक नया पन्ना की जिसे आने वालि पीढ़ियाँ कहेंगी । "इतिहास"

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Monday, August 24, 2015

।। शिव तांडव स्तोत्र ।।

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः। भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके। धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌। स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌। स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्। धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः। तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना । विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे। तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

Saturday, August 22, 2015

रोज़ की डायरी... पन्ना 22 अगस्त 2015 का

एक बार फिर रात हुई है.... चाँद आधा अधूरा सा कुछेक सितारे और बहती ठंडी हवा । शहर की भागमभाग से दूर । अंधेरो से बात करती सड़क..... उसके किनारे पेड़.... पहाड़ों के नीचे बने एक दुकानों के झुण्ड से दूर एक टपरी जिसके नीचे सुकून है पर डीजे की आवाज़ यदा कदा तोडती उस शांति को... जिसके लिए यह सफ़र शुरू हुआ है ।

#शुभरात्रि

#सफ़रएजिंदगी

#सफरनामा

Satyendra Dadhich

Monday, August 3, 2015

शिव के मंदिर तक....

शिव के मंदिर तक . ..

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी भी रही तो नौजवानी फिर कहाँ ।।

कुछ ऐसा ही सोच कर भाई विनय पोद्दार, भाई राजेश अग्रवाल, भाई हेमंत रूंथला, विकास मिश्रा और मैं सत्येन दाधीच "सोनू" नवलगढ़ से निकले पर ना मंजिल का पता ना राह के लम्बेपन का एहसास । बस चलते जाना है । चलो सफ़र शुरू करने की एक दिलचस्प दास्ताँ को शब्द देने की कोशिश करें ।

शिव मंदिर से शुरू यह सफ़र जो सिफर हो गया । दिलचस्प बातों के सिलसिले, आराम से चलने का माहौल और रात का मस्त मौसम । लंबा हाइवे जो बस साथ देगा उन बड़ी लाइटों के चमचमाते ट्रको को जो अपने ट्रक को सजाकर रखते है दुल्हन से भी बढ़कर ।

खैर हम लोगों बे परवाह बस निकल पड़े नमन करके उस दैवी शक्ति जो बुला रही है हमें श्रावण के इस मस्त मौसम में ।

चलते चलते पहला सूरज हमारा स्वागत कर रहा था निम्बाहेड़ा में । हल्का फुल्का देसी नाश्ता सुबह को कब दोपहर के 12 बजा गया पता नहीं चलेगा बस शर्त है की साथ में दोस्त हो । मित्रता दिवस की एक अद्भुत शुरुआत क्या बात है । चलो और आगे चला जाये । सफ़र लंबा है पर दुरूह नहीं क्योंकि "मस्ती" है । मौसम भी साथ दे रहा है तो चलो चलते चलो ।

अजमेर से चलकर निम्बाहेड़ा के रास्ते पूरे दिन दूर तक लम्बी सड़क पर नीमच से चलते चलते हम आ पहुचे भगवान् महाकाल की नगरी उज्जैन में । शांति और कुम्भ की हलचल को एक साथ महसूस किया जा सकता है यहाँ की शांति से पसरी शाम में । कल सुबह साक्षात् करना है भोलेनाथ से और क्षिप्रा नदी के तट पर बसी इस नगरी का एक भ्रमण । सफ़र लंबा है और आगे तक चलेगा यह अवन्तिका होटल तो केवल मात्र पहला पड़ाव है ।

शिव की इस नगरी का नाम सप्त दिव्य पुरियों में गिना जाता है । वास्तव में सच भी है आप भूल जाते है उस सब को जो पीछे छोड़ आये है या जो आगे घटित होने को है । ना भूतो ना भविष्यति ।। मैं 6 साल बाद फिर एक बार यहाँ हूँ और सब कुछ वही है । पूर्ववत यथावत । जय भोले नाथ सब की मुराद पूरी करो । शिवोहं ।।

हर हर महादेव के उद्दघोष के साथ आज के दिन का शुभारम्भ हुआ । भस्म आरती में ना जाकर बाद के दर्शन हेतु 12:15 पर लाइन में जो लगे तो 3 बजे जाकर महाकाल ने अपने दर्शनों हेतु निज मंडप में प्रवेश दिया । दिव्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते ही संपूर्ण थकान गायब होकर एक गज़ब की प्रसन्नता का अनुभव हुआ । मंदिर प्रांगण में और भी ढेरों मंदिर बने है । कुलमिलाकर श्रावण के प्रथम सोमवार के दिन उज्जयनी नगरी के महाराज महाकाल के दर्शन कर आगे की यात्रा का आगाज़ किया ।

मौसम पिछले 2 दिन से बराबर साथ दे रहा है । सूर्यदेव ने मानो बादलों की चादर ओढ़कर हमारी यात्रा की शीतलता में अपनी स्वीकृति दे दी हो । हमारी इस यायावरी का अगला पड़ाव है इन्दोर । निकल पड़े है चलने के लिए ।

इन्दोर से जो हम निकले तो सीधा घाट के रास्ते चल पड़े आगे और आगे । रास्ते में ओम्कारेश्वर से कुछ थोड़ा सा पहले एक छोटा ढाबानुमा ठेठ हरयाणवी तरीके से बना एक होटल दीख पड़ा । ताज़ा दूध की चाय और स्पेशल हरयाणवी लस्सी के साथ उस प्राक्रतिक शांति से भरी पूरी जगह पर जब रात के आठ बजे तो ना चाहते हुए भी हमें आगे की यात्रा पर निकलना पडा । होटल मालिक भाई मनोज ने जो आत्मीयता दिखाई उससे यह मान गये की "मीठे बोल बडे अनमोल" ।

ओम्कारेश्वर अद्भुत है । या यूं कहू की मंदिर में प्रवेश करते ही एक दिव्य अनभूति को महसूस करने की चाह । शांत बहती नदी और उसके तट पर कुछ सौ मीटर की उचाई पर बना मंदिर और भगवान् ओम्कारेश्वर का नगर भ्रमण का दिव्य एवम दुर्लभ दृश्य । पूज्य बाबा जी के सानिध्य और 21 पंडितों द्वारा किये जाने वाले समवेत सस्वर में रुद्राभिषेक और भगवान् शिव की आरती का आनंद उठाया । दाल, बाटी और भी कई प्रकार का सुस्वादु भोजन जो प्रसाद रूप में अर्पित किया गया था हम सब ने ग्रहण किया । चारों और पहाड़ों पर बने मंदिर, उनकी साज सज्जा, नदी का वो शांत बहता पानी अपने से दूर ना जाने के लिए मानो रोक सा रहा था पर चूँकि जीवन चलने का नाम तो हम रात 10:30 पर अपने सफ़र के अगले पड़ाव की और चल पड़े ।

सुबह के 7 बजे है और हम सेंधवा के रास्ते महाराष्ट्र में प्रवेश कर तीर्थनगरी नासिक में पहुच चुके है । यह ओद्योगिक शहर काफी बड़ा है और व्यवस्थित है । अंगूर की खेती के कारण यहाँ की किशमिश का नाम काफी है ।

आज की पूरी दोपहर आराम के नाम रही । थकावट अपने चरम पर थी तो आज शालीमार होटल के इस आराम ने थोड़ा और तरोताजा कर दिया । शाम को जो निकले तो सीधा जा पहुचे गोदावरी के तट पर "रामघाट" । ढलती शाम, मंदिरों में होती आरती, साईनाथ के जयकारों माहौल को सम्पूर्ण भक्तिमय और आध्यात्मिक रूप दे रहे थे । पुरानी शैली के पत्थरो से बने ये मंदिर गोदावरी के तट को हिन्दू आस्था के स्वरुप मैं अवस्थित है । घाट पर साफ़ सफाई और व्यवस्था पुलिस प्रशासन और नगरपालिका का सामंजस्य आने वाले सिंघहस्थ -2015 को स्वच्छ और सुन्दर बनाएगा ।

रात का खाना प्रकाश दा ढाबा में या यूं कहूँ की कंक्रीट के बने इस महानगर में सुकून का एहसास दे गया । सादा और देसी खाना आप अगर खाने के इच्छुक अगर है तो बढ़िया जगह है शांत और शहर के बीचों बीच ।

रात के साढे ग्यारह बज रहे है और सुबह निकल जाना है ।

अलसुबह भोर में निकल कर सीधे जा पहुचे भोलेनाथ को नमन करने त्र्यम्बकेश्वर । बहुत ही दूर दूर तक फैले घास के मैदान और पहाड़ों की चोटियों को छूते बादळ । भोलेनाथ के शीघ्र दर्शन कर निकलना चाहा पर मानो मौसम ने हमें बारिश में भिगोने का पूरा इंतज़ाम कर लिया था पर हम निकल पड़े आगे अपनी यात्रा पर ।

रिम झिम मौसम के बीच हम जा पहुचे सबका मालिक एक श्रीक्षेत्र शिर्डी । साईनाथ के दर्शनों का उत्साह इतना अधिक था की २ घंटे कब बीत गए । बाबा के दर्शन कर "सबके लिए सब कुछ हो" की दुआ मांगी और निकल पड़े आगे के लिए ।

दोपहर के हल्के फुल्के खाने के लिए हमें नज़र आया कामथ रेस्टोरेंट । शानदार खाना और लाज़वाब खाना की बस आप कायल हो जाते हो । काफी देर तक बारिश होती रही और हम लाज़वाब प्रकृति के नज़ारे करते रहे ।

शनि भगवान् का क्षेत्र श्री शनि शिंगणापुर एक ऐसी जगह है जहाँ किसी मकान, दूकान पर ताले नहीं लगाए जाते । त्वम् नमामि शनैश्चर के साथ नमन कर अब निकल पड़े है आगे क्योंकि....

ये मंजिल मिलने होने को नहीं होती,
चलना मेरी आदत में शुमार हो गया है ।
मौसम का बे नीयत हो जाना यूं खुशनुमा,
रुक जाने की बातें अब एक बार नहीं होती ।।

500 किमी का एक दिन का सफ़र, रास्ते भर होती बारिश, मुम्बई पुणे द्रुतगामी महामार्ग का वो बादलों से भरा समा, अनजान लोगों से आधी रात को सड़क पर मुलाक़ात और बस चलते जाना । भटक कर अजनबी की तरह रास्ता खोजना और फिर मंजिल पर पहुँच कर जश्न मनाना एक अजीब सा सुख देता है ।

3 बजे मध्य रात्रि में हमने प्रवेश किया सपनो की उस मायानगरी में जहां हर कोई एक सपना लेकर आता है । फिल्म स्टार बनने का सपना, घूमते घामते इस शहर का हिस्सा हो जाने का सपना, कहीं पेट पालने का जुगाड़ है यो कहीं दूर तक फैली इतनी भीड़ में भी तन्हाई ।

मुंबई.... सपने दिखाती.... हर पल जगाती... मशीन सी भगाती.... हम पहुँच गए है और तलाश कर रहे है अपने इन पलों को और यादगार बनाने का ।

06/08/15

सफ़र और सफरनामें को इतनी दिलचस्पी से पढ़ने और अपनी प्रतिक्रियायें देने के लिए सादर आभार । मुम्बई पहुचने तक का सफ़र आप अभी तक पढ़ चुके है लीजिये अब बात करते है आगे के सफ़र की...

सुबह का सूरज तो मानो कहीं गायब सा हो गया है । दोपहर तक बारिश अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी थी । शाम सुहानी हो चुकी थी तो हमने भी मुम्बई को नापने का मानो मन में ठानकर घूमने का फैसला कर लिया ।

समंदर के किनारे का अपना अलग मज़ा होता है.... चारों और फैली छोटी छोटी दुकानें जिन पर भेल, पावभाजी, बर्फ गोला, फालूदा और भी ना जाने क्या क्या... चटोरी जीभ को बस क्या चाहिये हर एक चीज़ को जुहू बीच पर चटखारे ले कर टेस्ट किया । २ घंटा तक समुद्र किनारे बैठ कर गाँव, देश और दुनिया की बातें गाँव के उन लोगों के साथ हुई जो यहां रहकर हमारी तरह मिस करते है उस मिट्टी की सौंधी खुशबू को जो इस महानगर की गगनचुम्बी इमारतों में रहने वालों के लिए एक स्वप्नमात्र है ।

अभिषेक भाई ने मानो हमारे मन की बात पढ़ ली और हमें इस शहर की भीड़ भाड़ से दूर कहीं बसे एक उस नखलिस्तान में ले जाने का फैसला किया जिसे यहाँ पर खोज पाना हम लोगों के लिए दुर्लभ था ।

किनारा ढाबा..... शहर की भागती दौड़ती जिंदगी से दूर हाईवे के एक किनारे पर... बाहर से ही मानो आमंत्रण दे रहा था पर ज्यों ही अन्दर घुसे तो मानो एक बाँस से बनी सृष्टि मानो साकार हो गयी । आर्केस्ट्रा की धुन, मचान पर बैठकर खाना खाने का लुत्फ़, शेरो-शायरी की लाइने, देसी गद्दे और मसनद वाला बैठने का तरीका, जंगल सा माहौल मानो भूल गए हम की मुम्बई में है । रात के २ कब बजे पता ही ना चला ।

वसई में पहाड़ों के बीच स्थित सुरम्य शिव मंदिर तुंगारेश्वर के दर्शन मध्यरात्रि की वेला में किये जब सिवाय भोलेनाथ और हम यात्रीगण के अलावा सिर्फ दूर दूर तक फैली शांति थी । ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव के उद्दघोष के साथ हमने अपने रात्रि के इस सफ़र को विराम दिया ।

07 अगस्त 2015

दिन की शानदार भक्तिमय शुरुआत हुई शीश गंग अर्धांग पार्वति, सदा विराजत कैलाशी की दिव्य आरती से... भाई अभिषेक से भजन सुने और दिन प्रारम्भ हुआ ।

दोपहर को जो निकले तो सीधा जा पहुँचे माँ मुम्बादेवी के दरबार में । जवेरी बाज़ार के बीचों बीच स्थापित यह माता मुम्बादेवी जो की इस मुम्बई महानगर की अधिष्ठात्री देवी भी है की अद्भुत शयन आरती का परम  आनंद मिला ।

भाई सुरेश चंद्र शर्मा बंटी से मुलाक़ात हुयी....  मन प्रफुल्लित और हर्षित हुआ । हम फिर जो चल पड़े आगे तो जाकर सीधा रुके गेटवे ऑफ इंडिया पर जाकर । जगमगाती ताज होटल, शान से खड़ा गेटवे ऑफ इंडिया और पास ही हिलोरे मारता दूर तक फैला अरब सागर का विशाल समुद्र । मरीन ड्राइव की सड़क पर ।

पूरी रात एक से एक बातें और कब ३ बज गए ना पता चला ।

हर शाम-ए-मुम्बई जो याद छोड़ गयी हर यात्री के मन पर आज के हर एक पल में .... मुम्बई की रफ़्तार भरी जिंदगी और अपनेपन के दुर्लभ एहसास के बाद शिव के मंदिर से जुड़ा है ये और जिंदगी का सफ़र एक बार फिर अपनी राह पर है...चल रहे है...शुभ रात्रि आप सब को हमें तो ये सफ़र जारी रखना है बस चलते रहो....

8 अगस्त 2015 का दिन कुछ लेट निकला और हम तैयारी कर चुके थे कि अपने दिन को पुरानी यादों के साथ ताजगी से भर दिया जाए हर शाम-ए-मुम्बई जो याद छोड़ गयी हर यात्री के मन पर आज के हर एक पल में .... मुम्बई की रफ़्तार भरी जिंदगी और अपनेपन के दुर्लभ एहसास के बाद शिव के मंदिर से जुड़ा है ये और जिंदगी का सफ़र एक बार फिर अपनी राह पर है...

पुरानी बातों, यादों का एक अलग आलम है.... खुद अपने वर्तमान से लेकर भविष्य की बात भी यूं ही कर जाना और फिर स्वयम का आकलन कर उन लम्हों को जी जाना जिंदगी का एक अलग पहलु है । मुम्बई से निकले आधी रात को सीधा सीधा रास्ता जो पता नहीं कब किधर किस मोड़ पर मुड़ने को मजबूर करदे या कि इतना बेपरवाह करदे की हम बस जी उठे ।

हम बस अनवरत चल रहे है...सूरत से एक सीधा ड्राइव वे और हम बस बिना रुके  चुपचाप कहीं रात २ मिनट रुकते की मिल जाए एक चाय की प्याली जो आपको कूल और जगाये रखे ।

सुबह हो चुकी है और सब को ये सफ़र जारी रखना है बस चलते रहो....

श्रावण में यायावरी शुरू की जो ज्योतिर्लिंगों से होते हुए महानगरी के शिव मंदिर तक चलती रही यह यात्रा अविस्मरणीय रहेगी ।

आशा है आपको यह यात्रा वृत्तांत का संस्मरण पसंद आया होगा ।

जीवन नाम है गति का और दूर तक फैली इन राहों पर जब एक बार फिर हम सब गतिमान होंगे तो आप से साझा करेंगे अपने अनुभव और किस्से ।

जल्द ही एक बार फिर निकल पड़ेंगे एक नयी राह पर ।

धन्यवाद ।।

written by
Satyendra Dadhich

Friday, July 31, 2015

ख्वाहिश एक काफी....

वाकिफ हूँ मुद्दत से बेइन्तहा दर्द से मैं,
अब दर्द से बेदर्द होने को दिल करता है ।
बेदर्द होकर गम दूर करने को चाहा है,
बाद मुद्दत के खुश होने को दिल करता है ।

ख्व्हाहिशैं बे पनाह मांगती है अब पनाह,
तेरे साथ सच करने को होने को दिल करता है ।
आज खुशियों की चाह क्यों है इस कदर,
बस थोड़ा मुझे अब खुश होने को दिल करता है ।

लिखते है मिट जाती है यादें उनकी उन यादों से,
तेरे वादों को याद करने का दिल करता है ।
कुछ निशाँ है इस कदर मेरे जेहन में उसके,
ना मिट तू अ मेरी जिन्दगी से अब तुझे जीने को दिल करता है ।

#LifeLine
#कलाम-ए-कलम
#Satyen

Satyen Dadhich

खुद की पहचान

यह कुछ जाना पहचाना जैसा है । कहीं पर सबसे अलग या अलहदा । क्या कभी विरोधाभासी सा या फिर एकदम समानांतर चलने वाला । कैसे और कब खुद को आप भूल जाते हैं और शुरु हो जाता है स्वयम को हम के रूप में स्थापित करने की जद्दोजहद वाला संघर्ष ।

#LifeLine
#कलाम-ए-कलम
#Satyen

Satyen Dadhich
+91 9309001689
rulooking.com@gmail.com

Monday, July 27, 2015

पृथ्वीसिंह

कल रात एक ऐसे जिंदादिल शख्स से मुलाक़ात हुई जिसमे समय से लड़कर जीतने का अद्भुत जूनून दिखा ।

जीरो से शुरू कर मानवता को ध्येय रखकर खुद को ना सिर्फ स्थापित किया बल्कि अपने पिता से विरासत में मिले गुण ईमानदारी, अनुशासन और सैदेव दूसरों की सहायता में तत्पर रहना इन्होने अपने आपमें आत्मसात किया है ।

यह कहानी नहीं हकीकत है और एक मिसाल है उन लोगों के लिए जो साधनों और भाग्य के भरोसे बैठकर कामयाबी की मंजिल की राह पर चलने से डरते है ।

पृथ्वीसिंह जी की जिन्दादिली को शब्द देने की कोशिश कर रहा हूँ ।

सलाम है उनके जज्बे को जिससे हर कोई प्रेरणा लेकर अपने भाग्य को बदल सकता है ।

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संस्कृत का एक बड़ा प्रसिद्द श्लोक है की

उद्यमेन ही सिध्यन्ते न च कार्य मनोरथ ।
न सुषुप्त सिंघ्स्य मुखे मृगा पर्विश्यन्ति ।।

अर्थात शेर जंगल का राजा है पर उसे भी अपना शिकार करने के लिए परिश्रम करना पडता है । हिरण स्वयम उसके मुंह तक नहीं आ जाते ।

एक पुलिस अधिकारी पिता की संतान जिसने बचपन से अनुशासन और मेहनत को विरासत में पाया वही जानता है की कार्य कैसे करना है ।